Thursday, June 3, 2010

न डूबे!


देख! तेरे आंसूओं से कहीं किनारा न डूबे
नम से ख़्वाबों में रात का कोई तारा न डूबे!!
मुझे खबर है कई रोज से तुम सोये नहीं हो
थक भी गए हो इतना कि और रोये नहीं हो
भर गया है किसी हद तक तेरे मन का समन्दर
याद रखना!कहीं इसमें तेरा कोई प्यारा न डूबे!!
चाँद भी देख रहा है, सब कुछ बादलों की ओट से
रात सिहर रही है, टूटे ख़्वाबों की चोट से
चांदनी झिलमिला रही है फिर भी तुझ में
देख!तेरे दिल को रोशन करता ये नज़ारा न डूबे!!
मुझे अपना समझ, दिल की दिल से बात होने दे
मुझे तन्हा न कर,बस अपने साथ होने दे
बना ले मेरे दिल को अपनी कश्ती
ये प्यार तेरा मेरा फिर दोबारा न डूबे!!
समेट लेने दे आंसूओं को, पलकों की कोर से
भरोसा कर,न होगी कोई गलती मेरी ओर से
देख सकता नहीं जिंदगी को और यूँ छलकता
है कोशिश यही,ख्वाहिश कोई बेसहारा न डूबे!!

46 comments:

Saumya said...

wow...superb poetry!

दिलीप said...

hey aakhri ki chaar panktiyan to lajawaab hai...waah bahut sundar kavita...

arvind said...

देख सकता नहीं जिंदगी को और यूँ छलकता
है कोशिश यही,ख्वाहिश कोई बेसहारा न डूबे!!
...bahut hi badhiya, dardanaak.

Rajnish tripathi said...

देखिए मै आप को नहीं जानता लेकिन प्रसून साहब को पढ़ रहा था, और पढ़ते -पढ़ते नज़रे आप पर टिक गयी और जब आप के कविता को पढ़ा तो मुझे लगा कि मै भी अपने विचार प्रकट करु... तो मैने कुछ कशीदे लिखे है जो आप को भेज रहा हूं । वैसे आप लिखती अच्छा है।


लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किसकी बनी है आलमे-ना-पायदार में

बुलबुल को बाग़बां से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद थी लिखी फ़स्ले-बहार में

कहदो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहां है दिले दाग़दार में

एक शाख़े-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमां
कांटे बिछा दिए हैं दिले-लालज़ार में

उम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

दिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार में
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं

सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है
ये ज़मी दूर तक हमारी है

मैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ
जिससे यारी है उससे यारी है

kunwarji's said...

वाह!

सादगी से व्यक्त की गयी प्रवाहमयी भावनाए...

हर पंक्ति बड़े करीने से सजाई लगती है..
कागज़ पर शब्दों की कढाई लगती है...

कुंवर जी,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रचना में एक-एक शब्द
नगीने की तरह से संजो दिया है!
--
बहुत ही सुन्दर रचना है!

Rajnish tripathi said...

वैसे तो पारुल जी मै आप को नहीं जानता लेकिन प्रसून साहब को पढ़ रहा था और नज़रे आप पर टिक गयी। सोचा कि आप के लिखे कशीदे पढ़े जाएं तो आपकी रचित रचना पढ़ने लगा। न डूबे कविता अच्छी लगी सो मैने टिप्पणी की । वैसे लिखती अच्छा है

उम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं

रोने से और् इश्क़ में बेबाक हो गए
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह में रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।

सारे बदन का खून पसीने में जल गया
इतना चले कि जिस्म हमारा पिघल गया

चलते ही गिन रहे थे मुसीबत के रात दिन
दम लेने हम जो बैठ गये दम निकल गया

अच्छा हुआ जो राह में ठोकर लगी हमें
हम गिर पडे तो सारा जमाना संभल गया

Rajnish tripathi said...

वैसे तो पारुल जी मै आप को नहीं जानता लेकिन प्रसून साहब को पढ़ रहा था और नज़रे आप पर टिक गयी। सोचा कि आप के लिखे कशीदे पढ़े जाएं तो आपकी रचित रचना पढ़ने लगा। न डूबे कविता अच्छी लगी सो मैने टिप्पणी की । वैसे लिखती अच्छा है

उम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं

रोने से और् इश्क़ में बेबाक हो गए
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह में रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।

सारे बदन का खून पसीने में जल गया
इतना चले कि जिस्म हमारा पिघल गया

चलते ही गिन रहे थे मुसीबत के रात दिन
दम लेने हम जो बैठ गये दम निकल गया

अच्छा हुआ जो राह में ठोकर लगी हमें
हम गिर पडे तो सारा जमाना संभल गया

Rajnish tripathi said...
This comment has been removed by the author.
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

देख सकता नहीं जिंदगी को और यूँ छलकता
है कोशिश यही,ख्वाहिश कोई बेसहारा न डूबे!

बहुत खूबसूरत एहसास....

Vandana Singh said...

