Friday, April 30, 2010

कसाव!


तुम यूँ ही नहीं सब कहते थे
कि बस तुमको फंसना होता था॥
मेरे हर उदास से पल में
न यूँ ही तुम्हारा हँसना होता था ॥
कुछ किस्से, जो न कभी पढ़े
चेहरे पर तेरे छपते थे
मैं अब तलक कहाँ तक चला
जैसे बस तुमसे ही नपते थे
जहाँ मैं खुद भी नहीं रहा
वहांयूँ ही नहीं तुम्हारा बसना होता था ॥
वो रंग जो सिर्फ मेरे थे
जाने क्यों तुम पर भी फबते थे
उन साँसों की गर्माहट में
अनजाने ही नहीं हम तपते थे
वो ढीली ढाली सी बातें
क्यों सब तुमको ही कसना होता था ॥
सोयी सी आँखें रहती थी
जागी सी एक जंग लिये
तुम दूर जाते दिखते थे
ख़्वाबों की पतंग लिये
अम्बर के उस कोरेपन में
तब जीवन को रखना होता था ॥

33 comments:

  1. वो रंग जो सिर्फ मेरे थे
    जाने क्यों तुम पर भी फबते थे
    उन साँसों की गर्माहट में
    अनजाने ही नहीं हम तपते थे

    निहायत ही उम्दा रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. बहुत सुन्दर कविता है .. बिलकुल दूर किसी जंगल में पहाड़ी झरने जैसी ... कल कल करती शब्दों कि बौछार ....

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  3. "सोयी सी आँखें रहती थी
    जागी सी एक जंग लिये
    तुम दूर जाते दिखते थे
    ख़्वाबों की पतंग लिये
    अम्बर के उस कोरेपन में
    तब जीवन को रखना होता था॥"

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  4. please delete the first comment

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  5. "सोयी सी आँखें रहती थी
    जागी सी एक जंग लिये
    तुम दूर जाते दिखते थे
    ख़्वाबों की पतंग लिये"
    बहुत खूब - इसलिए कसाव जरुरी है.

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  6. सोयी सी आँखें रहती थी
    जागी सी एक जंग लिये
    तुम दूर जाते दिखते थे
    ख़्वाबों की पतंग लिये
    ati sunder............

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  7. सोयी सी आँखें रहती थी
    जागी सी एक जंग लिये
    तुम दूर जाते दिखते थे
    ख़्वाबों की पतंग लिये
    ati sunder............

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  8. सोयी सी आँखें ,
    जागी सी एक जंग ,
    तुम दूर जाते ,
    ख़्वाबों की पतंग लिये,
    अम्बर के कोरेपन में
    जीवन को रखना ,

    अनुभूतियों को क्या शब्दों का जामा पहनाया है!!
    अंदर के सब स्पर्श पारदर्शी हो गए।
    बहुत बहुत बहुत संजीदा चिंतन पारुल
    बधाई

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  9. सोयी सी आँखें रहती थी
    जागी सी एक जंग लिये
    तुम दूर जाते दिखते थे
    ख़्वाबों की पतंग लिये
    अम्बर के उस कोरेपन में
    तब जीवन को रखना होता था



    बेहतरीन पंक्ति .......पूरी रचना लाजवाब

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  10. वो रंग जो सिर्फ मेरे थे
    जाने क्यों तुम पर भी फबते थे
    उन साँसों की गर्माहट में
    अनजाने ही नहीं हम तपते थे
    वो ढीली ढाली सी बातें
    क्यों सब तुमको ही कसना होता था ॥


    ओह क्या लिख दिया आपने!
    यह बेसुध समर्पण ,यह ख्वाबिन्दा अहसास
    ‘तुमको ही कसना होता था’ एक मासूम सा स्वीकार..
    खूबसूरत और वह जो कह नहीं सकने की कसमसाहट का कहना नाकहना..
    जद्दोजहद शायद..
    कमेन्ट भी लड़खड़ाया देखिए..
    आपने उस्ताद जी कहकर मगरूर और निशब्द बना दिया

    If you please dissable comment moderation--- But it's your choice..

