Saturday, January 18, 2014

तू!!


नहीं भूला हूँ अभी तेरे-मेरे
हिस्सों के क़िस्से
तेरी एक धूप  होती थी
मेरी एक छाँव  होती थी!!
हंसी के उस मुहाने पर
नदी जैसे तू मुड़ती थी
तेरा अम्बर नुकीला था
उलझकर ही तू उड़ती थी
जहाँ होता था मेरा पेंच
तू नगें पाँव होती थी!!
नींद के उस कोने पर
बड़ी सिन्दूरी लगती थी
इश्क़ तो सोया होता था
न जाने क्यों तू जगती थी 
अपनी ऐसी ही बारिश में
तू खुद ही नाव होती थी!!
अपनी तन्हाई से लगभग
हौले-हौले सरकती थी
जब भी मन खाली होता था
तभी तू ज्यादा थकती थी
खुद के सिरफ़िरे से ख्वाब का
मुकर्रर दांव होती थी!!






17 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    पोस्ट को साझा करने के लिए आभार।

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  2. सुंदर पंक्तियाँ...

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  3. behad umda!!






    vartika!

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  4. मन की गहराई व्यक्त करती पंक्तियाँ।

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  5. jahan hota tha mera pench....
    kya khoob :)

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  6. गहरे एहसास से उपजे भाव ... लाजवाब ...

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  7. पुराना गुलज़ारिया अंदाज़ ताज़ा हो गया!

    लिखते रहिये।

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  8. बहुत सुन्दर

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  9. मन के गहरे भाव लिए .... अच्छी नज़म ...

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  10. लम्बे समयांतराल के आपके ब्लॉग पर आना हुआ - " हिस्सों के क़िस्से" - आह और वाह - सादर

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  11. i m soooooooooooooooooooooooo happpppy...that u show up in my profile girl....lovvddd yr words...seriouslly..dear


    aaah...is rchnaa ko 3 baar ek sath h pdh gyi...

    aur..ye comment krke fir se pdhugi ik bar fir..:)

    lovvdd the way u write

    keep writing

    take care

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  12. धूप छाँव से अहसास जितना पढ़ो डूबते जाते हैं ।

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