रात सिहर रही है, टूटे ख़्वाबों की चोट से
चांदनी झिलमिला रही है फिर भी तुझ में
देख!तेरे दिल को रोशन करता ये नज़ारा न डूबे!!
BAHUUUUUT KHOOBSURAT NAJM ..MAJA AA GAYA SUBAH SUBAH PADH KAR :)

Apanatva said...

bahut sunder ek ek pankti asar chod gayee...........
bahut sunder abhivykti.

anoop joshi said...

क्या बात है, एक शेर याद आ गया :-

की कही दिनों से, इन आँखों में नींद नहीं जालिम.

फिर भी कुछ ख्वाब आकर, मेरी छत में मंडराते क्यों है?

संजय भास्‍कर said...

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

shant shukla said...

है यही कोशिश कोई बेसहारा न डूबे सिर्फ शब्दों में नही बल्कि हकीकत में हो हर किसी की जिंदगी की प्राथमिकता में शायद लिखने की जरुरत ही नही होती है ....अच्छा लगा कि अपने से शुरु करके किसी ऐसे पर खत्म लाइने हुई जो सबका है और किसी का नही है ....

shant shukla said...

कोशिश यही कोई बेसहारा न डूबे बहुत खूब अच्छा लगा खुद से शुरु होकर उस पर खत्म करना जिसे हम जानते भी है और नही भी जानते है ...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सुंदर भाव के साथ.....बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

sonal said...

मुझे खबर है कई रोज से तुम सोये नहीं हो
थक भी गए हो इतना कि और रोये नहीं हो

सच में माशूक का इतना ख्याल ... :-)
खूबसूरत नज़्म

वीथिका said...

वह जिसे मानवीय एहसासों की परवाह है
वह जिसे सवेदानाओं की इज्जत करनी आती है
और वह जिसे पारुल सी परखी, जो आकर दे देती है निराकार को भी
सालाम ..
पारुल जी आप बहुत संवेदनशील लिखती हैं
ह्रदय से बधाई !

BODHISATVA said...

really touching
hriday sparshi lekhan
badhai

शिवम् मिश्रा said...

बहुत खूब !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से लिखे हैं एहसास....सुन्दर अभिव्यक्ति

Parul kanani said...

aap sabhi ka tahe-dil se aabhar! :)))))))))))))

Anonymous said...

समेट लेने दे आंसूओं को, पलकों की कोर से
भरोसा कर, न होगी कोई गलती मेरी ओर से
देख सकता नहीं जिंदगी को और यूँ छलकता
है कोशिश यही ख्वाहिश, कोई बेसहारा न डूबे!!

Sudhir K.Rinten said...

Parul JI

aap ki kavita padane ke bad laga ki vastava men abhivyakti jodati kaise hai

2 lines

vakti thapedon se bhale Dariya ne Dhoya Hamko ........
Sahil se vafa karna hamne darakhton se sikha hai ..

Ravi Rajbhar said...

wah-wah 2.2...
har sher aapne aapme bahut kuchh kahta hai...
badhai ho parul ji.

Unknown said...

bahoot sunder kavita hai.baar-baar padhane ko ji chahata hai.bhawanao ke prawah ko disha deti tahe.

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
ज्योति सिंह said...

सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है
ये ज़मी दूर तक हमारी है

मैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ
जिससे यारी है उससे यारी है
bahut khoob likha hai

Deepak Shukla said...

Hi..

Sabne likha hai etna ki..
Ab kuchh bacha nahi..
Sabne to sab kuchh hai kaha..
Bas "WAH" kaha nahi..

WAH., WAH..

DEEPAK..

abhi said...

अरे वाह...क्या कमाल का लिखा है आपने...बेहतरीन... :) :)

आचार्य उदय said...

आईये जानें .... मैं कौन हूं!

आचार्य जी

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुन्दर सोच, शानदार अभिव्यक्ति।
--------
रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?

कडुवासच said...

...बेहतरीन !!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Lagta hai kaafi class padhi hain aapne!
Ha ha ha.....
Utkrisht!

Vivek Jain said...

lajawab!
vivj2000.blogspot.com

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा प्रवाह और बेहतरीन भाव!! आज तो जीत लिया मंच..बहुत खूब, पारुल!! बधाई.

शारदा अरोरा said...

बहुत सुन्दर , क्या रवानगी है , किनारा न डूबे ...

Ashok Singh Raghuvanshi said...

behad bhavpurna.....

पंकज मिश्रा said...

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति। क्या कहने। क्या लिखूं, समझ नहीं पा रहा हूं। शुरू से अंत तक वाह। क्या कहने। बहुत शानदार कविता। मनभावन। अतिसुंदर। आप जैसे लोगों की बहुत जरूरत कवित्व संसार में। मेरी बधाई।
http://udbhavna.blogspot.com/

माधव( Madhav) said...

बहुत ही अच्छी रचना.

स्वाति said...

सुन्दर रचना ..

supriya..... said...

nice,very nice....really i feel the rhythm of words...

kamlakar Mishra Smriti Sansthan said...

koi beshara na dubane paye.besahara ko sahara diya jay...
jeevan ka sakaratamak paksh baya kar rahi hai yah kavita ,bahut dhanyabad...

Raktima said...

awesome!
last two lines in particular...
amazing depth!