वो जो रहता है मुझे में जिंदगी की तरह
ढूंढता हूँ उसे कि शायद हो वो किसी की तरह
वो आकर कभी पहचान अपनी दे जाये
नहीं रहना चाहता संग उसके अजनबी की तरह!!
लफ्ज़ खो जाये कहीं.उसको जो चुप सा देखे
आइना बन के मन और भला क्या देखे
क्यों मिलता नहीं वो मुझसे
यूँ भी सभी की तरह!!
क्या उसने भी लगाया है
औरों सा मुखोटा
या उसको समझने में
पड़ जायेगा जीवन छोटा
सोच बनती जा रही है जैसे सदी की तरह!!
वो चाहे तो तन्हाई मेरी संग ले ले
कुछ रंग रख छोड़े है वो सारे रंग ले ले
मगर हो जाये शामिल मुझे में
मुझ ही की तरह!!
सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति...बहुत बढ़िया रचना.
ReplyDeleteक्या उसने भी लगाया है औरों सो मुखौटा
ReplyDeleteया उसको समझने में पड़ जाएगा जीवन छोटा !
गहराई है शब्दों में ! बहुत अच्छा !
bahut khoob parul ji...waah
ReplyDeleteachhi prastuti....
ReplyDeleteaapki lekhan kala nirali hai...
aage bhi aisi hi prastuti ki ummid karta hun.....
DHANYAWAD...
ye kaisa bhrm.....?
ReplyDeleteमुखड़ा तो बढ़िया है ही!
ReplyDeleteपूरी रचना भी बहुत मखमली है!
bahut sundar rachna !Your selection of words is amazing.
ReplyDeletesundar post
ReplyDelete"वो जो रहता है मुझे में जिंदगी की तरह
ReplyDeleteढूंढता हूँ उसे कि शायद हो वो किसी की तरह....."
जी बहुत ही सुन्दर भाव प्रस्तुत किये आपने यहाँ!
कुंवर जी,
bahut khub
ReplyDeletehttp://kavyawani.blogspot.com
shekhar kumawat
bahut khub
ReplyDeletehttp://kavyawani.blogspot.com
shekhar kumawat
कितनी खुबसूरत कविता लिखती हैं आप...जैसे एक तन्मयता, एक तल्लीनता हो आपके शब्दों में !
ReplyDeleteबहुत खूब ... कोई तो है जो अपनी पहचान नही देता ... मन में है पर नाम नही देता ...
ReplyDeleteबहुत अच्छे से निभाया है दिल के जज्बातों को ....
कुछ रंग रख छोड़े है वो सारे रंग ले ले
ReplyDeleteमगर हो जाये शामिल मुझे में
मुझ ही की तरह!!
बहुत सुन्दर -- वाह
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletebahut khub.....
ReplyDeleteachhi rachna hai...
khud se main to nikalne ki achhi si koshish.....
shekhar
http://i555.blogspot.com/
bahut badiya....
ReplyDeleteपहली पंक्ति में मुझे में की जगह शायद मुझमे होगा..
ReplyDeleteबढ़िया बन पड़ा है इस बार.. शुरू की चार लाईन्स मस्त है और सारे रंग ले ले वाली भी..
क्या शब्दों के साथ जादूगरी है ........... बेहतरीन लिखा आपने.
ReplyDeleteपारुल बधाई!
ReplyDeleteतुम्हारी सोच और रचनाशीलता भी उत्तम हैं और साज सज्जा की समझ भी। भाव भी हैं और अभिव्यक्ति भी सधी है, और उम्र इतनी छोटी!
अगर लिखती रहीं तो बहुत आगे तक जाना है तुम्हें, इसलिए मेरी बधाई और शुभकामनाएँ, और शुभेच्छा भी - कि "जारी रहिए"
bahut hisundaravam gaharai se lkhi hai ye post aapne.
ReplyDeletepoonam
himanshu ji .aapka aashirwaad raha to jarur..
ReplyDeletebaaki sabhi ka bhi bahut bahut aabhar :)
वो चाहे तो तन्हाई मेरी संग ले ले
ReplyDeleteकुछ रंग रख छोड़े है वो सारे रंग ले ले
मगर हो जाये शामिल मुझे में
मुझ ही की तरह-----
Bahut sundar bhav aur shabd dono hee.
पारुल आप कविता अच्छा लिखती हो... विशेषकर तुकबंदियों में... सामान्यतः ऐसी कविताये ज्यादा प्रभाव छोडती हैं और देर तक मधुर लगती हैं... इसे बनाये रखें...
ReplyDeleteसुन्दर कविता.
क्या लिख दिया . बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteबेहतर,बढिया एवं बेबाक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहर बार की तरह ...बहुत सुंदर शब्दों में .... पिरोई गई ....एक बहुत ही सुंदर कविता....
ReplyDeleteRegards.....
हर बार की तरह ...बहुत सुंदर शब्दों में .... पिरोई गई ....एक बहुत ही सुंदर कविता....
ReplyDeleteRegards.....
'wo'me mukhoto ki baat acchi lagi.acche vicara khushboo ki tarah hote hai, khoob failete rahe, yahi kamna.
ReplyDeletemere blog par nazre inayat ki shukriya.
www.pachmel.blogspot.com
aur haan meri nayi kavita padhna na bhuliyega...
ReplyDeleteACHHI LAGI TO DUBAARA PADHNE CHALA AAYA....
ReplyDeleteregards
http://i555.blogspot.com/
aapki tanhayiyon se sayad vo door jaa raha hain
ReplyDeleteaap chahte hain ki bo ho jaaye aap jaisa,par vo ghabra raha ahin
accha likha hain ,beech main thoda laga ke aap bhatak rahe haiin ,par last main phir se ley pakad li