याद है तुम्हे
कभी मेरे जीवन का धागा
तुम्हारी जिंदगी में उलझ गया था !
उधड गया था मैं यकायक
सुलझाने में जब तुमसे खींच गया था !
बिखर गए थे जैसे सारे ताने-बाने
एक दूजे में सिमटे से दो अनजाने
मैं भटक गया था लफ़्ज़ों के फेर में
और तुम कहीं ख़ामोशी के ढेर में
इस बेवक्त की खींचतान में
वो प्रीत भरा ख़त यूँ ही फट गया था !
किस अल्हड़पन से ले रहे थे हम पंगें
उड़कर अपने-अपने मन की पतंगें
एक डोर-दूजी डोर से लिपटने को थी
जैसे हाथ लग गयी थी दबी सी उमंगें
देर तक चलता रहा था ये सिलसिला
और बस फिर नींद के मांझे से मांझा कट गया था !
कभी मेरे जीवन का धागा
तुम्हारी जिंदगी में उलझ गया था !
उधड गया था मैं यकायक
सुलझाने में जब तुमसे खींच गया था !
बिखर गए थे जैसे सारे ताने-बाने
एक दूजे में सिमटे से दो अनजाने
मैं भटक गया था लफ़्ज़ों के फेर में
और तुम कहीं ख़ामोशी के ढेर में
इस बेवक्त की खींचतान में
वो प्रीत भरा ख़त यूँ ही फट गया था !
किस अल्हड़पन से ले रहे थे हम पंगें
उड़कर अपने-अपने मन की पतंगें
एक डोर-दूजी डोर से लिपटने को थी
जैसे हाथ लग गयी थी दबी सी उमंगें
देर तक चलता रहा था ये सिलसिला
और बस फिर नींद के मांझे से मांझा कट गया था !
aur nind ke manjhe se manjha kat gaya...:)
ReplyDeletebehtareen prastuti..!
मुझे भी छंद लिखना सिखा दें... तुकबंदी मैं भी सीखना चाहता हूँ, कैसे जोड़ा जाता है इसमें... कई बार तो मक्तक या छनिका सी बनती है. पर पूरी कविता नहीं, हालांकि यह आपकी पिछली कविताओं से कमज़ोर हैं पर भाव पक्के हैं/लग रहे हैं...
ReplyDeletebade gahre khyaal
ReplyDeleteरिश्तों के तागे बहुत कच्चे होते है ... ज्यादा खींचतान में टूट जाने का डर रहता है ,,, बहुत खूब पारुल जी
ReplyDeletesagar ji k sath main bhi sehmat hu.
ReplyDeleteइस बेवक्त की खींचतान में
ReplyDeleteवो प्रीत भरा ख़त यूँ ही फट गया था !
sunder abhivyakti,
abhaar.......
पारुल जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
कभी मेरे जीवन का धागा
तुम्हारी जिंदगी में उलझ गया था !
उधड गया था मैं यकायक
सुलझाने में जब तुमसे खींच गया था !
बहुत भावपूर्ण !
जीवन के अनापेक्षित वाकयों का अंतर की नमी के साथ चित्रण ! मन में घर बनाने में समर्थ रचना के लिए आभार !
और बस फिर नींद के मांझे से मांझा कट गया था …
कविता का समापन भी मन को स्पर्श करता है …
एक उत्कृष्ट रचना के लिए साधुवाद !
♥ बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही सुन्दर और संवेदनशील!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता /बहुत ही खूबसूरत सोच के लिए आपको बधाई |निरंतरता की उम्मीद के साथ ...........
ReplyDeleteउधड गया था मैं यकायक
ReplyDeleteसुलझाने में जब तुमसे खींच गया था !
"अनुपम" compare करना मेरी फितरत नही!
नींद के माझे न जाने कितनी सपनो की डोर काट देते हैं। अच्छे भाव्\ शुभकामनायें।
ReplyDeleteइतना खुबसूरत की शब्दों में ब्यान करने के बाद भी दिल को सुकून नहीं मिल रहा बहुत ही खुबसूरत अंदाज़ और उतना ही खुबसूरत शब्दों का ताना - बाना |
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई दोस्त |
संबंध भी धागों की तरह उलझने लगें तो उन्हें खीचने की बजाय सुकून से सुलझाना होता है।
ReplyDeleteअजीब सा सोंधापन है इस रचना में
ReplyDeleteइस नज्म में आप एक पूरा भाव लेकर चलीं हैं ....
ReplyDeleteशुरू से अंत तक .....
बहुत सुंदर .....!!
