When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Thursday, December 18, 2008
कहाँ?
तेरी मेरी चाहत के अब
पहले जैसे रंग कहाँ ?
एक दूजे की तन्हाई में
हम दोनों अब संग कहाँ ?
सोच की वो ऊँची सी उडाने
लगते थे जब आसमान पे छाने
बांधे रखती थी जो डोर
ऐसी मन की वो पतंग कहाँ ?
टूटे जब मिटटी के खिलोने
कैसे हम लगते थे रोने
आज जो दोनों से दिल टूटे
बचपन जैसे हम तंग कहाँ ?
खो से गए कैसे वो बहाने
लगते थे जब एक दूजे को पाने
जुदा जुदा से दिलों का
जीने का वो ढंग कहाँ ?
गुमसुम सी बैठी है मस्ती
शोर मचाने को तरसती
तेरे दिल से मेरे दिल तक
बचपन की वो उमंग कहाँ ?
कहाँ गए वो सारे ठिकाने
वो जिंदगी के पल सुहाने
सच माने तो भूले से कल में
मीठी सी वो अब जंग कहाँ ?
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1 comment:
ultimate ... perfect rhythm
fine fabric of sensitive beats !!!
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