When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Saturday, August 28, 2010
मुश्किल
एक ही मुश्किल थी
कि उसकी कोई हद नहीं थी
चाह थी मुद्दत से
मगर वो 'जिद' नहीं थी #
देर तक बैठा था
तन्हाई की फांक लिये
इश्क रूहानी था
पर वो अब तक मुर्शिद नहीं थी #
रोज ख़्वाबों को, बैठ
चाँद सा गोल करता था
फिर भी कोई रात स्याह सी
अब तलक 'ईद' नहीं थी #
गढ़ आया था जेहन में
यूँ तो कई कलमे
इबादत के लिये न मंदिर था
और कोई मस्जिद नहीं थी #
एक ही मुल्क था दिल का
एक ही था अपना मजहब
फासले थे मगर
फिर भी कोई सरहद नहीं थी #
नहीं मालूम,क्यों उसमें
मैं खुद को ढूंढता था
यही लगता था
कि वो औरों सी मुल्हिद नहीं थी #
('मुल्हिद-वो जो समझता है रब हो भी सकता है और नहीं भी ')
Monday, August 16, 2010
हूक!
वो बेवजह ही एक वजह होना
एक चाह......
न खुद में ही खुद का होना !
रोज आवाज देना
और कहना खुद से
रात होते ही ख़्वाबों को
बस सुला देना !
मैं अपनी हूक को
एक नज़्म में भर आया हूँ
कोई पूछे तो बस
चुपके से उसे सुना देना !
वो तन्हाई जिसका
सौदा करना है अभी बाकी
जिंदगी आये तो
उसका मौल बता देना !
मैं उसके ख़त
अभी ही जला आया हूँ
मेरी ख़ामोशी को
हो सके तो और सुलगा देना !
वो अनजाने ही बनता
फिर एक रेत का घर
एक कतरे में ही
उसको यूँ ही बहा देना !
किसी के हाथ लग जाये न
ये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
Tuesday, August 10, 2010
दो पैसे की बातें!
याद आती होंगी न मेरी
वो दो पैसे की बातें
वो गुल्लक सी खनकती
अनगिनत सपनों की रातें #
वो फटे-पुराने पन्नो की
ऊँची सी उड़ाने
वो मिटटी में दबे हुए
मन के कई खजाने
जहाँ अनजाने ही
गुड्डे-गुडिया से थे अपने नाते #
याद आती...........दो पैसे की बातें#
वो मेरा कुछ भी कह देना
और वो बेवजह तुम्हारा हँसना
तब तक शायद नहीं आता था
यूँ भी ख़ामोशी में फंसना
कोई हिसाब न था उन लम्हों का
है अब भी जिंदगी के अधूरे खाते #
याद आती........दो पैसे की बातें#
वो तुम में मेरा उलझना
और फिर मन का खींच जाना
किसी बात पे एकदम रोना
और आंसूओं का पलकों में भींच जाना
फिर कई दिनों तक एक-दूजे को बिलकुल नहीं सुहाते #
याद आती..........दो पैसे की बातें#
वो मेरा कहते रह जाना
पर नहीं तुम्हारा थकना
जब जो मन में आ जाये
सीधा उसको ही बकना
उन ज़ज्बातों की बारिश में
न कभी खुले मन के छाते#
याद आती.......वो दो पैसे की बातें#
तोड़ गए तुम अनजाने ही
मन के कई खिलोने
छोड़ गए तुम खाली खाली
यादों के कुछ कोने
पहले कितना शोर थे करते
अब क्यूँ नहीं बुलाते#
याद आती......दो पैसे की बातें##
(दीपशिखा जी को धन्यवाद,जिनके ब्लॉग से दो पंक्तियाँ लेकर मैंने ये रचना लिखी!)
Wednesday, August 4, 2010
मेरी कलम!
चलती है मन की कलम तो सुकूं सा है
ये कल्पनाओं का घरोंदा मेरे लिये जुनूं सा है !!
जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
उसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!
ये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
इसकी महक है,गर हर दिल तक
तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !!
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
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