Sunday, March 14, 2010

ख़त!



कल देर तक ख़ामोशी से जदोजेहद में था
आखिर जिंदगी का एक ख़त हाथ लग गया था।
और ख़ामोशी भी आ गयी थी कशमकश में
कि क्यों में लफ़्ज़ों के साथ लग गया था॥
कुछ लफ्ज़ अधमरे थे
कुछ सोच से परे थे
पर इतना तो तय था
वो मुझसे भरे थे
मेरे इस रवैये पे ख़ामोशी उलझन में थी
कि क्यों मैं लफ़्ज़ों में बिन बात लग गया था॥
ख़त लिखने में लगी
रातों की स्याह थी
और हर लफ्ज़ में
जैसे चुप सुबह थी
इस सबसे दूर,ख़ामोशी अपनी ही अनबन में थी
और मैं खुद को समझने में दिन रात लग गया था॥
ख़त के हर लफ्ज़ में
जिंदगी की आह थी
और इस दर्द में
सोच अब गुमराह थी
मैं जिंदगी से अब सब कुछ कह देना चाहता था
ख़ामोशी से सुलह में हर ज़ज्बात लग गया था॥

41 comments:

  1. कुछ लफ्ज़ अधमरे थे
    कुछ सोच से परे थे
    पर इतना तो तय था
    वो मुझसे भरे थे
    मेरे इस रवैये पे ख़ामोशी उलझन में थी
    कि क्यों मैं लफ़्ज़ों में बिन बात लग गया था॥
    कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

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  2. parul,bahut hi sundar likha hai apane...apane me gaharai samete ek khubsoorat rachna...badhai...
    poonam

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  3. एक बेहतरीन अभिव्यक्ति.. बधाई

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति..बधाई.

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  5. क्या गहराई है.. बहुत ही ज़बरदस्त..
    आभार

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  6. हमारा कमेंट कहाँ गुम गया भई???

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  7. ख़त के माध्यम से बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    प्रस्तुत की है आपने!

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  8. Parulji,
    Behad gahan aur khubsurat abhivyakti ...pad kar bahut acchi lagi. Dhanywaad

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  9. बेहद मार्मिक रचना और बेहतरीन संप्रेषण. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. "मैं खुद को समझने में दिन रात लग गया था॥"
    काश ऐसा हो और हम खुद को समझें -
    जैसी आपसे उम्मीद रखते हैं वैसी ही सुंदर भावमय रचना

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  11. ख़त के माध्यम से बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    प्रस्तुत की है आपने!

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  12. बहुत खूबसूरती से आपने दिल की बात कह दी..आभार

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  13. मन के भावों को बहुत ....ख़ूबसूरती से व्यक्त किया है आपने .

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  14. पर इतना तो तय था
    वो मुझसे भरे थे


    ख़त के हर लफ्ज़ में
    जिंदगी की आह थी
    और इस दर्द में
    सोच अब गुमराह थी

    chap chod jane walee rachana.........

    hamesha ke jaise badee sunder abhivykti.......

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  15. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  16. रचना अच्छी लगी

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  17. fantastic blog
    g8 poems......

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  18. today i read more lots of your poems they r amazing .... by the way thanks for commenting on my blog but it seems me that still i have to learn lots of things to become a poet like you............. there r only 8 poems on my blog please read them and give me suggestions not comment i need this , if possible. please...........

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  19. खामोशी और लफ़्ज़ों को खूबसूरत शब्द दिए हैं...मार्मिक रचना...बधाई

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  20. लगता है गुलज़ार को खूब पढ़ा है.. और नहीं पढ़ा है तो नंबर डबल देता हूँ..

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  21. kush ji sach kehoon to gulzaar ji ko kabhi nahi padha par unka likha jab bhi suna hai to bahut asar raha hai,vo kahin na kahin hai is kalam mein aur unhone jo likha hai uska 1% bhi agar mujhe mein hai to mujhe bahut khushi hai.

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  22. well, parul ji apko bahut bahut badhai......

    halanki mai pehli baar aya hoon apke blog pe.....aur pehli baar itni khoobsurat kavitaye padhi......kafi marmik aur dil k najdik lagi ye poems.

    keep it uppp.

    naujavan poet dekh kar acha laga...
    jari rakhe

    shubhkamnaye apke saath hai...


    sukh sagar
    http://discussiondarbar.blogspot.com/

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  23. ख़ामोशी से सुलह में हर ज़ज्बात लग गया था
    ...अच्छी अभिव्यक्ति.

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  24. bahut bahut shukriya sukh sagar ji,baaki sabhi ka bhi bahut bahut aabhar !

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  25. main padhkar stabdh hoon.....yun bhavon ko shabdon me pirona....thanks...for such a wonderful poem..

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  26. लफ्जों का खेल बड़ा निराला है....कई बार गायब हो जाते हैं, तो कई बार निकलना कहीं होता है निकलते कहीं और हैं.....औऱ जब वर्षों बाद मिलते हैं तो आपकी कविता की तरह होते है.....फिर हमें अफसोस होता है कि नाहक ही मिले...

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  27. hi parul very nice yaar bhut accha laga.. please visit me http:helpforlove.blogspot.com & follow & be my friend 4 life...

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  28. पारुल बहुत ही खूबसूरत लिखा है... खत में सारा दर्द समेट लिया... आपकी उर्दू का तो वैसे भी कोई जवाब नहीं...

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  29. parul!

    sateek shabd chaya, samyak bimb vidhan lay par hath sadhte hi hindee ko ek shreshta navgeetkar mil jyegee. mujhe prateeksha hai aagami rachnaon ki.

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  30. देर आया हूँ, साथ में क्षमा याचना लाया हूँ\
    रचना तो पुराने निकाले हुए खत जैसे थी, जज्बातों से लबालब\

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  31. कुश से सहमत, अक्खी गुलज़ारियन लगती हो..क्या लफ़्ज़ फ़ेके है...वाह

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  32. गहरी .. मार्मिक कविता...
    शब्दों में जैसे जादू है आपके ... शब्दों और खतों की ज़ुबान बहुत कुछ कह रही है ....

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  33. कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…

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