Monday, January 25, 2010

ख़ामोशी !!



तुम न आये मगर
ख़ामोशी आकर चली गयी
लफ्ज़ छिपते फिरे
पर वो सब सुनाकर चली गयी !
सुना भी क्या इस दिल ने
एक अदना सा फ़साना
जिसमें सिर्फ तन्हाई थी
मुश्किल था तुम्हे पाना
तेरे इंतज़ार में एक अरसे से
मैं एक रात भी न बुन पाई
और वो एक पल में
जिंदगी को ख्वाब बनाकर चली गयी !!
मैं जब तलक थी इस सोच में
तुम क्यों नहीं आये?
उसने अपने किस्से
यूँ कई बार दोहराए
मैं पूछ न सकी कुछ भी
वो कहती चली गयी
मेरी ख़ामोशी पे सवाल उठाकर चली गयी !!


12 comments:

Anonymous said...

"तेरे इंतज़ार में एक अरसे से
मैं एक रात भी न बुन पाई"
आपको पहली बार पढ़ा है - बहुत खूब, लाजवाब, हार्दिक शुभकामनाएं

kiran kant mishra said...

khamoshi ka bahut khoobsurat sketch hai. badhaai.
kirankant mishra

अबयज़ ख़ान said...

लाजवाब कहना बहुत कम होगा, क्योंकि तारीफ के लिए अल्फाज़ कम पड़ गये...

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

Mithilesh dubey said...

गणतंत्र दिवस की आपको बहुत शुभकामनाएं..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर रचना!

नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥

गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

अनिल कान्त said...

man ke bhaavon ko aapne bakhoobi pesh kiya hai.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

kyaa baat....kyaa baat....kyaa baat.....!!!

Parul kanani said...

aap sabhi ka hardik abhaar!!

Creative Manch said...

तेरे इंतज़ार में एक अरसे से
मैं एक रात भी न बुन पाई
और वो एक पल में
जिंदगी को ख्वाब बनाकर चली गयी !!


waah bahut khoob
atyant bhaavpoorn rachna.
achha laga padhkar.

aabhaar % shubh kamnayen

Sudhir (सुधीर) said...

तुम न आये मगर
ख़ामोशी आकर चली गयी
लफ्ज़ छिपते फिरे
पर वो सब सुनाकर चली गयी !

सुन्दर अभिव्यक्ति....साधू

wordy said...

lafz chhipte phire
aur vo sab.........
what a imagination?

Gautam RK said...

हम उन्हें सुनते रहे और गुफ्तगूँ चलती रही!


शुभ भाव

राम कृष्ण गौतम