यकीन मानिये पारुलजी, जब भी अपने में अकेला होता हूं, चाहता हूं हवा के झौंको संग झूमना या फिर स्मृतियों की आगोश में खोना, या किसी प्रेम की स्वप्नील तरंगों में खुद को डूबो देना तो आपकी रचनायें मुझे हरहमेश सराबोर कर दिया करती है। जो खुद के अन्दर खोजता हूं, वो यहां मिल जाता है। बहुत नाजुक होते हैं शब्द और उनके गहरे अर्थ जो मुझे बहला दिया करते हैं। यह रचनाकार की सार्थकता है कि उससे किसी को सुख पहुंच रहा है या कोई अपनी चीज उसकी रचनाओं मे देख रहा है। धन्यवाद दूंगा आपको, क्योंकि मैं सोच सकता हूं किंतु लिख नहीं सकता। और लिखा हुआ मैं यहीं पा जाता हूं।
ReplyDeleteबहरहाल,"सुलझाने में जब तुमसे खींच गया था !..." में 'खींच' दूर होने संबंधित भी अनुभव हुआ, और वो डोर जो आपस में लिपटी थी, जिसका दार्शनिक भाव यही प्रतीत हुआ कि लिपटना संकेत है छूटने का, कट जाने का..। एक फारसी शे'र याद आ रहा है, जिसका मजमून कुछ इस प्रकार है कि- " दफअतन तर्के तआल्लुक भी एक रुसवाई है, उलझे दामन को छुडाते नहीं यूं झटका देकर..."। खैर...। बहुत अच्छी रचना।
ओफ्फो !! ये नींद भी मुसीबत है !
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरती से लिखी है कविता ,पारुल जी !!
वहां,
ReplyDeleteउन अलसाए रस्तों के किनारे
सुस्त सा दरिया है कोई.
कभी बचपन में मैंने
वहां कागज़ की इक नाव डाली थी.
सूना है कि,
आज भी वह नाव वहां मद मस्त बहती है
bahut sundar....
ReplyDeletebahut khoob.. kaisi hain parul ji..??
ReplyDeleteखूबसूरत....
ReplyDeleteसागर से सहमति है.. पिछली रचनाओ से थोडी कच्ची पर भाव पक्के
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरती से लिखी है कविता| धन्यवाद|
ReplyDeleteबस फिर नींद के मांझे से मांझा कट गया था !
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
लेखन में ताजगी है
सुन्दर भावों से सजी सुन्दर रचना
बधाई / आभार
मैं भटक गया था लफ़्ज़ों के फेर में
ReplyDeleteऔर तुम कहीं ख़ामोशी के ढेर में
lafzon ke fer me khamoshi dher ho hi jaati hai...bahut badhiya likha hai aapne..sadhuvaad.
ultimate ji
ReplyDeleteबहुत खूब ... जिंदगी का टांका उध्द जाए तो सँभालने में बहुत वक़्त लगता है ... दिल के जज्बातों को लिख दिया है आपने ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसलाम.
hmm :)
ReplyDeleteis silsiley ko aage badhao ab :)
ReplyDeletegud one..keep going!!
ReplyDeleteमांझे से मांझा कट गया...... यह लाइन तो कमाल की हैं.... बहूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊत ही ख़ूबसूरत कविता...........
ReplyDeleteRegards
लफ्जों के फेर और खामोशी के ढेर में उलझे रिश्तों की दास्ताँ का अच्छा चित्रण है. एक दुसरे को जानने और समझने की प्रक्रिया में कभी बेवक्त ही ऐसी खामोशिओं से हमारा साबका पड़ता है. लेकिन हमारी तलाश कायम रहती है. जिस कवि की कल्पना में जिन्दगी प्रेम गीत है, वह एक प्रेम ख़त फट जाने से और प्रेम ख़त लिखना थोड़ी छोड़ देगा. हाँ बस दर्द गहरा हो तो भरने में वक्त लग जाता है. अच्छी रचना के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteWah kitane gahri baate hain..!
ReplyDeleteending bahut achchi hai.
der se aane ke liye mafi chahunga.
parul ji
ReplyDeletebahut hi batreen prastuti jo gahan bhavo ko samete hue hai .
bahut bahut dhanyvaad
poonam
bahut bahut badiya.........mazza aa gaya padh kar.........
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeletedil ke kareeb lagi!
ReplyDeletesarahaniy prayas!
ReplyDeletesoch se uljhna har kisi ke bas ka nahi!
ReplyDeletevartika!
यूँ तो रिश्तों की डोर नाजुक होती है पर उलझे बिना सुलझ्ती भी नहीं
ReplyDeletesadaive kee bhati choo gayee ye rachana bhee.
ReplyDeleteab swasthy me sudhar hai.
No.......new post.... busy schedule?????? hope very soon will see new post...
ReplyDeleteRegards
bahot achchi lagi.
ReplyDeleteआदरणीया पारुल जी नमस्ते |लिखने की गति इतनी धीमी क्यों हो गई है |एक पाठक होने के नाते जानने की जिज्ञासा हो रही है |
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