When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Tuesday, December 22, 2009
कर ले
आँखों में जो चुभते है
और फिर कहाँ रुकते है
उनसे मन को तर कर ले
छोड़ आ उनको फिर कहीं दूर
ऐसा न हो फिर वो मन में घर कर ले !
इश्क बड़ा ही तीखा है
जिसने इसको सीखा है
भूल गया फिर वो सब कुछ
बिन इसके सब फीका है
फिर भी पैबंद लगाकर तू
साँसों की थोड़ी फिकर कर ले !
एहसास के कच्चे धागों को
यूँ ही न तू उलझाये जा
इसका रंग मिटटी का है
न ख्वाबों की परत चढ़ाये जा
तुझको खुद की हो न हो
आईने की थोड़ी कदर कर ले !
कागज़ की नाव बना करके
ना तू ये भंवर तर जायेगा
अपने मन को कोई टीस ना दे
वरना ये आँखों में भर जायेगा
ये जीवन, बचपन का खेल नहीं
पहले थोड़ी सी उमर कर ले !
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8 comments:
ये जीवन, बचपन का खेल नहीं
पहले थोड़ी सी उमर कर ले !
vah vah kai dino ke bad tazgi mehsoos hui hai dhnywad
इश्क बड़ा ही तीखा है
जिसने इसको सीखा है
भूल गया फिर वो सब कुछ
बिन इसके सब फीका है .....
सच है जो एक बार इश्क़ के सागर में डूब गया वो उबर नही पाता ........... और ना ही उबरना चाहता है .........
भावों को बेहद सुंदर तरीके से शब्द दिये गये हैं
फिर भी पैबंद लगाकर तू
साँसों की थोड़ी फिकर कर ले !
पैबन्दों ने तो थाम ली है जिन्दगी की डोर.
सुन्दर भाव पिरोया है
बहुत सुन्दर
badee acchee rachana lagee. Badhai.
thanx 2 all of u...
एहसास के कच्चे धागों को
यूँ ही न तू उलझाये जा
इसका रंग मिटटी का है
न ख्वाबों की परत चढ़ाये जा.
बहुत खूब लाइन हैं... दिल को छू गईं.
Bahut hi achhi kavita hai, man ke bhavo ko door tak chhoo jaati hai...
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