Friday, May 28, 2010

कौन?


मैं हैरां भी हूँ और परेशान भी हूँ ये देखकर
मेरे सपनों के रंग बदलता है कौन?
मेरी तन्हा सी,अनजानी सी आरज़ू में
आखिर बेपरवाह सा मचलता है कौन?
हाँ!मैंने भी भरी थी कभी उडान
न जाने किसके हाथों कटी थी पतंग
मैं अपने हर गम में जब तन्हा ही हूँ
तो मेरे आंसूओं में आखिर यूँ पलता है कौन?
मैं आज तक न समझा
क्या सही और क्या गलत
पर जब भी मिलता हूँ खुद से
खुद को पाता हूँ और सख्त
फिर भी इस पत्थर से दिल में
अनजाना सा आखिर पिघलता है कौन?
चुभ रहा है मेरी आँखों में क्यों ये आइना
नहीं भाता मुझको आखिर क्यों मेरा होना
मैं ढूंढता हूँ आखिर क्यों खुद से ही दूर
किसी अनजाने वक़्त का कोना
धीरे धीरे से हर पल,हर लम्हे में
मुझे,खुद में इतना खलता है कौन?
मैं बैठा हूँ क्यों लफ़्ज़ों से परे
जी रहा हूँ क्यों पल ख़ामोशी भरे
या कि ये ख़ामोशी भी है कहीं दबी
इसको भी मैं न सुन पाया कभी
जिंदगी के इस अनकहे सूनेपन में
फिर यूँ आवाज़ करके चलता है कौन?

37 comments:

  1. कौन है वो उसी की तो तलाश है
    बहुत खूब ,उम्दा

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  2. कविता मन को छू लेने वाली है

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  3. बेहद उम्दा रचना .........बधाइयाँ !

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  4. kya kehna, aapki is rachnaa ka.
    bahut khubsurti se apne ehsaas ko sabdho me piroyaa hain aapne.

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  5. सादर !
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
    उसका आना उसका जाना
    उसका अंदाज वह एहसास
    कही और नहीं मिलता
    जो है उसके पास |
    रत्नेश त्रिपाठी

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  6. मैं आज तक न समझा
    क्या सही और क्या गलत

    hamesha kee tarah
    bahut hee sunder rachana.........

    मैं आज तक न समझा.ye panktee confuse kar gayee.......
    samajh gayee na ........mera tatpary kya hai..........

    pahle bhee ek do rachanao se kuch aisa hee aabhas hua tha.......
    lajawab kavita.......

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  7. खुद से बेहतरीन अंदाज़ में पूछे गए ये मुश्किल से सवाल.. काश कि जवाब भी मिल जाता..

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  8. मैं हैरां भी हूँ और परेशान भी हूँ ये देखकर
    मेरे सपनों के रंग बदलता है कौन?
    मेरी तन्हा सी,अनजानी सी आरज़ू में
    आखिर बेपरवाह सा मचलता है कौन?

    चुभ रहा है मेरी आँखों में क्यों ये आइना
    नहीं भाता मुझको आखिर क्यों मेरा होना
    मैं ढूंढता हूँ आखिर क्यों खुद से ही दूर
    किसी अनजाने वक़्त का कोना


    किये है फिर जिन्दगी ने जिन्दगी से कठिन सवाल..उत्तर हैं कि लापता..क्योंकि उत्तर जब तक लपक कर आते हैं कुछ और सवाल उसे धकियाकर दूर कर देते हैं...

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  9. हर बार एक नया एहसास छू लेता है मुझे!

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  10. .aur haan mere blog par...
    तुम आओ तो चिराग रौशन हों.......
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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  11. KYA KHUB LIKHA HAI AAPNE...
    AAPKE AISI KAVITA YAHAN LIKHTA HAI KAUN.....
    badhai ...

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  12. kavita dil mein utar gayi..
    bahut hi behtareen....

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  13. इस मन को समझ पाना हमेशा से मुश्किल रहा है...ना जाने कितने रूप है इसके...!एक शख्श में ही हजारों शख्श छुपे हुए है...बहुत खूब

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  14. पहली पंक्तियों ने ही दिल को छू लिया.... बहुत अच्छी लगी यह कविता.... एकदम दिल को छू गई....

    रिगार्ड्स...

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  15. उस कौन की तलाश ... निरंतर जारी तलाश ... लाजवाब अभिव्यक्ति है ...

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  16. kaun hai jo sapnon mein aaya
    kaun hai jo dil mein samaya..
    achanak hi ye geet baj utha
    written gracefully
    gud luck!

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  17. jitni sundar kavita hai utna hi sundar chitra bhi!

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  18. भावुकता भरी कविता. भाव सने सवाल. बेहतरीन। चौराहा पर आने के लिए धन्यवाद भी.

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  19. भावुकता भरी कविता...भाव सने सवाल...बेहतरीन। चौराहा पर आने के लिए धन्यवाद भी.

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  20. आपकी रचनाएँ बहुत ही सरल, सुंदर और सौम्य है जिसपर अच्छी टिप्पणी करने के लिए बहुत सोचना पड़ता है
    आफरीन...

