Thursday, August 6, 2009

चाह!


तेरे एहसास भर से
एक दर्द उभर जाता है !!
सोचती हूँ तुझे तो
जैसे मन भर जाता है !!
भूल पाऊँ अगर तो
सब कुछ भुलाना चाहूं !
मैं बिन तेरे
हर हाल में मुस्कुराना चाहूं !
पर जो सुकूं दे
वो एहसास ही मर जाता है!!
तू कोई वादा न कर
तू निभा न पायेगा !
फिर ये दिल रोयेगा
और तू हंसा न पायेगा !
सोच हर आँसू जैसे
ख़ुद में सिहर जाता है !!
तेरी दुनिया में
मेरे होने का एहसास कहाँ ?
हैं तेरे पास सभी
पर तू मेरे पास कहाँ ?
ऐसे ही कुछ सवालों से
मेरा वजूद बिखर जाता है !!
आज बिछडे भी हो
पर शायद फिर कभी संग होंगें !
इस कोरेपन में
छिटके से मेरे रंग होंगें !
इसी ख्वाहिश को जिये
वक्त गुजर जाता है !!

5 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत सुन्दर रचना। आप बहुत अच्छा लिखती हैं । बधाई।

Sudhir (सुधीर) said...

अत्यन्त संवेदनशील... कुछ पंक्तिया ने विशेष रूप से प्रभावित किया

तू कोई वादा न कर
तू निभा न पायेगा !
फिर ये दिल रोयेगा
और तू हंसा न पायेगा !

तेरी दुनिया में
मेरे होने का एहसास कहाँ ?
हैं तेरे पास सभी
पर तू मेरे पास कहाँ ?

उत्तम अभिव्यक्ति। साधू

M VERMA said...

इसी ख्वाहिश को जिये
वक्त गुजर जाता है !!
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अत्यंत भावशील रचना. एहसास की खूबसूरत रचना

Parul kanani said...

dhanywaad

anusuya said...

true to heart!