When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, May 28, 2010
कौन?
मैं हैरां भी हूँ और परेशान भी हूँ ये देखकर
मेरे सपनों के रंग बदलता है कौन?
मेरी तन्हा सी,अनजानी सी आरज़ू में
आखिर बेपरवाह सा मचलता है कौन?
हाँ!मैंने भी भरी थी कभी उडान
न जाने किसके हाथों कटी थी पतंग
मैं अपने हर गम में जब तन्हा ही हूँ
तो मेरे आंसूओं में आखिर यूँ पलता है कौन?
मैं आज तक न समझा
क्या सही और क्या गलत
पर जब भी मिलता हूँ खुद से
खुद को पाता हूँ और सख्त
फिर भी इस पत्थर से दिल में
अनजाना सा आखिर पिघलता है कौन?
चुभ रहा है मेरी आँखों में क्यों ये आइना
नहीं भाता मुझको आखिर क्यों मेरा होना
मैं ढूंढता हूँ आखिर क्यों खुद से ही दूर
किसी अनजाने वक़्त का कोना
धीरे धीरे से हर पल,हर लम्हे में
मुझे,खुद में इतना खलता है कौन?
मैं बैठा हूँ क्यों लफ़्ज़ों से परे
जी रहा हूँ क्यों पल ख़ामोशी भरे
या कि ये ख़ामोशी भी है कहीं दबी
इसको भी मैं न सुन पाया कभी
जिंदगी के इस अनकहे सूनेपन में
फिर यूँ आवाज़ करके चलता है कौन?
Sunday, May 16, 2010
मन..
चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
छूने दे क्या गीला है
बेरंग है या नीला है
कोई तो आकार मिले
कितना है ये नपने दे॥
कच्ची मिटटी का सांचा
खींच जाने दे खांचा
जल जाने दे धूप में
थोडा सा तो पकने दे॥
हो न कहीं खट्टी निंबोली
आने दे शब्दों की टोली
ख़ामोशी को आज जरा
जी भर सब कुछ बकने दे॥
देखूं, जीवन क्या तीखा है
या कि बिलकुल फीका है
ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥
Wednesday, May 12, 2010
तिश्नगी !
ये कैसी तिश्नगी है
कि आंसूओं को भी प्यास लगने लगी है।
आधा सा तुझ में खोया है
और आधा खुद में बोया है
जोड़ा है आज दोनों को जो
पाया यही जिंदगी है।
चाँद भी आज रुखा है
फिर ख्वाब कोई भूखा है
एक टीस जीने की
मन के चूल्हे में फिर सुलगी है।
नींद के उधड़ने से
कुछ फंदे गलत पड़ने से
एक रात जाने क्यों
बरसों से जगी है।
लगता कुछ बेरंग सा है
फिर भी जैसे संग सा है
उसमें ही ख्वाहिश कोई
आज भी भीगी सी है।
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