छिपा गए थे एक कोने में
फिर मैले से चाँद को
देख लिया था फिर भी मैंने
पानी पर फैले चाँद को
गुपचुप से थे सारे खिलोने
लगे थे तुम न जाने क्या बोने
दबा रहे थे मिटटी में
गंदे से ,पहले चाँद को !
फिर कोई मासूम सी चोरी
पकड़ में है पिछली रातों की बोरी
खोल के सब पढ़ जाऊंगा मैं
तू कुछ भी कह ले चाँद को !
तेरे हाथ में चाँद का होना
उलझी उलझी सी नींद में सोना
सोच रहा हूँ कैसे लूं तुझसे
अम्बर के छेले चाँद को!
फिर मैले से चाँद को
देख लिया था फिर भी मैंने
पानी पर फैले चाँद को
गुपचुप से थे सारे खिलोने
लगे थे तुम न जाने क्या बोने
दबा रहे थे मिटटी में
गंदे से ,पहले चाँद को !
फिर कोई मासूम सी चोरी
पकड़ में है पिछली रातों की बोरी
खोल के सब पढ़ जाऊंगा मैं
तू कुछ भी कह ले चाँद को !
तेरे हाथ में चाँद का होना
उलझी उलझी सी नींद में सोना
सोच रहा हूँ कैसे लूं तुझसे
अम्बर के छेले चाँद को!
बहुत ही प्यारी कविता।
ReplyDeleteअद्भुत बिम्बों ,प्रतीकों से सजी एक दार्शनिकता की ओर ले जाती कविता |बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं पारुलजी |
ReplyDeleteअद्भुत बिम्बों ,प्रतीकों से सजी एक दार्शनिकता की ओर ले जाती कविता |बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं पारुलजी |
ReplyDeletewaah bahut sundar komal komal...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteParul ji Jeeti Rahiye...:)God Bless You...:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर, बधाई !
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बेहद पसंद आया!
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना!
ReplyDeleteइसकी चर्चा तो चर्चा मंच पर भी है!
क्या खूब लिख है आपने ... चाँद को लेकर एक सुन्दर सलोनी सी रचना ... बहुत अच्छा लगा !
ReplyDeletebahut achha very nice
ReplyDeleteमेरी झिलमिल सी बोरी
चाँद को न ढक पायेगी
देखने की ललक छोड़ दे
उसमे तेरी सूरत नजर आएगी
मत लो मेरा चाँद मेरे पास रहने दो ... खूबसूरत रचना
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
nice poem mam
ReplyDeletegood one
check out my blog also
अपने आप में अनूठी - गूढ़ अर्थों को समेटे- सबसे अलग.
ReplyDelete"छेले" शाब्दिक अर्थ जानना चाहूँगा
कोमल अहसासों से ओतप्रोत बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteकितने गहरे भाव छुपा रखे है आपने बस कुछ पंक्तियों में...बहुत सुंदर...धन्यवाद।
ReplyDeleteमैला चाँद, पानी में चाँद.. खूब लिखा है .. :)
ReplyDeleterachnaon k sath lagaye gaye chitra/panintings aap k khyalon ki tarah khoobsurat hain--congro.
ReplyDeleteदेख लिया फिर भी मैंने पानी पर फैले चाँद को ...
ReplyDeleteशब्दों में जैसे झील में चाँद का अक्श उतर आया ..
छेले में मेरा मन भी अटका है ...अर्थ ?
पहली बार आने का सोभाग्य मिला है --बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना ...
ReplyDeleteछेले की जगह शायद छैले आना चाहिए था ...
haan sangeeta ji aap bilkul sahi hai..sahi shbd yahi hai.
ReplyDeleteबहुत खूब ... ग़ज़ब के बिंब उतारे हैं इस नज़्म में ... गहरे में डूब जाने को जी करता है ... बहुत लाजवाब ...
ReplyDeletechail chbile chaile ko pana itna asan nhi jitna bhago pichhe is ke door bhag jayega munh fero to kud b khud ye aage aa jyega
ReplyDeletekoshish jari rkhen
miljayega
bdhai
ved vyathit
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति 'चाँद' के बिम्ब को विभिन्न कोण से प्रस्तुत करती हुई.
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.आपका हार्दिक स्वागत है.
आपको निश्चितरूप से अच्छा लगना चाहिये.
aapko padhnaa jaise gulzar da ko padhne jaisaa hota hai! Excellent!!!
ReplyDeleteबहुत खूब ! शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteबहुत प्यारी सी कविता...बधाई हो.
ReplyDeleteसच कहूं, अन्यथा बिल्कुल भी न लेना, मुझे समझ में नहीं आ पा रही है यह रचना..., जबकि मैं आपकी रचनाओं का कायल हूं....।
ReplyDeleteवाह....वाह....सुभानाल्लाह........चाँद को क्या-क्या बना डाला आपने......नज़र न लगे कहीं इस प्यारे से चाँद को.......बहुत खूब |
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteपारुल जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना आप ने चाँद का बहुत अच्छा उपयोग किया है!
बधाई
-आशु
bahut sunder rachna...
ReplyDeleteohho ye chand bhi khoob bhaya!
ReplyDeletemasum si rachna.. :)
ReplyDeletevartika!
पारुलजी,
ReplyDeleteक्या बात है,आप भी व्यस्त हो गई, इस रचना के बाद कुछ नहीं लिखा? दरअसल मैं ब्लॉग पर आता हूं ताकि कुछ पढने को मिलता रहे..आपकी रचनायें मुझे हर-हमेश सुकून सी लगी है..।
लिखिये जल्द ही कुछ।
पारुल
ReplyDeleteकविता पढ़ने के बाद
आपके लिए
चांद का सिक्का छुपा लिया है
तुमने मोती चबा लिया है
लगे थे तुम न जाने क्या बोने
ReplyDeleteदबा रहे थे मिटटी में
गंदे से ,पहले चाँद को !
फिर कोई मासूम सी चोरी
पकड़ में है पिछली रातों की बोरी
खोल के सब पढ़ जाऊंगा मैं
पारुल साहिबा!
रहने दिया कुछ कहीं अनपढ़ा क्या
गढ़ रहे हो ,रहा कुछ अनगढ़ा क्या
चांद खुरच कर कुछ नक्श बनाए हैं
हिमालय जैसी चाहत की चढ़ाई चढ़े क्या ?