When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Wednesday, October 28, 2009
हासिल..
मैं पूछता हूँ जिन्दगी से
तू, कब मुझको रास आएगी?...
मैं कब तलक नापता रहूँगा फासले
और कब तू ख़ुद पास आएगी ?...
कब सिखाएगी जीना?
ख़ुद को ही घूँट घूँट पीना
और कब ये तन्हाई
तेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
कब तलक रहूँगा मैं अजनबी ?
क्या मुझको तू अपना लेगी कभी ?
ख़ुद से दूर जाने की हसरत
क्या मुझे तेरे करीब ले जायेगी ?
मेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ?
मैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
तुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ये बता किस किस हसरत को मुझ में, तू दफनाएगी ?
Thursday, October 8, 2009
फितूर.
तंग सा हो चला था मैं फितूर से
कुछ तो थी खलबली जिंदगी में जरुर से
न थी अपनी ख़बर,न रास्तों का पता
माफ़ हो न सकी ख्वाहिशों की खता
ख़ुद को रोका बहुत,ख़ुद को टोका बहुत
हो चले थे ख्वाब भी मजबूर से ।
जिंदगी का कोई भी ठिकाना नही
इस लिए मुझको उस तक जाना नही
मैं बना लूँगा ख़ुद आशियाना कहीं
न चलूँगा ज़माने के दस्तूर से ।
अपनी तन्हाई से जी भी भरता नही
ख़ुद को चाहकर भी मैं याद करता नही
नापता भी नही औरों से फासला
देखता हूँ ख़ुद को भी, तो बस दूर से ।
Wednesday, October 7, 2009
मैं..
मैं, बेचैन सी सोच के आशियाने में थी
नही मालूम,कौन सी हसरत इस कदर बह जाने में थी ?
चुस्कियां लेती जा रही थी,गर्माहट देती जा रही थी
मगर कोशिश पूरी, सूरज को डूबाने में थी ।
मैं बरसों में भी इतनी तन्हा न हुई थी
जितनी खाली मैं, उस एक पल के खो जाने में थी ।
भूलती जा रही थी धीरे धीरे ख़ुद को
वो अलग बात है ,मैं फिर भी सब दोहराने में थी ।
मेरी हर बात में मैं ही न थी,कोई और ही था शामिल
बहुत मुश्किल,ये जिंदगी बिताने में थी ।
जिस तमन्ना से उड़ना चाह रही थी मैं ये उडान
उसकी हद मिटटी की गहराईयों तक जाने में थी ।
सुलग रहा था मन,गम से लिपटी थी घुटन
पर कौन जाने,आख़िर जिंदगी किस पैमाने में थी ?
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