Tuesday, May 10, 2011

चाँद को..





छिपा गए थे एक कोने में
फिर मैले से चाँद को
देख लिया था फिर भी मैंने
पानी पर फैले चाँद को
गुपचुप से थे सारे खिलोने
लगे थे तुम न जाने क्या बोने
दबा रहे थे मिटटी में
गंदे से ,पहले चाँद को !
फिर कोई मासूम सी चोरी
पकड़ में है पिछली रातों की बोरी
खोल के सब पढ़ जाऊंगा मैं
तू कुछ भी कह ले चाँद को !
तेरे हाथ में चाँद का होना
उलझी उलझी सी नींद में सोना
सोच रहा हूँ कैसे लूं तुझसे
अम्बर के छेले चाँद को!



40 comments:

  1. बहुत ही प्यारी कविता।

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  2. अद्भुत बिम्बों ,प्रतीकों से सजी एक दार्शनिकता की ओर ले जाती कविता |बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं पारुलजी |

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  3. अद्भुत बिम्बों ,प्रतीकों से सजी एक दार्शनिकता की ओर ले जाती कविता |बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं पारुलजी |

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति।

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  5. Parul ji Jeeti Rahiye...:)God Bless You...:)

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  6. बहुत सुन्दर

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  7. वाह! बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बेहद पसंद आया!

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  8. बहुत उम्दा रचना!
    इसकी चर्चा तो चर्चा मंच पर भी है!

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  9. क्या खूब लिख है आपने ... चाँद को लेकर एक सुन्दर सलोनी सी रचना ... बहुत अच्छा लगा !

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  10. bahut achha very nice
    मेरी झिलमिल सी बोरी
    चाँद को न ढक पायेगी
    देखने की ललक छोड़ दे
    उसमे तेरी सूरत नजर आएगी

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  11. मत लो मेरा चाँद मेरे पास रहने दो ... खूबसूरत रचना

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  12. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  13. nice poem mam
    good one
    check out my blog also

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  14. अपने आप में अनूठी - गूढ़ अर्थों को समेटे- सबसे अलग.

    "छेले" शाब्दिक अर्थ जानना चाहूँगा

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  15. कोमल अहसासों से ओतप्रोत बहुत सुन्दर रचना..

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  16. कितने गहरे भाव छुपा रखे है आपने बस कुछ पंक्तियों में...बहुत सुंदर...धन्यवाद।

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  17. मैला चाँद, पानी में चाँद.. खूब लिखा है .. :)

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  18. rachnaon k sath lagaye gaye chitra/panintings aap k khyalon ki tarah khoobsurat hain--congro.

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  19. देख लिया फिर भी मैंने पानी पर फैले चाँद को ...
    शब्दों में जैसे झील में चाँद का अक्श उतर आया ..

    छेले में मेरा मन भी अटका है ...अर्थ ?

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  20. पहली बार आने का सोभाग्य मिला है --बहुत सुंदर रचना

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  21. बहुत प्यारी रचना ...

    छेले की जगह शायद छैले आना चाहिए था ...

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  22. haan sangeeta ji aap bilkul sahi hai..sahi shbd yahi hai.

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  23. बहुत खूब ... ग़ज़ब के बिंब उतारे हैं इस नज़्म में ... गहरे में डूब जाने को जी करता है ... बहुत लाजवाब ...

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  24. chail chbile chaile ko pana itna asan nhi jitna bhago pichhe is ke door bhag jayega munh fero to kud b khud ye aage aa jyega
    koshish jari rkhen
    miljayega
    bdhai
    ved vyathit

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  25. सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति 'चाँद' के बिम्ब को विभिन्न कोण से प्रस्तुत करती हुई.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.आपका हार्दिक स्वागत है.
    आपको निश्चितरूप से अच्छा लगना चाहिये.

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  26. aapko padhnaa jaise gulzar da ko padhne jaisaa hota hai! Excellent!!!

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  27. बहुत खूब ! शुभकामनायें आपको !!

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  28. बहुत प्यारी सी कविता...बधाई हो.

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  29. सच कहूं, अन्यथा बिल्कुल भी न लेना, मुझे समझ में नहीं आ पा रही है यह रचना..., जबकि मैं आपकी रचनाओं का कायल हूं....।

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  30. वाह....वाह....सुभानाल्लाह........चाँद को क्या-क्या बना डाला आपने......नज़र न लगे कहीं इस प्यारे से चाँद को.......बहुत खूब |

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  31. पारुल जी,

    बहुत सुन्दर रचना आप ने चाँद का बहुत अच्छा उपयोग किया है!

    बधाई

    -आशु

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  32. ohho ye chand bhi khoob bhaya!

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  33. masum si rachna.. :)





    vartika!

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  34. पारुलजी,
    क्या बात है,आप भी व्यस्त हो गई, इस रचना के बाद कुछ नहीं लिखा? दरअसल मैं ब्लॉग पर आता हूं ताकि कुछ पढने को मिलता रहे..आपकी रचनायें मुझे हर-हमेश सुकून सी लगी है..।

    लिखिये जल्द ही कुछ।

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  35. पारुल
    कविता पढ़ने के बाद
    आपके लिए

    चांद का सिक्का छुपा लिया है
    तुमने मोती चबा लिया है

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  36. लगे थे तुम न जाने क्या बोने
    दबा रहे थे मिटटी में
    गंदे से ,पहले चाँद को !
    फिर कोई मासूम सी चोरी
    पकड़ में है पिछली रातों की बोरी
    खोल के सब पढ़ जाऊंगा मैं

    पारुल साहिबा!
    रहने दिया कुछ कहीं अनपढ़ा क्या
    गढ़ रहे हो ,रहा कुछ अनगढ़ा क्या
    चांद खुरच कर कुछ नक्श बनाए हैं
    हिमालय जैसी चाहत की चढ़ाई चढ़े क्या ?

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