Wednesday, May 12, 2010

तिश्नगी !


ये कैसी तिश्नगी है
कि आंसूओं को भी प्यास लगने लगी है।
आधा सा तुझ में खोया है
और आधा खुद में बोया है
जोड़ा है आज दोनों को जो
पाया यही जिंदगी है।
चाँद भी आज रुखा है
फिर ख्वाब कोई भूखा है
एक टीस जीने की
मन के चूल्हे में फिर सुलगी है।
नींद के उधड़ने से
कुछ फंदे गलत पड़ने से
एक रात जाने क्यों
बरसों से जगी है।
लगता कुछ बेरंग सा है
फिर भी जैसे संग सा है
उसमें ही ख्वाहिश कोई
आज भी भीगी सी है।

24 comments:

  1. Bahut khoob...
    ek raat varsho se jagi hai...

    kavita bahut sunder ban padi hai parul ji...badhai.

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  2. नींद के उधड़ने से
    कुछ फंदे गलत पड़ने से
    एक रात जाने क्यों
    बरसों से जगी है।
    waah kya baat hai...
    aur bhi bahut behtareen panktiyaan.........
    regards

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  3. bahut sundar rachna hai

    नींद के उधड़ने से
    कुछ फंदे गलत पड़ने से
    एक रात जाने क्यों
    बरसों से जगी है।

    waah! kya baat hai !

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  4. ओफ्फ़!ये प्रवाह!इस तिश्नगी से भी तीव्र!

    पढो और पढ़ते रहो,खो जाओ!बस ऐसा सा लगा था अभी....

    कुंवर जी,

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  5. टाईटल ही ले गया सौ नंबर..!
    इस बार का सब्जेक्ट कमाल है

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  6. अच्छी कविता , भावपूर्ण है , धनयवाद

    http://qsba.blogspot.com/

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  7. चाँद भी आज रुखा है
    फिर ख्वाब कोई भूखा है
    एक टीस जीने की
    मन के चूल्हे में फिर सुलगी है।
    ....bahut badhiya,saarthak, pravahpurn...Bahut khoob...

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  8. पारुल जी !
    आपने रचना में बहुत बढ़िया बिम्बों का
    प्रयोग किया है!

    बहुत बहुच बधाई!

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  9. aapki ek ek rachna adbhut or nirali hoti hai.....prastuti keliye dhanyawad....

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  10. बेजोड़ रचना ....सुन्दर अभिव्यक्ति

    विकास पाण्डेय
    www.vicharokadarpan.blogspot.com

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  11. ...bahut badhiya,saarthak, pravahpurn...Bahut khoob

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  12. एक रात जाने क्यूँ

    बरसों से जगी है..क्या बात कही है..बहुत उम्दा!!


    एक अपील:

    विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

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  13. बेहतरीन रचना ......जब आपकी कलम चलती है तो बहुत कुछ बोलती है .

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  14. ye tishnagi bas yun hi bani rahe..kalam chalti rahe..keep it up :)

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  15. kuch to baat hai!

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  16. blog "gulzaar" ho rakha hai
    mahak hum tak hai :)

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  17. jab talak jindagi ki kisht baaki hai..chahne walon ki fehrist baaki hai..well done!

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  18. ये कैसी तिश्नगी है
    आसुओं को भी प्यास लगने लगी है
    ...
    एक टीस जीने की
    मन के चूल्हे में फिर सुलगी है
    ..
    एक रात जाने क्यों
    बरसों से जगी है
    बहुत खूब

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  19. एक टीस जीने की
    मन के चूल्हे में फिर सुलगी है।
    नींद के उधड़ने से
    कुछ फंदे गलत पड़ने से
    एक रात जाने क्यों
    बरसों से जगी है .....

    Bahut hi lajawaab shabd hain ... jaadoo karte huve ... lajawaab kalpana hai ...

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  20. exquisite feelings..
    thrills the innermost nerves ..Thats for the first time I bumped onto your blog..Stayed here for 48 minutes and .. at last , I have only three words say..

    "YOU ARE GR8"
    Keep writing..and try to overcome repeat of phrases and thoughts..

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  21. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! लाजवाब !

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  22. चाँद भी आज रुखा है
    फिर ख्वाब कोई भूखा है
    एक टीस जीने की
    मन के चूल्हे में फिर सुलगी है।
    नींद के उधड़ने से
    कुछ फंदे गलत पड़ने से
    एक रात जाने क्यों
    बरसों से जगी है।


    अदभुत बुनावट।
    हर गिरह सलीके और मोहब्बत से डाली गई...
    खुशआमदीद..

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