Tuesday, March 17, 2009

दोहराव..!


मैंने चाहा तो बहुत
जीना जिंदगी को हर दाँव से
सैलाब को खेना
वक्त की नाव से
हाँ, गहराई तक जाने की जिद थी
पर डर भी लगता था बहाव से
मैं रोज बनाती थी मिटटी के घर
और ढहा भी देती थी नँगे पाँव से
अच्छा भी लगता था लहरों को छूना
अछूती नही थी मगर सपनों के लगाव से
हर पल,हर लम्हा ऐसा हो,वैसा हो
शायद अक्सर ही की ये बातें चाव से
नींव ही कच्ची थी जिंदगी की
तभी तो सब जीया बस भाव से
जाने कहाँ छोड़ आई हूँ ख़ुद को
कि लगता है डर,वक्त के घाव से
ये किस दोराहे पर खड़ी हूँ मैं
दो हिस्सों में बँट गई हूँ अब तो दोहराव से






10 comments:

Unknown said...

हाँ, गहराई तक जाने की जिद थी
पर डर भी लगता था बहाव से ॥
मैं रोज बनाती थी मिटटी के घर
और ढहा भी देती थी नँगे पाँव से

ये लाइने बहुत ही लाजवाब । बहुत ही बेहतरीन रचना है । बधाईयां

mehek said...

न जाने कहाँ छोड़ आई हूँ ख़ुद को
कि लगता है डर,वक्त के घाव से ॥
ये किस दोराहे पर आ खड़ी हूँ मैं
दो हिस्सों में बँट गई हूँ अब तो दोहराव से ॥

ye lines bahut pasand aayi ,sach kuch alag hoti hai aapki rachana,har baar kuch sochne ko kehti ,bahut sunder.

Prakash Badal said...

बहुत ख़ूब पारुल वाह!

रश्मि प्रभा... said...

जितनी भी तारीफ करूँ ,कम होगी.......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जीवन के दोराहे पर, पूरा घर-बार पड़ा है।

किसी-किसी का तो, सारा संसार खड़ा है।।


कदम-कदम पर मिल जायेंगे ऐसे दोराहे।

केवल समय दिखा सकता है, सच्ची राहें।।

अनिल कान्त said...

man ki uthal puthal ko kavita roop mein bahut hi achchhe se darshaya hai

Vinay said...

aisa laga jaise pinjare mein qaid panchhi fadfadaa raha ho!

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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

रचना गौड़ ’भारती’ said...

सुन्दर रचना के लि‌ए बधा‌ई
लगातार लिखते रहने के लि‌ए शुभकामना‌एं
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
http://www.rachanabharti.blogspot.com
कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लि‌ए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
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अरविन्द श्रीवास्तव said...

दोराहे पर खडी हूँ मै……बेहतरीन कविता, बधाई स्वीकारें।

Parul kanani said...

thanx 2 all of u