Thursday, March 7, 2013

गुलज़ार !

 वो नज़्म चढ़ी तो अक्स मिला
 सोच सुलगाता शख्स मिला
जब फलक चुभा था आँखों में
और चाँद मिला कुछ फांकों में
रातों को लिए बस फिरता था
सिन्दूरी ख्वाब भी फक मिला !!
कुछ लफ़्ज़ों की खराश लिए
ख्यालों के कुछ ताश लिए
वो फिर ज़िन्दगी के दांव में
खुद से भी बेझिझक मिला !!
कुछ कतरों के मनसूबे थे
जब रोज़ समन्दर डूबे थे
एक घूँट मिली जो उसको भी
इश्क के काफ़िये में फरक मिला !!
जाने कब से बंद थे खाते
फिर भी संभाली वो रसीदी बातें
यादों की वो कुछ भूली सी किश्तें
और पानी सा एक ख़त मिला !!
एक नींद लिखी थी बरसों में
उस पे भी तन्हाई ने शोर किया
कुछ नीले परिंदों ने भी फिर
कोरे सन्नाटों पर गौर किया
बेवजह की वजह में जैसे
मुझको मेरा मतलब मिला !!  
वजूद के कश में जब कभी
सब कुछ धुंआ सा होता है
मैं औरों सा होता नहीं
सब कुछ मेरा सा होता है
ये बहर अभी छलका भी नहीं
कि हवाओं को जैसे तल्ख़ मिला !!











7 comments:

Noopur said...

khubsoorat :)

Anonymous said...

नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!

Vinay said...

नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!

Anu said...

ये किसकी रचना है,गुलज़ार की तो बिलकुल ही नहीं.
तो क्या आपने लिखा है?

राहुल said...

शानदार कलम... जानदार ब्लॉग..

Udan Tashtari said...

जबरदस्त!

wordy said...

true dedication,deep emotions..
g8 job!