When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Thursday, March 31, 2011
उम्र धानी सी
अब भी उलझी है नींद में
तुम्हारी उँगलियों की थपकी
अब भी मन के बंजर में
कोई तुम सा रहता है
तुम बीती रातों के चाँद ही सही
अब भी अम्बर के सूनेपन में
तुम्हारा दरिया बहता है !
अब भी आँखों के धागे
बनाकर ख़्वाबों की किश्ती
डूब जाते है तुम में
खोजते है वही बस्ती
जहाँ मिटकर रोज ही
बनता हूँ मैं
वहां यादों का कारवां
अक्सर ही ठहरता है !
वो कुछ हरफ जो अब भी
होंठो से चिपके रहते है
मेरी ख़ामोशी को
तेरी ग़ज़ल कहते है
और तन्हाई जैसे
तेरी महफ़िल हो जाती है
मेरा वजूद हर रोज ही
ऐसे तुझको पहरता है !
यही होता है बस
जब भी खुद को बुनता हूँ
कोई भी लिबास हो
रंग तेरा ही चुनता हूँ
और हो जाती है
फिर एक उम्र धानी सी
तुझको तरसती जिंदगी की
हर साँस पानी सी
और मेरा वजूद पल पल
बूँद-बूँद तुमसे भरता है !
बहुत ही सुंदर कविता मन प्रसन्न हो गया| पारुल जी आपकी लेखनी में निरंतरता के साथ-साथ ताजगी भी बनी रहे |बहुत सुखद लगा बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteयही होता है बस
ReplyDeleteजब भी खुद को बुनता हूँ
कोई भी लिबास हो
रंग तेरा ही चुनता हूँ
यहाँ कविता में रहस्य का भाव उभर आता है और हर एक लिबास में तुझे तरजीह देना खुद के अस्तित्व को तुझ में शामिल करना है ..बहुत सुंदर भाव ..आपका आभार
वाह जी,
ReplyDeleteइस कविता का तो जवाब नहीं !
विचारों के इतनी गहन अनुभूतियों को सटीक शब्द देना सबके बस की बात नहीं है !
कविता के भाव बड़े ही प्रभाव पूर्ण ढंग से संप्रेषित हो रहे हैं !
sadaiv kee bhati badiya abhivykti.......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखी है आपने!
ReplyDeleteबधाई!
"कोई भी लिबास हो
ReplyDeleteरंग तेरा ही चुनता हूँ"
यही तो दीवानापन है ........गज़ब की नज़्म है
"कोई भी लिबास हो
ReplyDeleteरंग तेरा ही चुनता हूँ"
अहा!! क्या बात है..बहुत खूब पारुल!!
जब भी खुद को बुनता हूँ
ReplyDeleteकोई भी लिबास हो
रंग तेरा ही चुनता हूँ
...tum hi tum..
bahut badhiya !
jeeti rahiye....:)
ReplyDeleteप्रेम भरे ये हल्के हल्के लम्हे सदा याद रहते हैं।
ReplyDeleteसुभानाल्लाह.....पारुल जी बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट आई ...शानदार, बेहतरीन, लाजवाब लगी......आजकल आप हमारी दहलीज़ पर कभी नहीं आते.....कोई खता हुई क्या हमसे...
ReplyDeleteरूमानी सा ...एक तो पिया परदेस में ऊपर से ऐसी नज़्म ..अब मैं क्या करूं
ReplyDelete्गहन अनुभूति का चित्रण …………बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteno words dear,,its ur great achievement!!!
ReplyDeleteno words dear,it's great achievement...keep it up.
ReplyDeleteno words dear,,keep it up..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteऔर हो जाती है
फिर एक उम्र धानी सी
तुझको तरसती जिंदगी की
हर साँस पानी सी
और मेरा वजूद पल पल
बूँद-बूँद तुमसे भरता है !
बहुत खूब.
बहुत खूब
ReplyDeleteअति सुन्दर
हर शब्द खास हैं
इसी के नूर में श्री कृष्ण ने गीता थी कही.
