ताउम्र जिंदगी
से निभाने की सोच लिये फिरते है।
खुद पर खुद ही का बोझ लिये फिरते है॥
ढूंढते है जहाँ भर में
सूरत दिखती नहीं अपनी नज़र में
और आईना दर दर पे रोज लिये फिरते
है॥
रहते है खुद से बेखबर से
असलियत मालूम होने के डर से
और जहाँ भर की खोज लिये फिरते है॥
रोज ख़्वाबों में पलते है
खुद को यूँ कई बार छलते है
फिर भी उन्ही आंसूओं की फ़ौज लिये फिरते है॥
घूंट घूंट पीकर भी प्यासे है
उलझी,उम्मीद के धागों में अपनी साँसें है
जाने किस बात की मौज लिये फिरते है॥
वाह!वाह!वाह!
ReplyDeletebehtreen parastuti...
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteBahut khoob parul.. bahhut khoob :)
ReplyDeletetumharee rachanae..........tareef ke shavd nahee doond patee............
ReplyDeletebemisaal..........
aasheesh aur shubhkamnae..............
उलझी उम्मीद के धागों में अपनी साँसे है, अति सुन्दर !
ReplyDeleteशानदार रचना
ReplyDeletenice one
ReplyDeletei wud luv 2 hav ur comments on my poems too
http://fervent-thoughts.blogspot.com
Adbhut.. shabdon ki sajawat lajawab hai.. badhai.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.
ReplyDeleteरामराम.
aapki kalam me bhawnaye hai...
ReplyDeleteबहेतरीन रचना .......बहुत खूब .
ReplyDeleteपारुल जी!
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर रचना लिखी है!
आज चर्चा मंच का शीर्षक इसी को बनाया है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html
सुन्दर रचना है
ReplyDeleteबेहतरीन
खुद को यूँ कई बार छलते है
ReplyDeleteफिर भी उन्ही आंसूओं की फ़ौज लिये फिरते है॥
bahut sundar bhavon se saji racha.
ज़िन्दगी को जब भी कोई एक अनोखे अंदाज मे देखता है तो बहुत सकूँ मिलाता पढ़कर.
ReplyDeleteकभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/
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ReplyDeletekhud par khud ka hi bojh liye firte hai.
bahut bahut hi achhi lagi aapki yah kavita.
सूरत दिखती नहीं अपनी नज़र में
ReplyDeleteऔर आईना दर दर पे रोज लिये फिरते है॥
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..अच्छा लगा पढ़ना...
shabd nahi hain tareef ke liye...aur blog customization me madad karne ke liye dhanyawad.....
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/...check kijiyeg ye naya rang roop aapki salah ka parinaam hai...
रोज ख़्वाबों में पलते है
ReplyDeleteखुद को यूँ कई बार छलते है
फिर भी उन्ही आंसूओं की फ़ौज लिये फिरते है ..
ये तो सच है की आँसू चलते हैं .. पर साथ भी तो निभाते हैं ...
बहुत अच्छी रचना है ...
उलझी,उम्मीद के धागों में अपनी साँसें है
ReplyDeleteजाने किस बात की मौज लिये फिरते है॥
उत्तम रचना ... आपकी रचनाएँ स्वयं की छटपटाहट बताती हैं ...???
ताउम्र जिंदगी से निभाने की सोच लिये फिरते है।
ReplyDeleteखुद पर खुद ही का बोझ लिये फिरते है॥...
great.....
kya baat hai...
i wud luv 2 hav ur comments on my blog too........
http://i555.blogspot.com/
umda!
ReplyDeleteजिन्दगी की यात्रा भटकाव जैसी
ReplyDeleteये अनोखी व्यवस्था बिखराव जैसी
जिन्दगी की यात्रा भटकाव जैसी
ReplyDeleteये अनोखी व्यवस्था बिखराव जैसी
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ReplyDeleteये अनोखी व्यवस्था बिखराव जैसी
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ReplyDeleteये अनोखी व्यवस्था बिखराव जैसी
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ReplyDeleteये अनोखी व्यवस्था बिखराव जैसी
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जिन्दगी की यात्रा भटकाव जैसी
ReplyDeleteये अनोखी व्यवस्था बिखराव जैसी
पहली दो पंक्तियों को सौ नंबर..!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है पारुल
जाने किस बात की मौज लिये फिरते है...ये तीन पंक्तियों की शैली अच्छी लगी.बहुत बढ़िया कविता
ReplyDeletedilchasp.......
ReplyDeleteताउम्र जिंदगी से निभाने की सोच लिये फिरते है।
ReplyDeleteखुद पर खुद ही का बोझ लिये फिरते है..ultimate...
बहुत सुंदर भाव। सीधे मन में उतर गये।
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