तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥
आज कसी जो डोर मन की
टूटकर हाथों में ही रह गयी
जब बांधा था तुम्हे बंधन में
तब क्यों न देखा कहीं कुछ तो ढीला नहीं॥
आधी रातें तुम ले गए
और आधी मैं ही कहीं रख भूला
जागने की यूँ लत पड़ गयी फिर
कि उन ख्वाबों का कोई सिलसिला नहीं॥
आँखों के सूनेपन में तू
यूँ बेरंग सा भर आया
देर तलक यही देख रहा था
कतरे का रंग क्यों अब नीला नहीं॥
हर कतरा,धागे सा था
फिरता था पैबंद लिये
दिल की कांट-छांट बाकी है
शायद अब तक यूँ ही सिला नहीं॥
Fantastic! Nice read
ReplyDeleteshavd nahee mil pa rahe hai tareef karane layak.......
ReplyDeletelajawab prastuti .
वाह!!.......बेहतरीन प्रस्तुती
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ReplyDeleteआज कसी जो डोर मन की
ReplyDeleteटूटकर हाथों में ही रह गयी
एहसास अत्यंत मुखरित हैं
सुन्दर --- लाजवाब
Jab neend se ho silsila toot gaya to khwaab kahaan se aayenge ... aap gahre jajbaat se piroti hain apne rachnaaon ko ...
ReplyDeleteबेहतरीन भावाव्यक्ति...........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... हमेशा की तरह आप शब्दों का एक जाल बुन दिए हैं जिसमें भावनाएं समा गए हैं ...
ReplyDeleteआधी रातें तुम ले गए
और आधी मैं ही कहीं रख भूला
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ...
तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
ReplyDeleteफिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥
पारुल,
आपके विचारों की बुनावट में गहरी तरबियत है। चीजों को देखने का अंदाज और सिलसिले के तार पंजाबी खुसीसियत की तरफ गामयाब हैं
आधी रातें तुम ले गए
और आधी मैं ही कहीं रख भूला
जागने की यूँ लत पड़ गयी फिर
कि उन ख्वाबों का कोई सिलसिला नहीं॥
यह बिंब तो बेहद असरदार है। पढ़कर ठहर जाने को दिल कहता है
संजीदा ख्याल बातें...तसलीम
जागने की यूँ लत पड़ गयी फिर
ReplyDeleteकि उन ख्वाबों का कोई सिलसिला नहीं॥
बहुत खूब...सुन्दर रचना
जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति आपकी!भावनाओ को शब्दों खूब पिरोया है आपने....
ReplyDeleteकुंवर जी,
बहुत खूब .....!!
ReplyDeleteसारी पंक्तियों को आपने ले में बखूबी पिरोया है .....!!
भाव और शब्दों का चयन भी बेहतरीन हैं .....!!
behtareen prastuti!
ReplyDeleteaapne prem ki bhavnaao ko acche dhang se avivaykt kiya hai.
regards-
#ROHIT
behtareen prastuti!
ReplyDeleteaapne prem ki bhavnaao ko acche dhang se avivaykt kiya hai.
regards-
#ROHIT
kya baat hai !!wah..wah..blogs par samkaaleeno me sarvshrestha hone walee pratibha,gifted u r
ReplyDeleteamazing words, great work of art!
ReplyDeletebahut khoob ishq ka dard kambakht cheez hi aisi hai...
ReplyDeleteParul tum kafi achchha likhti ho lekin apni hi pichhli kai poston par jara gaur karo....
ReplyDeletejyadatar 'main' ya prem ke oopar hain.. wo bhi prem ke sirf ek vishesh swaroop par kendrit.. is sab se bahar niklo
''aur bhi gum hain zamane(dahi jamane nahin) me mohabbat ke siwa.. chewing gum nahin :)''
hai na?
ise salaah nahin sirf ek nivedan ki tarah lena.
ReplyDeleteaur gum hi kyon khushiyon par bhi to likh hi sakte hain na..
ReplyDeleteohhh !!!!
ReplyDeletebahut hi khubsurat rachna....
hope aap yun hi likhti rahengi.....
regards
http://i555.blogspot.com/
idhar ka v rukh karein...
deepak ji aisa nahi hai ki main sirf 'gamjada' rachnayen likhna chahti hoon..jab jo man mein aa jaye bas..likhti jati hu... :)baaki aapn ne apni baat rakhi..accha laga!aise hi sabhi ka sawagat hai!!
ReplyDeleteaur sabhi ka aabhar bhi :))))))))
तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
ReplyDeleteफिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥
सुन्दर शब्दों से सजी एक बेहतरीन रचना है!
very nice....i liked yhe last couplt especially..
ReplyDeleteWonderful !!!
ReplyDeleteविरह वेदना का अच्छा चित्रण
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बहुत बढ़िया लगा!
ReplyDeleteaaj kal thoda bzy rahta hoon naukri ki talaash mein..
ReplyDeleteto achhi rachnayein padhne mein der ho jaati hai....
bahut hi behtareen ...
padhkar achha laga...
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mere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/
waah....bahut hi badhiyaa
ReplyDeleteआधी रातें तुम ले गए
ReplyDeleteऔर आधी मैं ही कहीं रख भूला
जागने की यूँ लत पड़ गयी फिर
कि उन ख्वाबों का कोई सिलसिला नहीं
सुन्दर प्रस्तुति!!!
parul
ReplyDeleteek achhe nazmke liye mubarak baad
thoda antre ka teesre chauthe antare ka kafiya dekh len.....
aapne kagiya mukhde me ila munnakit kiya hai fir aapne eela rakha hai jo jayaz nahee hai .......ek baar dekhen pleaz
wah....
ReplyDeletesunder bhavabhivyakti...
sadhuwaad..
तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
ReplyDeleteफिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥
बहुत खूब !!!!
पढकर , दिल को सुकून मिला ||
5-6 kavitayen paDhi aapki
ReplyDeleteyun to sabhi acchi hai lekin is kavita mein kuch jyada hi kashish hai ,dard hai ,gahraaii hai ya yun kaho ki padhne vale ka man jaisa hota hai use vaisa hi bhaav jyada khiichta hai .
तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
ReplyDeleteफिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥
सुन्दर एहसास हैं ...लाजवाब