Saturday, November 18, 2017

पानी है।।



यूं मेरी कहानी भी
एक चुप सी कहानी है
कुछ लफ्ज हैं डूबे से
कुछ नज्मों में पानी हैं।।
वो दर्द भी है गीला
आहों से जो सना हैं
वहां और किसी गम का
आना-जाना मना है
रहती हैं वहां अब भी
कुछ यादें पुरानी हैं।।
कुछ लफ्ज़ हैं डूबे से
कुछ नज्मों में पानी हैं....
वो जो टूटता है मुझ में
है तो मेरा ही होना
रखती हूं जोडकर फिर भी
तुम्हारा भी एक कोना
करती हैं तन्हाई अक्सर
जाने क्यों मनमानी है।।
कुछ लफ्ज़ हैं डूबे से
कुछ नज्मों में पानी है.....

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-11-2017) को "श्रीमती इन्दिरा गांधी और अमर वीरंगना लक्ष्मीबाई का 192वाँ जन्मदिवस" (चर्चा अंक 2792) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर रचना

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  3. बहुत खूब ... डोबे हुए लफ़्ज़ों और आँखों पे पानी से लिखी नज़्म ... दिल के करीब से गुज़र कर ज़ेहन में बैठ जाती है ... दिल को सुकून दे जाती है ...

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  4. Such a nice feeling to read you!

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  5. वाह कमाल का लि‍खा है आपने। आपकी लेखनी की कायल तो पहले से ही थी मगर बीच के दि‍नों में सि‍लसिला टूट सा गया था। एक बार फि‍र जुड़कर अच्‍छा लग रहा है। लाजवाब 

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  6. अति उत्तम, आप नज़्म और गोल शब्द का प्रयोग बहुत अच्छे से कर रही हैं:)

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