Monday, March 1, 2010

नासमझी



जब दूर बहुत दूर
तुम अपने ही ख़्वाबों में मशगूल थे
मेरे ख्वाब तुम्हारे न होने को दे रहे तूल थे ॥
उलझ रहे थे बेवजह ही मेरी अपनी तन्हाई से
खुश नहीं थे वो शायद तुम्हारी रिहाई से
और मैं एकटक देख रही थी यादों का धुंधलापन
तुम्हारे साथ बिताये लम्हे,खा रहे समय की धूल थे ॥
जो याद कभी तुम आते थे,वो आँखों में चुभते थे
मन आवाज लगाता जाता था,पर वो चाहकर भी कहाँ रुकते थे
वो कल के पानी के मोती जैसे बन गए अब शूल थे ॥
खाली कर देना चाहती थी खुद को
खुद में खुद को भी रखा न जाता था
बेस्वाद हो गया था सब कुछ
मन से अब कुछ भी चखा न जाता था
शायद इसलिए अब तक न समझ सकी
तुम कडवी याद थे या कोई मीठी भूल थे ॥

33 comments:

wordy said...

ye samjh aa jaye to mushkil hi kya..sundar!

wordy said...

aaj pichli bahut si rachnaayen dekhi..samay ke saath soch paripakv ho rahi hai..holi ki shubhkamnaayen..

Anonymous said...

"खाली कर देना चाहती थी खुद को"
....
"तुम कडवी याद थे या कोई मीठी भूल थे॥"
सुंदर शब्दों से पिरोई मनःस्थिति - होली की हार्दिक बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है!


"दिल किसी काम में नही लगता,
याद जब से तुम्हारी आयी है।
घाव रिसने लगें हैं सीने के,
पीर चेहरे पे उभर आयी है।
साँस आती है, धडकनें गुम है,
क्यों मेरी जान पे बन आयी है।
गीत-संगीत बेसुरा सा है,
मन में बंशी की धुन समायी है।
मेरी सज-धज हैं, बेनतीजा सब,
प्रीत पोशाक नयी लायी है।
होठ हैं बन्द, लब्ज गायब हैं,
राज की बात है, छिपायी है।
चाहे कितनी बचाओ नजरों को,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।"

Udan Tashtari said...

तुम कडवी याद थे या कोई मीठी भूल थे-वाह!! क्या बात कही है...जबरदस्त रचना! बधाई.


ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.


आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

-समीर लाल ’समीर’

मुंहफट said...

होली पर आपकी बेहतर रचना और होली, दोनों को हार्दिक शुभकामनाएं........www.sansadji.com

संजय भास्‍कर said...

होली की हार्दिक शुभकामनाए इस आशा के साथ की ये होली सभी के जीवन में
ख़ुशियों के ढेर सरे रंग भर दे ....!!

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

मनोज भारती said...

सुंदर कविता... भावों को न समझ पाना ही नासमझी है ।

sm said...

beautiful poem

के सी said...

बहुत बढ़िया
कविता एक पूरे अहसास को सजीव करती हुई है.

मधुकर राजपूत said...

किस्सा ए कसक, उलझन ए ज़िंदगी। दिल दलिद्दर यादों की कोठरी। मन गिरवी रख कर उधार के सपने खरीदो, फसल लहलहाने से पहले ही खलिहान लुट जाए। चुकाते रहो कर्ज़ गिरों रखा वापस नहीं मिलता।
कहीं कहीं सशक्त, कहीं कहीं लचर रचना। अच्छी है।

Parul kanani said...

aap sabhi ko dhanywaad!

सागर said...

कई बार एहसास शब्द को सजीव कर देते हैं. तुकबंदी ना भी करती तो कंटेंट असर करता... पहले भी कहा है यह शुरूआती दिन हैं... (कविता नहीं एहसास के)

Manish said...

मीठी भूल :)

Poonam Agrawal said...

Antim pankti kaafi gahrai liye hue hai....ek asmanjas ki stithi liye hue bhi...ant tah rachna mein dam hai....keep it up....

निर्मला कपिला said...

तुम कडवी याद थे या मीठी भूल ---- यही बात तो समझ से बाहर है। बहुत गहरे जज़वातों से बुनी कविता। बधाई

Saumya said...

too good...

पूनम श्रीवास्तव said...

Bahut khoobasurat ---hardik badhai.
Poonam

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

बहुत सुन्दर भावनाओं की बेहतरीन शब्दों में अभिव्यक्ति।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/03/blog-post.html

Apanatva said...

Bahut pyaree bholee see kavita............

Parul kanani said...

aap sabhi ka bahut bahut dhanywaad!

Dr.R.Ramkumar said...

कड़वी याद.....मीठी भूल......

क्या सभी के साथ वही सबकुछ?

Dr.R.Ramkumar said...

मीठी भूल और कड़वी याद के रास्ते से यह ब्लाग स्वामी की स्वीकृति का पत्थर हटा दें

Ashish (Ashu) said...

तुम कडवी याद थे या कोई मीठी भूल थे ॥
अहा,अति सुन्दर वाकई काबिलेतारीफ

Parul kanani said...

thanx to all of you... :)

Dinbandhu Vats said...

vahut sundar Rachana hai.yahi to duvadha hai man ki jo insan ant ant tak samajhate rahata hai ki yah kadavi yad thi ya mithi bhul. good .

Gaurav Kant Goel said...

Beautiful writing as always!! :)

The loved the pic also!!

Unknown said...

bahut khoob ...prem manushya ki ajeeb sththi ka peetara hai ..prem sabse pahile aapke sva per aakraman kerta hai ....aapko apne jaisa banana chahta hai her premi /premika adhikar chahta hai /chahti hai ..uski herek ichaoo ko apni ichaa ke berkax tolta hai ..yehi se shuru hoti hai vicharoo ki jung ....prem asal mein vah hai joaapko adhik svatrantra kere aapka vicharo ko disha na de nea aapke saath bahe nirpeksh rehker apni upasththi se sahlaye bher ....parul aapki kavita gunj rehi hai ...mein apni roo mein beh gaya ...sunder

डॉ .अनुराग said...

ख्याल बहुत बेहतरीन है .आखिरी शब्द मुझे बहुत जमा ......पर एक बात कहूँ ओर रिफाइन कर सकती थी ...

Parul kanani said...

aap sabka dhanywaad!

Yatish said...

यादों के धुधलके कभी पीछा नहीं छोड़ते
आपने दुखती हुई रूहों को छेड़ दिया
बहुत खूब !!!