When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Wednesday, January 14, 2009
पिंजर..
मैं होकर भी ख़ुद में अलग ,सब में आम थी
एक नाम होकर भी जैसे बेनाम थी
मैं रहना चाहती थी हर पहचान से परे
कुछ लम्हे जीना चाहती थी शब्द भरे
ऐसा नही था कि मैं बस तन्हा से लम्हे चुनती थी
कभी खामोशी बोलती थी तो उसकी भी सुनती थी
मेरे पास आकर जब भी रोती थी मेरी तन्हाई
उन आसुओं से धुल जाती थी मन की काई
मोती समझकर चुगती थी जिसको जिंदगी फ़कीर सी
रिसती थी जैसे रूह पानी पानी ,पीर सी
पर देखा कठोर होते जा रहे थे मन के दरख्त
और मैं होती जा रही थी ख़ुद के साथ सख्त
धुंधले से पड़ने लगे थे वक्त के मंजर
उतरता जा रहा था जेहन में दर्द का खंजर
भूख से बिलखता जा रहा था मेरा जेहन
और मैं बोने लगी थी प्रीत के बीज से बंजर
मैं चलती जा रही थी मन की मिटटी को आंसुओं से सींच
और जिंदगी की हर आह को,अन्दर ही भींच
सोच तड़प रही थी, बुन रही थी कहर
और मन बनता चला गया ख़ुद ब ख़ुद सवालों का पिंजर
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7 comments:
Parul ji,
Aur man banta chala gaya khud b khud savalon ka pinjar.Bahut dard chhipa hai in panktiyon men.
Parantu us dard aur bhavnaon ko shabdon men bakhoobee bandha hai apne.Badhai.
Hemant Kumar
ऐसा नही था कि मैं बस तन्हा से लम्हे चुनती थी
कभी खामोशी बोलती थी तो उसकी भी सुनती थी
.......
main aapki rachnaaon me kho jaati hun
ऐसा नही था कि मैं बस तन्हा से लम्हे चुनती थी
कभी खामोशी बोलती थी तो उसकी भी सुनती थी
--बहुत सुन्दर भाव!! बधाई.
आज पहली बार आया आपके ब्लोग पर। बहुत अच्छा लगा। सुन्दर भावों से भरी यह रचना पढ़्कर।
ऐसा नही था कि मैं बस तन्हा से लम्हे चुनती थी
कभी खामोशी बोलती थी तो उसकी भी सुनती थी
मेरे पास आकर जब भी रोती थी मेरी तन्हाई
उन आसुओं से धुल जाती थी मन की काई
मोती समझकर चुगती थी जिसको जिंदगी फ़कीर सी
रिसती थी जैसे रूह पानी पानी ,पीर सी
बहुत ही उम्दा।
सोच तड़प रही थी, बुन रही थी कहर
और मन बनता चला गया ख़ुद ब ख़ुद सवालों का पिंजर
bahut khub
Parul ji,
kafee bhavnatmak abhivyakti hai is kavita men.shubhkamnayen.
Poonam
ab likhna chhut sa gaya hai par ye padhne k baad ji ho raha hai ki apni bhavnao ko bhi shabd de doon
bahut sunder
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