Thursday, December 18, 2008

हक ..!!


न जाने क्या क्या आएगा
तेरे मेरे दरम्यां
और कहाँ तक लिखोगी तुम
अधूरी सी ये दास्तां !!
ख्वाब आकर फिर दे जायेंगें कसक
फिर दिल मांगने लगेगा मुझसे अपना हक
किस तरह दूंगा फिर तुम्हारे दिल पे दस्तक
और क्या पता तुम हो न हो वहां !!
फिर रहना पड़ेगा मुझको एक "काश" में
या कि फिर निकालूँगा मैं तेरी तलाश में
ये भी नही ख़बर क्या आ सकूँगा तेरे पास में
किस मुकाम तक ला खड़ा करेंगी दूरियां ?
नही पता पहचान लोगी क्या एक आवाज में
देख पाओगी बीते लम्हे,मेरे आज में
या कि मैं दोहराऊंगा वो कहानी
जो बरसों से लिख रही है खामोशियाँ !!
एक लफ्ज़ भी मेरा पहुँचा जो तेरे दिल तक
मांग ही लूँगा मैं तुमसे जिंदगी का हक
और जानता हू तुम इंकार कर न पाओगी
जिंदगी भी न दे सको,ऐसी भी मुश्किल कहाँ !!



8 comments:

नीरज गोस्वामी said...

नही पता पहचान लोगी क्या एक आवाज में
देख पाओगी बीते लम्हे,मेरे आज में
या कि मैं दोहराऊंगा वो कहानी
जो बरसों से लिख रही है खामोशियाँ !!
बहुत खूब पारुल जी....बेहतरीन रचना है आपकी...
नीरज

Vinay said...

जितना आप को पढ़ रहा उतना आपका मन खुल रहा है!

Udan Tashtari said...

एक लफ्ज़ भी मेरा पहुँचा जो तेरे दिल तक
मांग ही लूँगा मैं तुमसे जिंदगी का हक
और जानता हू तुम इंकार कर न पाओगी
जिंदगी भी न दे सको,ऐसी भी मुश्किल कहाँ !!


-बहुत उम्दा..वाह!!

Pramendra Pratap Singh said...

जिनती भी तरीफ की जाये कम होगी।
महाशक्ति

विवेक सिंह said...

आपने ही लिखी है या ... :)

Parul kanani said...

thanx to all of u..

amar said...

fundooo... poured with passion !!!
bas last line uper se nikal gai :)

प्रशांत मलिक said...

When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
nice lines..
aaj pahli baar aapke blog pe aaya hunn

achha laga...