When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Monday, December 29, 2008
कौन?
मैं हैरां भी हू और परेशां भी हू ये देखकर
मेरे सपनों के रंग रोज बदलता है कौन ?
मेरी तन्हा सी,अनजानी सी आरजू में
आख़िर बेपरवाह सा मचलता है कौन ?
हाँ! मैंने भी भरी थी कभी उड़ान
न जाने किसके हाथों कटी थी मन की पतंग
मैं भटकता रहा बरसों यूं ही
ये जानकर भी जिंदगी की गलियाँ है तंग
मैं अपने हर गम में जब तन्हा ही हू
तो मेरे आँसुओं में आख़िर ये पलता है कौन ?
मैं आज तक न समझा
क्या सही है और क्या ग़लत
पर जब भी मिलता हू मैं ख़ुद से
पाता हू ख़ुद को और सख्त
फिर भी इस पत्थर से दिल में
अनजाना सा आख़िर पिघलता है कौन ?
चुभ रहा है मेरी आंखों में क्यों ये आइना
नही भाता मुझको क्यों आख़िर मेरा होना
मैं ढूंढ़ता हू क्यों आख़िर ख़ुद से ही दूर
किसी अनजाने वक्त का कोना
धीरे धीरे से हर पल,हर लम्हे में
मुझे, ख़ुद में इतना खलता है कौन ?
मैं बैठा हू क्यों लफ्जों से परे
जी रहा हू क्यों पल, खामोशी भरे
या कि ये खामोशी भी है कहीं दबी
इसको भी मैं सुन न पाया कभी
जिंदगी के इस अनकहे सूनेपन में
फिर आवाज करके ये चलता है कौन ?
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3 comments:
बढ़िया जी बढ़िया
मैं हैरां भी हू और परेशां भी हू ये देखकर
मेरे सपनों के रंग रोज बदलता है कौन ?
मेरी तन्हा सी,अनजानी सी आरजू में
आख़िर बेपरवाह सा मचलता है कौन ?
हाँ! मैंने भी भरी थी कभी उड़ान
न जाने किसके हाथों कटी थी मन की
बहुत ही सुंदर alfaaj pryoog किए गए है.....सुंदर
अति सुन्दर रचना!
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