जले न तेरा मन कभी
न हो तुझे जलन कभी
रिसने दे ख्यालों से
भीगी सी उलझन कभी !
मीठी सी हूक से
जादू की फूंक से
मिट जाये मन की तेरे
सारी थकन कभी!
दर्द की सिसकी से
यादों की हिचकी से
तू छीन ले,जी भर
अपना जीवन कभी!
सपनों की भीख से
ख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!
मन की गहरी थाह से
इस दिल की राह से
तू आ जाये खुद के यूँ करीब
छले न दर्पण कभी!
न हो तुझे जलन कभी
रिसने दे ख्यालों से
भीगी सी उलझन कभी !
मीठी सी हूक से
जादू की फूंक से
मिट जाये मन की तेरे
सारी थकन कभी!
दर्द की सिसकी से
यादों की हिचकी से
तू छीन ले,जी भर
अपना जीवन कभी!
सपनों की भीख से
ख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!
मन की गहरी थाह से
इस दिल की राह से
तू आ जाये खुद के यूँ करीब
छले न दर्पण कभी!
Adbhut.. shabdon ke motiyon ko bahut khubsurti se piroya hai aapne.. Badhai..
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना। बधाई।
ReplyDeleteमन कि गहरी थाह से
ReplyDeleteइस दिल कि राह से
तू आ जाए खुद के यू करीब
छले ना दर्पण कभी!
वाह ! क्या बात है!
khub tewar dikhe aapke isme .... badhaayee kubul karen..
ReplyDeletearsh
bahut khoob ,......
ReplyDeletehttp://i555.blogspot.com/ mein is baar तुम मुझे मिलीं....
bahut sundar rachna....
ReplyDeletewah kya bhav aur shavdmanthan hai.................
ReplyDeletetareefekabil..........
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
ReplyDeleteख़ामोशी की चीख.. क्या कमाल का थोट है पारुल.. सिम्पली ग्रेट !
ReplyDeleteइस बार फिर शुरू की दो पंक्तियों को सौ नंबर है..
तू आ जाए खुद के इतना करीब .. दर्पण भी न छल पाए .....
ReplyDeleteवैसे पूरी रचना का हर छन्द लाजवाब है .. कुछ न कुछ कहता हुवा .... बहुत अनुपम रचना ...
सपनों की भीख से
ReplyDeleteख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!
aaah...kya baat hai ,,, bahut khoob
kitna sundar likha hai
kayi baar padhi panktiyan
bahut pasand aayi rachna
aabhaar
"सपनों की भीख से
ReplyDeleteख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!"
ह्रदयस्पर्शी कविता!
बहुत सुन्दर शब्द्चित्रण!
शुभकामनाये स्वीकार करे....
आपकी लेखनी ओए अधिक गहरायी से भावनाए उकेरे...
कुंवर जी,
मन कि गहरी थाह से
ReplyDeleteइस दिल कि राह से
तू आ जाए खुद के यू करीब
छले ना दर्पण कभी!
.....bahut khoob ,......
behatin prastuti hai.sanvednayen jhlakati hai.
ReplyDeletewaaah.. bahut khoobb.. bahut bahut khoob... i m happy :)
ReplyDeleteऐसे जांनिसार खयाल! owtherwise न लीजिएगा, तहेदिल से पसंद आई नज्म. मन के किसी रिसते हुए हिस्से को कुरेद गई. अब तक की बेहतर अदायगी...
ReplyDeleteachhi lagi to dobaara achala aaya....
ReplyDeletevisit my blog for new poem life....
http://i555.blogspot.com/
aapki lekhan kala nirali hai....
ReplyDeleteto be continued......
खूबसूरत पंक्तियां-----
ReplyDeleteWow ultimately evoking thoughts beautifully written ....
ReplyDeleteसपनों की भीख से
ReplyDeleteख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!
अपनापन ऐसे ही दबता है..खो जाता है..
Very nice..deep thoughts..
ReplyDeletepahli baar aapke blog par aaya hun ji ... aur aapki rachnaaye padhkar bahut khushi hui .. ye kavita kaafi kuch kah jaati hai .. man ke bhaavo ko aapne accha swaroop diya hai ....meri badhayi sweekar kare..
ReplyDeleteaabhar
vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
रिसने दे ख्यालों से भीगी सी उलझन कभी ... वाह ! क्या कहने ! बहुत सुन्दर रचना है ! मन को छुं गयी !
ReplyDeletelong time since your post...
ReplyDeletewaitig for that...
mere blog par is baar..
वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
jaroor aayein...
इस दिल की राह से
ReplyDeleteतू आ जाये खुद के यूँ करीब
छले न दर्पण कभी!
क्या कहूँ.... दिल को पूरा उतार कर रख दिया ...लफ़्ज़ों से....
बहुत अच्छी लगी यह कविता.... दिल को छू गई....
must visit my new poem..and give your comment..
ReplyDeleteनयी दुनिया
anamika tu bhi tarse.......
ReplyDeleteye line end me add karne ka man hua !!:-)
bahut sundar rachna hai.........
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