वो कुछ खामोशी के टुकड़े
पड़े है इस तरह उखड़े
कहानी एक सदी सी है
ज़ुबान जैसे नदी सी है!
यूँ ही बनती-बिगड़ती है
कभी जो दिल पे पड़ती है
कहीं आढी-कहीं टेढ़ी
चलो कुछ जिंदगी सी है !
तिकोने दिन बरसते है
उन्ही बातों पे हंसते है
कि जिनमें बेरूख़ी सी है
हाँ कुछ बेखुदी सी है!
वो हिस्से भी सुनहरे है
जो हम दोनो ने पहरे है
नही यूँ ही चमकते है
दिलों में रोशनी सी है!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (29-09-2013) तुकबन्दी: चर्चामंच - 1383 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कुछ कुछ संभली, कुछ कुछ बहती,
ReplyDeleteकहाँ किसी के बस में रहती।
बहुत बढ़िया,सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
बहुत बढ़िया,सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
रोशनी मकम्मल रहे !
ReplyDeleteलिखते रखिये ..
इन खामोशी के टुकड़ों में एक एक सदी का इतिहास है ... जो कभी खत्म नहीं होता बस सालता है उम्र भर ...
ReplyDeleteसुभानाल्लाह ………. लफ़्ज़ों की अठखेलियाँ
ReplyDeletevery beautiful composition
ReplyDeletekya baat hai!
ReplyDeletelajawab!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteजिन्दगी सी लहराती हुई....
ReplyDeleteकलम में कुछ बात तो जरुर है...
very beautifully written
ReplyDeleteyour most welcome on my blog
iwillrocknow.blogspot.in
nice
ReplyDeletewelcome to my blog
iwillrocknow.blogspot.in
सुन्दर
ReplyDeletebahut sunder bhaav ...
ReplyDeleteमुझे लगता है कि इस ब्लॉग पर आये अरसा गुज़र गया ।बहुत कुछ जैसे पढ़ने से रह गया ।
ReplyDeleteबहुत खूब