मन..
चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
छूने दे क्या गीला है
बेरंग है या नीला है
कोई तो आकार मिले
कितना है ये नपने दे॥
कच्ची मिटटी का सांचा
खींच जाने दे खांचा
जल जाने दे धूप में
थोडा सा तो पकने दे॥
हो न कहीं खट्टी निंबोली
आने दे शब्दों की टोली
ख़ामोशी को आज
जरा
जी भर सब कुछ बकने दे॥
देखूं, जीवन क्या तीखा है
या कि बिलकुल फीका है
ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥
जल जाने.... दे धूप में.... थोडा सा तो पकने दे..... यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं..... काफी दिनों के बाद .... और आज सबसे पहले आपके ही ब्लॉग पर क्लीक किया.... बहुत सार्थक रहा.... अंतिम पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया....
ReplyDeleteरिगार्ड्स....
गहरे भावो के अभिव्यक्ति ...कुछ लाजवाब पंक्तिया
ReplyDeleteचुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
देखूं, जीवन क्या तीखा है
या कि बिलकुल फीका है
ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥
waah Parul ji...umda soch aur bhaavo ke sath ek atyant hi sundar prastuti...bahut khoob...
ReplyDeleteअति उत्तम रचना .......
ReplyDeleteसरल और सहज अभिव्यक्ति इतना गहरे तक कह गई। जो कहा वो सब मन में बस गया। जो आपने रचा, बस सब सच रचा।
ReplyDeleteसरल और सहज अभिव्यक्ति इतना गहरे तक कह गई। जो कहा वो सब मन में बस गया। जो आपने रचा, बस सब सच रचा।
ReplyDeleteसरल और सहज अभिव्यक्ति इतना गहरे तक कह गई। जो कहा वो सब मन में बस गया। जो आपने रचा, बस सब सच रचा।
ReplyDeleteohhhh !!!!
ReplyDeletekya kahne..
kya likha hai aapne...
कच्ची मिटटी का सांचा
खींच जाने दे खांचा
जल जाने दे धूप में
थोडा सा तो पकने दे॥
waah...
very beautiful....loved it!!!
ReplyDeleteछूने दे क्या गीला है
ReplyDeleteबेरंग है या नीला है
कोई तो आकार मिले
कितना है ये नपने दे॥
क्या बात है ! बहुत सुन्दर !
चुभता है सुई की तरह
ReplyDeleteकहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
बहुत सुन्दर रचना!
मन से जो टपकता है वही तो कविता है!
वाह!शब्दों कैसे मजबूर कर दिया जाता है अपने भाव व्यक्त करने के लिए उसी का नजारा यहाँ देखने को मिला इस बार भी!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
कुंवर जी
"आने दे शब्दों की टोली
ReplyDeleteख़ामोशी को आज जरा
जी भर सब कुछ बकने दे॥
देखूं, जीवन क्या तीखा है
या कि बिलकुल फीका है"
लाजवाब पंक्तिया
bahut sundar kavita
aabhaar & shubh kamnayen
चुभता है सुई की तरह
ReplyDeleteकहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
..........लाजवाब ,सार्थक रचना.
चुभता है सुई की तरह
ReplyDeleteकहीं तो जरा टंकने दे
बहुत सुन्दर, क्या सुन्दर एहसास हैं
वाह
well said , very soothing
ReplyDeletehttp://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
क्या कहूं इसे मैं पारुल जी.. चाहता तो मैं भी हूँ कोई ऐसी ही खूबसूरत रचना लिखना, पर आजकल कुछ और ही लिख जाता हूँ. लगता है ये मेरे वश की बात ही नहीं.. आभार एक सुन्दर रचना के लिए..
ReplyDeletepahli baar aapke blog par aaya kafi der tak kafi rachnayein padta rha.... bahut hi achi rachnayein hein sab ki sab ...
ReplyDeleteचर्चा मंच से होते इधर पहली बार आना हुआ....
ReplyDeleteजीवन कहीं तीखा भी है और कहीं फीका भी है लेकिन इस गरीब बच्चे की तस्वीर लेने के बाद फोटोग्राफर ने
अपना जीवन ही समाप्त कर दिया था....यहाँ तस्वीर आधी है..बस "मन" बेचैन हुआ और इतना लिख बैठे..
@ चुभता hai सुई की तरह
ReplyDeleteकहीं तो जरा टकने दे ....
टक गया है गीत तुम्हारा .....
@ हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे ....
देखो कैसे भीगे भीगे शब्द टपक रहे हैं ....
VERY NICE............
ReplyDeleteअपने ब्लाग पर आपकी टिप्पणी देखकर यहां आया हूं.. ये क्या आपने तो कविता के क्षेत्र में अच्छा खासा तहलका मचा रखा है। देखते-देखते तीन चार कविताएं पढ़ गया। सभी लाजवाब और एक से बढ़कर एक।
ReplyDeleteआप मेरी बधाई स्वीकार करें और यूं ही बेहतर लिखती रही। आपको शुभकामनाएं।
parulji,
ReplyDeletehindi chhand ho yaa dohe yaa geet, yaa fir progaatmak kavitaye..iname se chhand aour dohe to likhanaa hi kam ho gaye he, likhe bhi jaate he to bhi uname ras ka abhaav hotaa he../ aapki post 'man' hi nahi balki iske baad ki bhi kai post padhhi..shabdo ke taartamy ki anokhi peshakash he. ..nishchit hi aapka adhdhyan sadmaarg par he, meri shubhkamnaye
baanwre se man ki sundar hook!
