Saturday, September 28, 2013

हाँ कुछ....


वो कुछ खामोशी के टुकड़े
पड़े है इस तरह उखड़े
कहानी एक सदी सी है

ज़ुबान जैसे नदी सी है!
यूँ ही बनती-बिगड़ती है
कभी जो दिल पे पड़ती है
कहीं आढी-कहीं टेढ़ी
चलो कुछ जिंदगी सी है !
तिकोने दिन बरसते है
उन्ही बातों पे हंसते है
कि जिनमें बेरूख़ी सी है
हाँ कुछ बेखुदी सी है!
वो हिस्से भी सुनहरे है
जो हम दोनो ने पहरे है
नही यूँ ही चमकते है
दिलों में रोशनी सी है!

18 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (29-09-2013) तुकबन्दी: चर्चामंच - 1383 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. कुछ कुछ संभली, कुछ कुछ बहती,
    कहाँ किसी के बस में रहती।

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  3. रोशनी मकम्मल रहे !
    लिखते रखिये ..

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  4. इन खामोशी के टुकड़ों में एक एक सदी का इतिहास है ... जो कभी खत्म नहीं होता बस सालता है उम्र भर ...

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  5. सुभानाल्लाह ………. लफ़्ज़ों की अठखेलियाँ

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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  7. बहुत सुन्दर कविता

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  8. जिन्दगी सी लहराती हुई....
    कलम में कुछ बात तो जरुर है...

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  9. very beautifully written
    your most welcome on my blog
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  10. nice
    welcome to my blog
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  11. मुझे लगता है कि इस ब्लॉग पर आये अरसा गुज़र गया ।बहुत कुछ जैसे पढ़ने से रह गया ।

    बहुत खूब

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