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  11. वो रंग जो सिर्फ मेरे थे
    जाने क्यों तुम पर भी फबते थे
    उन साँसों की गर्माहट में
    अनजाने ही नहीं हम तपते थे
    वो ढीली ढाली सी बातें
    क्यों सब तुमको ही कसना होता था ॥

    ओह क्या लिख दिया आपने!
    यह बेसुध समर्पण ,यह ख्वाबिन्दा अहसास
    ‘तुमको ही कसना होता था’ एक मासूम सा स्वीकार..
    खूबसूरत और वह जो कह नहीं सकने की कसमसाहट का कहना नाकहना..
    जद्दोजहद शायद..
    कमेन्ट भी लड़खड़ाया देखिए..
    आपने उस्ताद जी कहकर मगरूर और निशब्द बना दिया .....बहरहाल तसलीम!!!

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  12. sundar se ehsaas baya karti rachna,
    badhiya prastuti.
    #ROHIT

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  13. heart touching poetry... great!

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  14. सुन्दर भावपूर्ण रचना.

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  15. ढीली ढाली बातो को कसना.. कमाल का थोट है..

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  16. मेरे हर उदास से पल में
    न यूँ ही तुम्हारा हँसना होता था ॥
    कुछ किस्से, जो न कभी पढ़े
    चेहरे पर तेरे छपते थे
    ati sunder ! !

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  17. मेरे हर उदास से पल में
    न यूँ ही तुम्हारा हँसना होता था ॥
    कुछ किस्से, जो न कभी पढ़े
    चेहरे पर तेरे छपते थे
    ati sunder ! !

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  18. शानदार रचना!
    सुन्दर शब्द-चयन!

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  19. Bahut sundar bhavon kee khoobasurat prastuti---.
    Poonam

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  20. पहली ..बार आया हूँ आपके ब्लॉग पर .....ख़ुशी हुई .....एक शानदार और सुन्दर प्रस्तुति ..बधाई स्वीकारे

    http://athaah.blogspot.com/2010/04/blog-post_29.html

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  21. वो रंग जो सिर्फ मेरे थे
    जाने क्यों तुम पर भी फबते थे
    उन साँसों की गर्माहट में
    अनजाने ही नहीं हम तपते थे
    वो ढीली ढाली सी बाते
    क्यों सब तुमको ही कसना होता था ॥

    क्या बात है?!?!?!

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  22. ओह! आय ऍम एक्सट्रीमली सॉरी... हाउ हैव आई कन्नाईव्ड ... यौर ब्लॉग? इट ईज़ रिअली एम्बैरसिंग फॉर मी....वॉट ए लवली पोएम यू हैव स्क्रिब्ब्ल्ड .... इट हैज़ ड्रिवेन इंटू माय हार्ट.... नॉव, आई ऍम बैक टू लखनऊ .... सो विल बी रेगुलर ऑन यौर ब्लॉग....

    थैंक्स....

    एंड

    रिगार्ड्स....

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  23. आप बहुत अच्छा लिखती हैं। लगी रहिए!

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  24. is rachna par shuru mein diye gaye kain comments accept karne ke baad bhi show nahi huye,shayad kisi technical fault ki vajah se :(
    phir bhi main un sabhi ka hosla afjai ke liye aabhar vyakt karti hoon...
    aur baaki sabhi ka bhi dhanywaad kehungi..!

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  25. kuch to raha koi anjana sa ankaha rishta, jisme se n tum ja sake, na hum

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  26. कसाव शीर्षक देख पहले सोचा की आपने मुंबई कांड वाले कसाव पर कविता लिखी है ...पर ये तो मन के कसाव पर है .....

    बहुत सुंदर .....!!

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  27. wah....
    bahut sunder likhatin hain aap..parul ji.

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