ReplyDeletejai ho! :)))))))))))
ReplyDeletesitare buland hai
ReplyDelete!!!
भाव जो सीधे मन के अंतस्तल मेँ उतर गये।
ReplyDeleteगहरे भावों से लबरेज एक मन को छू जाने वाली कविता।
ReplyDeleteचुभता है सुई की तरह
ReplyDeleteकहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे। ..
सच है मन को हल्का होने दे ...
पर मन मानता नही है ... बहुत लाजवाब लिखा है ......
!!
ReplyDeleteसच !!
एक बेहद उम्दा रचना पर हार्दिक बधाइयाँ !
ReplyDelete.कई बार मुझे ऐसा लगता है कि तुक मिलाने के चक्कर में कविता के भाव, खूबसूरती से अभिव्यक्त नहीं हो रहे हैं...इससे से तो अच्छा होता कि सीधे-सीधे लिख दिया होता..!
ReplyDelete..आपके क्या खयाल है?
bahut sundar abhivyakti...badhiya lagi...badhai
ReplyDeleteचुभता है सुई की तरह
ReplyDeleteकहीं तो जरा टंकने दे
Beautifully expressed emotions.
achhi rachna
ReplyDeletesabse pahle to bura laga....pahli baar aapke blog ko pada ! kyoki main vilambh se aapke blog par aaya ...baat aapki post ki ...ek shabd ADBHUT!!
ReplyDeleteAdbhu abhiwyakti....pictures ka sundar prayog.....swagat swagt swagt hai..or haa mere blog par aana aniwariy hai...
Jai HO Mangalmay HO
????? गायब...
ReplyDeletekavitaayein...aur chitr....
ReplyDeleteek doosre ke saath sahi nyaay karte hain..
parle 'G'
sundar aur bhavpurn.yun hi likhte rahiye.
ReplyDeleteaapki bhavnao ko shbdroop me dekh ke mn rita ho aaya .
ReplyDeleterukhe kor ko bhi koi mn chhkne ka jjba rkhta hai,kya bat hai
hey paarul......kyaa khub likhaa hai tumne.....aaj man jaraa chhakne de ...gazab.....!!poori kavitaa man ko chhoo gayi hai sach....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है ! बधाई!
ReplyDeleteantar man ki abhibaykati hai......thankas
ReplyDeleteमन से टपके भावों को सुन्दर शब्दों की टोली के माध्यम से उत्तम तरीके से व्यक्त किया है.
ReplyDeletebahut sunder abhivyakti , aapki kavita padhte hue mujhe anayas he prasoon joshi ka smaran hua , aapki sheily kuch kuch unse milti he , ya kahe unki aapse milte he to bhi atishyokti nahi hogi
ReplyDeletehttp://bejubankalam.blogspot.com/
अब तक की बेहतरीन. शब्दों की सुंदर भावलड़ियां! मझे आपका follower बना गईं...
ReplyDeleteपारुल जी, गायब से मतलब.. काफी समय से कोई नई पोस्ट नहीं.. कहाँ गायब हैं आप??
ReplyDeleteअच्छी भावनापूर्ण रचना , तस्वीर दिल झकझोर रही है
ReplyDeletea great one....
ReplyDeleteits deep,,,
चुभता है सुई की तरह
ReplyDeleteकच्ची मिटटी का सांचा
खींच जाने दे खांचा
जल जाने दे धूप में
थोडा सा तो पकने दे॥
पारुल,
अगर समझने के लिए मैं इसे यूं कहकर समझ लूं तो आप खुश ही होगी, पता है मुझे..
मिट्टी का कच्चा ढांचा
खींचे नया कोई खांचा
कड़ी धूप में डाल इसे
थोड़ा सा तो पकने दे
रचना और भाव की दिशा बहुत गंभीर हैं, ओर वह जो चित्र आपने लगाया है बस
..रूह को कंपाने के लिए काफ़ी है..
आपके ही शब्दों में-
चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
देखूं, जीवन तीखा है !?
या कि बिलकुल फीका है
ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥
achha flavopur hai .. :)
ReplyDeleteहो न कहीं खट्टी निंबोली
आने दे शब्दों की टोली
achha hai ye couplete
ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥
nicly penned. :) keep writing
bahut khoob
ReplyDeleteshandar kavita
pahli 4 lines ne hi sama bandh dia tha
चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
well done :)
ReplyDeletekhwahish ka koi Rukha kauraaj zara man chhalakne de...
ReplyDeletebahut sundar Parul ji...
chhoo liya dil ko...!!
kabhi mere blog par tehelte huye aaiyega...
bhut gaharayee hai....aapki abhivyakti mein....
ReplyDeletebhut ghrayee hai aapki abhivayati mein....
ReplyDeletebhut ghrayee hai aapki abhivayati mein....
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