ReplyDeleteइसी की रोशनी में आयतें उतरीं थीं कभी.
Read Full Poem In Blog..
Blog is waiting your comments
http://paraavaani.blogspot.com/2011/04/blog-post_01.html
bahut sundar...rachna!!
ReplyDeleteक्या बात है....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
वाह बहुत खूब.... आजकल मैं कम ही ब्लोग्भ्रमण कर पाता हूँ..लगता है आप भी व्यस्त हैं बहुत दिनों बाद शायद आपके ब्लॉग पर कुछ पोस्ट किया है आपने.....
ReplyDeleteखैर देर आये और दुरुस्त भी....
parul ji
ReplyDeletebahut hi badhiya avam antas tak pahunchne wali aapki rachna bahut hibehatreen hai.
bahut hi gahan anubhuti se ot-prot aur sudarta ke saath shbdo ka chayan.
ek bhav-bhini prastuti
bahut badhai
poonam
दिल के हर कोने का कोमलता से स्पर्श करती कविता !
ReplyDeleteumda!
ReplyDeletesilsila jaldi jaldi jari rakhiye..
ReplyDeletetouchy!!
ReplyDeletevartika.
ताज़गी लिए हवा के झोंके की तरह लाजवाब नज़्म ... बहुत ही उम्दा ...
ReplyDeleteजब भी खुद को बुनता हूँ
ReplyDeleteकोई भी लिबास हो
रंग तेरा ही चुनता हूँ
और शायद यही वह रंग है जो शाश्वत है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जब भी खुद को बुनता हूँ
ReplyDeleteकोई भी लिबास हो
रंग तेरा ही चुनता हूँ
और शायद यही वह रंग है जो शाश्वत है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
तुम बीती रातों के चाँद ही सही
ReplyDeleteअब भी अम्बर के सूनेपन में
तुम्हारा दरिया बहता है !
पारुल आपकी नज्मों में अब परिपक्वता आती जा रही है ....!!
फिर एक उम्र धानी सी
ReplyDeleteतुझको तरसती जिंदगी की
हर साँस पानी सी
और मेरा वजूद पल पल
बूँद-बूँद तुमसे भरता है !
bahut lajawab rachna....bahut sunderta se katra katra kar ke ehsaso ki fuharo se rachna ka sawan barsaya hai.
यही होता है बस
ReplyDeleteजब भी खुद को बुनता हूँ
कोई भी लिबास हो
रंग तेरा ही चुनता हूँ
और हो जाती है
फिर एक उम्र धानी सी
वाह बहुत सुन्दर ...
सुंदर उम्र धानी सी
ReplyDelete"जब भी खुद को बुनता हूँ
ReplyDeleteकोई भी लिबास हो
रंग तेरा ही चुनता हूँ
और हो जाती है
फिर एक उम्र धानी सी
तुझको तरसती जिंदगी की
हर साँस पानी सी"
कितनों को झकझोर दिया - वाह वाह
wah!
ReplyDeletesahityasurbhi.blogspot.com
ye to sidhe sidhe bhawnaon ki nakkashi hai!
ReplyDeletebaat dil mein ghar kar gayi!
ReplyDeletevakai har lafz khaas hai!
ReplyDeletevartika!
fir ek umr dhaani si ,
ReplyDeletetujhko tarasti zindgi kee ,
har saans paani si ,
kismat apni apni kahaani si .....
veerubhai .
(bhaav kanikaaon ke liye badhaai ...)
ohh kya baat hai!
ReplyDeleteohh kya baat hai!
ReplyDeleteultimate!
ReplyDeleteas usal close to my heart :)
ReplyDeleteगहन अनुभूति का चित्रण
ReplyDeleteकोई भी लिबास हो
ReplyDeleteरंग तेरा ही चुनता हूँ
!!!!!!!!!!!!!!
सुन्दर !!!!!!
आपकी शब्दों में जादू है ...
ReplyDeleteexcellent, exceptional, flow of emotions with words
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