Monday, November 1, 2010

रचना!


वो रोज रोज की बातें
वो ख़ामोशी को खुरचना !
वो खुद का अच्छा न लगना
वो आईने को जंचना !
न जाने कैसी उलझन है
कुछ ख्वाहिशों में अनबन है
मुश्किल ही लगता है अब तो
खुद से ही जैसे बचना !
लिखने जो आज बैठा हूँ
वो सब जो न कभी कहता हूँ
जायज सा लग रहा है मुझे
लफ़्ज़ों का शोर मचना !
कुछ पर तो रंग फैले हैं
और कुछ अभी भी मैले है
इस सोच से तो नामुकिन सा है
एक 'जिंदगी' को रचना !

55 comments:

Sunil Kumar said...

वो खुद का अच्छा न लगना
वो आईने को जंचना !
सच्चाई को वयां करती हुई रचना , बधाई

Minakshi Pant said...

वो ख्वाहिशो की अनबन , न जाने केसी उलझन ,
ये जिंदगी का मेला , फिर भी ये दिल अकेला ?
कुच्छ एसा ही है न दोस्त बहुत खूब !

प्रवीण पाण्डेय said...

खामोशी खुरचने के क्षण बहुत कुछ सिखा जाते हैं।

कुश said...

खुरचना शब्द अच्छा लगा

Anupama Tripathi said...

जी हाँ -पर इसी सोच से इतनी सुंदर कविता रच डाली आपने -
इसी उलझन का नाम ज़िन्दगी है -
इसी उलझन से एक कविता बनती है .
अनेक शुभकामनाएं -

Majaal said...

कह कर मुश्किल रचना,
कर ही दी अपने रचना,
अच्छा नहीं होता इस तरह,
खुदी की बातों में फंसना ,
पर यूँ तो देखा जाए तो,
आपने भी कहा तो है सच ना

आगे भी ऐसी धासू कविताई करके,
आईने के सामने मटकना ...

लिखते रहिये ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वो रोज रोज की बातें
वो ख़ामोशी को खुरचना !
वो खुद का अच्छा न लगना
वो आईने को जंचना !

खामोशी को खुरचना कितना मुश्किल होता है ...बहुत कशमकश दिख रही है इस रचना में ...

Chinmayee said...

पारुल दी, बहुत सुन्दर ...

M VERMA said...

बहुत सुन्दर है 'जिंदगी' की रचना

mukti said...

ये सभी के साथ होता है कभी ना कभी... इसलिए अपनी सी लगी ये रचना.

अनामिका की सदायें ...... said...

मन की कश्मोकाश को सुंदर अलफ़ाज़ दिए हैं.

राजेश उत्‍साही said...

जिंदगी का कैनवास है ही ऐसा कि रोज बनाओ रोज मिटाओ।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

पारुल जी,
मुझे फुद्दू साबित करके.... आपको आता है मज़ा!
.............................................है ये सच ना!!!
आशीष
--
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

khoobsurat :)

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

khoobsurat :-)

Udan Tashtari said...

बहुत सही..एकदम करीब से गुजरी!!!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति .........

kunwarji's said...

बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पढने को मिला.....मुझे फिर से उत्साहित करने के लिए धन्यवाद है जी...



कुंवर जी,

Anand Rathore said...

zindagi aapke liye kya hai..is sawal ka javab talasiye...soch banti hai bigadti hai...mushkil to hai ..magar soch se hi zindagi banti hai..ye soch jo aaj zindagi ki rachna ko namumkin ki dahliz par le aayi hai..badalte hi... rachna shuru ho jaayegi..

उपेन्द्र नाथ said...

jindagi ki haqikat vayan ki hai aap ne...very nice.

Apanatva said...

antardwand darshatee rachana...........
ye dour to aate jate rahte hai jeevan me .

Dr Xitija Singh said...

parul ji ... ek aur behad khoobsurat rachna .... isi kashmakash mein zindagi guzar jaati hai ....

Anonymous said...

पारुल जी बहुत ही खुबसूरत रचना है....
अभिव्यक्तियों को अच्छे शब्द दिए हैं ....
मेरे ब्लॉग पर कभी कभी....

Anonymous said...

पारुल जी,

बहुत खुबसूरत हर बार की तरह.....कुछ नए शब्द जैसे 'खुरचन' बढ़िया लगे....आपकी इस रचना पर एक शेर अर्ज़ किया है मुलाहजा फरमाइए-

" खुद को समेत लूँ तो तेरे पास आऊंगा,
अभी तो मैं अपने आप में बिखरा पड़ा हूँ"

Asha Joglekar said...

ख्वाहिशों की अनबन न जाने कैसी उलझन
लफ्जों का शोर मचना,
जिंदगी को रचना

वाह क्या खूब लिखा है ।

पी.एस .भाकुनी said...

