Monday, March 23, 2009

उफ़!!


तुम्हे पाने के लिए
हम जिंदगी की हर ख्वाहिश से परे थे
और तुम्हे खो देने के
हर फासले से डरे थे॥
है अजनबी अब तलक भी
हम एक दूजे से
मगर एहसास ताउम्र
तेरे साथ जीने से भरे थे ॥
मानता हू मेरा दर्द
सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा था
मगर आंसूं मेरे
मेरी वफ़ा से खरे थे॥
अनसुना सा था
मेरे दिल का फ़साना
खामोशी की चोट से
मगर अल्फाज़ हरे थे ॥
तू न होकर भी
अक्सर रहा मुझे में शामिल
मेरी तन्हाई के तुझसे
यूं भी रिश्ते गहरे थे॥

9 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

तू न होकर भी
अक्सर रहा मुझे में शामिल
मेरी तन्हाई के तुझसे
यूं भी रिश्ते गहरे थे॥ ....
गहन भाव,बधाई .

aprajita said...

bahut pasand aya.accha lekhti hai app.

Ashish said...

achhi hai...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मन की व्यथा-कथा सारी ही, शब्दों में भर डाली।
खामोशी की चोट हृदय की,नस-नस में कर डाली।

Vinay said...

इतनी सुन्दर कविताओं का रहस्य बतायेंगी क्या?

---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

पूनम श्रीवास्तव said...

Parul,
apkee kavitaon men din par din nikhar aata ja raha hai..bahut badhiya rachna.
Poonam

ओम आर्य said...

नायाब !

Sudhir (सुधीर) said...

अत्यन्त सुंदर और प्रभावशाली रचना। विशेष रूप से इन पंक्तियों ने छू लिया।


है अजनबी अब तलक भी
हम एक दूजे से
मगर एहसास ताउम्र
तेरे साथ जीने से भरे थे

rajeev rawat said...

yah khuda
mere dil ki awaz ke kisi ke itne khubsurat shabd....wah
congrats.
khub likho .....

dr rk rawat, iit khargpur