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  21. jeevan ki es aapa dhapi me hum khud se hi dur hote ja rahe hai........apne ko talash rahe hai 'koyn ' ke roop me
    thanks a lot

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  22. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  23. Aakhir mere aanshuo me palata hai kaun?nazar ke phalak ko thoda vistrit ker le to puri dooniya ka dard palane lagata hai

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  24. The way poetry appeal is overwhelming. When I started just one poem and read all the poems of the blog. Nice …………………………..Very Nice .

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  25. चूंकि कविता के संस्कारों से अच्छी तरह वाकिफ हूँ, इसलिए जानता हूँ की एक रचनाकार अपने पाठकों से यह भी जानना चाहता है कि उसे कौन सी पंक्तियाँ ज्यादा अच्छी लगीं...
    यकीन मानिए, नीचे लिखी हुई पंक्तियों को पढ़कर मैं literally वाह वाह कर बैठा...
    रवीश जी तो ब्लागिंग का हब बन चुके हैं...वहां आपके कमेन्ट पढता रहा हूँ...जहां तक याद आता है एक बार आपने कुछ बेहतरीन पंक्तियाँ लिखी थी...उन पंक्तियों को कई लोगों ने सराहा था जिनमें से मैं भी एक था....
    आपको पढने के बाद तो आपके घर रेगुलर आना पड़ेगा...हमारे यहाँ भी आपके दर्शन होते रहेंगे तो संवाद बना रहेगा....:)
    कविता की सबसे मोहक पंक्तियाँ हैं-

    मैं हैरां भी हूँ परेशां भी हूँ ये देखकर,
    मेरे सपनों के रंग बदलता है कौन..

    धीरे धीरे से हर पल हर लम्हे में,
    मुझे खुद में इतना खलता है कौन..

    ज़िंदगी के इस अनकहे सूनेपन में,
    फिर यूं आवाज़ करके चलता है कौन...

    बधाइयां!

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  26. मैं हैरां भी हूँ और परेशान भी हूँ ये देखकर
    मेरे सपनों के रंग बदलता है कौन?
    देखने के बाद भी सवाल? और जब एसा होता है तब यह मान लिया जाता है कि हम कुछ ज्यादा बैचेन हैं। किसी के लिये...और वो 'किसी' सपनो के रंग के साथ ही हमेशा खेलता है..कितना ताज्जुब है इंसानी दिल। उडान और कटना फिर गम में अकेलापन और यह आभास कि पलता है कौन? हृदय का यह खेल बिरला होता है...। मुझे लगता है इंसान के जीवन में यह खेल होना चाहिये..क्योंकि इसकी जीत और हार जीवन की परते खोलती हैं। खैर..रचना का हर शब्द कुछ कहता सा भान होता है। वैसे भी ऐसी रचनायें होती भी हैं बिल्कुल अपनी सी।

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  27. उम्दा रचना वाह वाह

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  28. मैं हैरां भी हूँ और परेशान भी हूँ ये देखकर
    मेरे सपनों के रंग बदलता है कौन?
    मेरी तन्हा सी,अनजानी सी आरज़ू में
    आखिर बेपरवाह सा मचलता है कौन?

    उम्दा अभिव्यक्ति !

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  29. सबसे पहले आभार.

    प्रस्तुत रचना वाकई बहुत अच्छी लगी.धन्यवाद.

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  30. ये सच है की साँसों से जिन्दगी है ,पर सांसों से न बांधो जिन्दगी को |
    श्याही से लिखी जाती है हर गजल हर कविता ,पर श्याही से न बांधो शायरी को |
    स्वछन्द विचरने दो नई कोंपलों को गुलशन में ,किसी दायरे में न समेटो ताजगी को |
    बाहर का उजाला तो सूरज के रहने तलक ,खुलकर के खिलने दो अन्दर की रोशनी को |
    जो भी लिखा अच्छा लिखा बहुत ही उम्दा लिखा, यूं ही बिखरने दो छंदों की रागिनी को |
    सच कहूं एक अरसे बाद ऐसी कवितायेँ पढने को मिलीं | बहुत-बहुत साधू-वाद |स्स्गे और अच्छा लिखो |
    daddudarshan.com

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  31. kaun hai mere andar?
    Tere andar hai ye kaun?
    Kya niyati ho gayi hame do zindagiyon ka bojh dhone ki?
    Ek dusro ki ek apne andar ke "kaun" ki?
    Kitna bewkoof hai ye mann?
    Ek ka dard kam tha ki chala hai aur dardon ka hisaab rakhne?
    Ek zindagi kam thi ki chala hai aur zindagiyon ke zakhmon ka dard sahne?
    Ye kaun hai sabke andar jo mehsus karta hai ek dard anjana?
    Kya mukt ho sakenge is kaun se kabhi ham?
    Aakhir ye bhi to koi bata de ki kya satya hai aur kya dhokha?
    Bahar ka insaan hai banawati ya andar ka "kaun" hai begana?

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