वो ख्वाहिशो की अनबन , न जाने केसी उलझन ,
ये जिंदगी का मेला , फिर भी ये दिल अकेला
sunder prastuti.......

माधव( Madhav) said...

sweet

लाल कलम said...

अच्छी रचना , बहुत - बहुत शुभ कामना

sonal said...

oye hoye ... mausam hai aashikana

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर रचना है!
--
हर एक छंद में नया बिम्ब समाया है!

ज्योति-पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Coral said...

बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना !

Anonymous said...

वो ख़ामोशी को खुरचना !

अति सुंदर

Manoj K said...

यह रोज रोज कि बातें अच्छी लगी. जीवन रचना तो फिर भी हुई है और होती रहेगी.

दीपोत्सव कि हार्दिक शुभकामनाएँ.

जयकृष्ण राय तुषार said...

आपकी खूबसूरत कविता पर ज्योति पर्व पर इन्र्दधनुषी बधाइयाँ

' मिसिर' said...

सुन्दर रचना ..........स्वयं को स्वयं में देखती हुई आँखें
जब बोलती हैं तब ऐसी ही रचना जन्म लेती है !

Kunwar Kusumesh said...

दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें

कुँवर कुसुमेश

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर रचना है !
आपको और आपके परिवार को एक सुन्दर, शांतिमय और सुरक्षित दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें !

RockStar said...

wish u happy diwali and new year

Avinash Chandra said...

वो खुद का अच्छा न लगना
वो आईने को जंचना !

ऐसा पढ़ना अच्छा लगा...

Mansoor Naqvi said...

bahut khoob.

Unknown said...

कुछ पर तो रंग फैले हैं
और कुछ अभी भी मैले है
इस सोच से तो नामुकिन सा है
एक 'जिंदगी' को रचना !.........wahh bahut khoob badhai HO!!

Jai Ho Mangalmay Ho

प्रेम सरोवर said...

Wo khud ka achha lagna,
Wo aine ko jachana.
Har insan ka dil ishwar ki anupam sristi hai.Hamare man mein rache base bhao hi hamare dil, dimag aur chehare ko kabhi kabhi badalate rahate hain. Aina wohi rahata hai chehare badal jate hain.An Emoyional post.

Tarun said...

काफी समय बाद पढ़ने को मिला शब्द खुरचना, अच्छा लगा पढ़कर

Rohit Singh said...

आज तो कहां से कहां पहुंचा दिया। अब तो दर्पण को देख कर हम डरते हैं और दर्पण हमें देख कर।

rajesh singh kshatri said...

Bahut Sundar Rachna...

kumar zahid said...

पिछली नजम का हिसाब दर हिसाब


नींद की हथेली पर
एक ख्वाब
मेरी उम्र का
हिसाब
कुछ नमकीन
ख़ामोशी की आह
एक किताब
हरफ-हरफ जैसे बरस
जिंदगी के सवाल पर
शायद एक जवाब
चाँद जैसे
नीला नकाब ?



वाह जनाब !!
हर्फ़ दर हर्फ़
लाजवाब !!!!!!

स्वप्निल तिवारी said...

aazad nazm hote hue bhi ...ek achhi lay bandh rakhi hai aapne... :) ek sans me padh gaya ..khurachne wali baat sabse achhi lagi ...

हरकीरत ' हीर' said...

पारुल जी ,
एक जिज्ञासा आपकी रचनाओं को लेकर हमेशा रही है ....
आप महिला होकर हमेशा पुरुष रूप में क्यों लिखती हैं ....?
हालांकि ऐसा लिखने पर कोई पाबन्दी नहीं पर आपकी हर नज़्म पुरुष रूप में ही होती है ...

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत खूब..एक सुंदर अभिव्यक्ति...बढ़िया रचना के लिए धन्यवाद

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

पारुल जी , मन के अन्दर चलने वाले द्वन्द्व को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने।

राजकुमार सोनी said...

जो कोई भी पूरी दुनिया को खूबसूरत ढंग से देखेंगा वह इसी तरह की रचना लिखेगा
वेलडन पारूल

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

कुछ पर तो रAग़ फ़ैले हैं, और कुछ अभी भी मैले हैं, ऐसे मेंm उश्किल है ज़िन्दगी को रचना। क्या बात है।

kumar zahid said...

हरकीरत हीर जी की नज़र पर नज़र हैं ये सतरें...

अंदाज़ बदलता जाता है , तस्वीर बदलती जाती है ,
रातों की शक्ल पिघलती है , जब सुबह मचलती आती हे।

Parul kanani said...

heer ji..aapka sawaal naya nahi..bahut log yahi kehte hain..iski koi khas vajah nahi..bas yun samjhiye..zazbaat jis tarah se aate hai..vaise hi utar jate hai... :)

Archana writes said...

bahut achi rachna k liye bhadhai...nicely written...