Thursday, February 18, 2010

एक सवाल ..


वो वक़्त-बेवक्त भागता है अपने ही पीछे
उसको इस जुनूं का असर चाहिए
शायद कम पड़ गया है जिंदगी का आशियाँ
जो अब ईट-पत्थरो का भी घर चाहिए ॥
भूलता जा रहा है वो इस भूल में
जिन्दगी से अपने सारे रिश्ते
बस सोचता रहता है यही
पैसे से भरनी है साँसों की किश्तें
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥
फिरता है दर दर खुद को तन्हा लिये
सपनों से भी सुकून का सौदा किये
ऐ दोस्त इतना ही कहूँगा मैं
तकाजे के लिये भी उमर चाहिए ॥
इस ख्वाहिश में सब कुछ बीत जायेगा
हो सकता है जिंदगी से तू जीत जायेगा
मगर हार जायेगा अपना ही वजूद
क्या तुझको खुद की नहीं कदर चाहिए ॥

29 comments:

amitdandyan said...

Javed Saab ka ek sher yaad ata hai
"Jo khwab tha use paa lia hai,
Magar jo kho gyi vo chiz kya thi...?"

I think u tried to answer this question bueatifully...!!!!!!!!

दिगम्बर नासवा said...

अपने आप को अपने भागते हुवे सपनों से बचा कर रखना चाहिए ..... अपने लिए भी वक़्त हों चाहिए ... रिश्तों की अहमियत और कहीकत से रूबरू कराती रचना ........

मनोज कुमार said...

पैसे से भरनी है साँसों की किश्तें
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥
सच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है।

डिम्पल मल्होत्रा said...

aaj apki kavita behad dil ke kareeb lgi..apne hi khyaal lge.sach me hum khud ko hi bhool jate hai khud se jyadti hai ye.insaan bhag dodh me sab bhool jata hai.rishte naate..sab kuch ..aisa kuch main likhna chahti thi..

Dev said...

आज के जीवन शैली को प्रस्तुत करती ये रचना .......बहुत बढ़िया .

Apanatva said...

ye to hakeekat bayan kar dee jo hai apane paas usakee kadr nahee jo nahee usako pane me aaj bhee gava dete hai.........sapno ka peecha .........
bahut sunder abhivykti.............

पूनम श्रीवास्तव said...

Bahut badhiyaa rachanaa-----.

ताऊ रामपुरिया said...

बस सोचता रहता है यही
पैसे से भरनी है साँसों की किश्तें
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥


बहुत सटीक और सत्य कहा आपने.

रामराम.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छे भाव अच्छा सन्देश देती कविता.
खुद की कदर तो तभी होगी न जब यह अंधी दौड़ रुकेगी!

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Udan Tashtari said...

एकदम सटीक अभिव्यक्ति!! मुग्ध करती है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

टिप्पणी में एक गीत दे रहा हूँ-

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।

न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

Pawan Kumar said...

bahut hi satik rachna......bhavpoorn abhivyakti...!
behatreen post!

मधुकर राजपूत said...

शायरी इम्प्रैक्टिकल होती है। पैसा ना हो तो कोई नहीं पूछता। अपने भी नहीं। जिन अपनों का दम भरते हैं वही लात जड़ते हैं। हम तो भुक्तभोगी हैं और कोरोड़ों हैं जिन्होंने भुगता है। वज़ूद काढ़ने के लिए भी सफलता, पैसा नाम की जरूरत होती है और जो खास अपने होते हैं वो तो हर हाल में अपने साथ हैं। जैसे मां-बाप, वो कभी किसी हालत में साथ नहीं छोड़ते चाहे हम उनसे कितनी ही दूर क्यों ना रहें। इसलिए प्रैक्टिकल ज़िंदगी को नकारा नहीं जा सकता। सपनों की बिनी भी ज़िंदगी मोनोटोनस यानी नीरस हो जाएगी।

मस्तानों का महक़मा said...

bahut umda soch hai aapki jivan par. kahi bhi esa nahi laga jese kisi baat ki pakad dhili reh gai ho har alfaz me ek dam hai har bat me koi gam hai jisse lagta hai ye vakya bahut nam hai...

bahut badiya.
meri shubh kamnayen...

Parul kanani said...

bahut badhiya mayank ji..aapki baat se bhi sehmat hu madhukar ji..baaki sabhi ka bhi bahut bahut aabhar :)

vishnu-luvingheart said...

shayad har kisi ka yahi sawal hoga, har koi isi bhagambhag mein laga hai bas ek andhi doud mein..jiska shayad koi mukam vo khud bhi nahi kar paya hai..na hi kar payega.....
badhiya prastuti hai aapki...

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत खूब सुन्दर रचना
आभार

दीपक 'मशाल' said...

कई रचनाएँ पढ़ें आज.. लेकिन ये वाकई काफी असरदार है.. मज़ा आ गया पढ़ के.. कुछ सोचना भी पड़ा कि बात् तो सच्ची कही है..

Ravi Rajbhar said...

Dil si likhi gai pyari si rachna.badhai

SURINDER RATTI said...

Parul Ji,
Bahut sunder kavita hai... jivan ke yatharth ko darshati.....Surinder

CA. RAJNISH SARDANA said...

Well yaar.

just one ward to say

Kya baat.
Kya baat..

Kya baat...

Neeraj Kumar said...

शायद कम पड़ गया है जिंदगी का आशियाँ
जो अब ईट-पत्थरो का भी घर चाहिए ॥...
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥...
मगर हार जायेगा अपना ही वजूद
क्या तुझको खुद की नहीं कदर चाहिए ॥



इस भागती-दौड़ती दुनिया में इंसान, इंसानियत और जिन्दगी कहीं खो सी गयी है... और आपकी कविता ने मासूमियत से मन के अंतर्द्वंद को जगजाहिर कर दिया है.... बहुत खूब...

पूनम श्रीवास्तव said...

भूलता जा रहा है वो इस भूल में
जिन्दगी से अपने सारे रिश्ते
बस सोचता रहता है यही
पैसे से भरनी है साँसों की किश्तें
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥

Khoobaurat aur hridayasparshee panktiyan.
Poonam

दिनेश शर्मा said...

सही कहा है आपने।

Akhilesh pal blog said...

sach me insaan paise ke pichhe bhag raha hai

Parul kanani said...

thanx to all fo you

डॉ 0 विभा नायक said...

bahut achchha likhti hain aap, gambhir yatharth jhalakta hai apki rachnaaon me.........shephalikauvach par apka swagat hai, asha hai hamara sampark u hi bana ragega.......shubkaamnaayen....

निर्झर'नीर said...

कितनी तल्ख़ हकीक़त को आपने शब्द दिए है .
.यक़ीनन काबिल-ए -दाद ,क़ुबूल करें