Saturday, March 6, 2010

कशमकश!





ख़ामोशी तेरी मेरी एक दूजे में उलझी थी
यूँ ही नहीं था बातों का उधड जाना
लिपटे जा रहे थे धागे दोनों के मन पर
जायज था सोच के बोझ का बढ़ जाना ॥
लफ़्ज़ों की आपस में ऐसी अनबन थी
सोच को होने लगी उलझन थी
ऐसे में आखिर मन ही क्या करता
आसां था ख़ामोशी की परत का मन पर चढ़ जाना ॥
खोजा तो पाया मन की कोई गिरह नहीं थी
जिंदगी से भी अब कोई भी जिरह नहीं थी
बस लफ्ज़ अपना ठिकाना बदल रहे थे
जायज था मन से सोच का बिछड़ जाना ॥
खुद में ही बहुत खाली होने लगा था
ख़ामोशी पर सवाली होने लगा था
तेरी मेरी इस चुप सी मुलाकात का
जायज था ख्यालों की कशमकश में पढ़ जाना ॥

27 comments:

  1. बहुत सुन्दर बानगी भावों की..पसंद आई रचना.

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति..उम्दा भाव...

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  3. ख़ामोशी तेरी मेरी एक दूजे में उलझी थी
    खूबसूरत लाइन,अति सुन्दर

    विकास पाण्डेय

    www.विचारों का दर्पण.blogspot.com

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  4. ख़ामोशी तेरी मेरी एक दूजे में उलझी थी
    यूँ ही नहीं था बातों का उधड जाना
    लिपटे जा रहे थे धागे दोनों के मन पर
    जायज था सोच के बोझ का बढ़ जाना ॥


    बेहद खूबसूरत भाव, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. बेहद सुंदर। ह्रदय को स्पर्श करती रचना।

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  6. Simply Great and Mind Blowing!! Liked It Very Much...


    Regards


    Ram K Gautam "RAM"

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  7. लफ़्ज़ों की आपस में ऐसी अनबन थी
    सोच को होने लगी उलझन थी

    बस लफ्ज़ अपना ठिकाना बदल रहे थे
    जायज था मन से सोच का बिछड़ जाना ॥
    bahut sunder abhivyktee..................LAJAWAB..........

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  8. शब्दों की माला को गूंथकर बनाई गई एक बेहतरीन रचना...दिल को छू लेने वाले भाव...बहुत उम्दा...अगली रचना का इंतजार रहेगा...

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  9. लफ़्ज़ों की आपस में ऐसी अनबन थी
    सोच को होने लगी उलझन थी
    ऐसे में आखिर मन ही क्या करता
    आसां था ख़ामोशी की परत का मन पर चढ़ जाना ॥
    खोजा तो पाया मन की कोई गिरह नहीं थी
    जिंदगी से भी अब कोई भी जिरह नहीं थी
    बस लफ्ज़ अपना ठिकाना बदल रहे थे....

    इन पंक्तियों ने एक अलग सा एहसास दिलाया है... ज़िन्दगी में अब कोई जिरह नहीं थी..... बस ! लफ्ज़ ठिकाना बदल रहे थे... कशमकश को बहुत खूबसूरती से पिरोया है आपने.... देर से आया... लेकिन दुरुस्त आया....

    Once gain hats off to you...

    gr8 work with as usual elegance.... and entwining of words with eloquent rhythm.... m lip-locked.... with thoughts' flowing smoothly regarding this great poem....

    Regards....

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  10. बस लफ्ज़ अपना ठिकाना बदल रहे थे
    so imaginative.

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  11. खूबसूरत,अति सुन्दर ,बेहतरीन अभिव्यक्ति.

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  12. यह तुकबंदी याद रह जाने वाली है... कल हिंदुस्तान में इसी पर एक लेख पढ़ा था... सोचता हूँ मैं भी सीखूं .... क्या ख्याल है ? seekh lun ?

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  13. कल यह लेख हिंदुस्तान में सुधीश पचौडी का था... तब से सोच रहा हूँ तुकबंदी सीखूं

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  14. आदरणीया,
    क्या खूब अलफ़ाज़ का ताना बाना बुन दिया आपने.......एहसासों की अभिव्यक्ति है आपकी रचना
    अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई

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  15. parul aap bahut achha likhti hain...behad khubsurat
    padh kar man shaant sa ho gaya

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  16. the lines have very soft feelings and that makes it a nice poem.

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  17. पारूल मैं कशमकश में नही हूं। मैं जो कह रहा हूं वह सीधे दिल से निकल रहा है- वाकई बेहद ही सुंदर रचना है आपका यह कशमकश.

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  18. बेहद खूबसूरत भाव, शुभकामनाएं.

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  19. u have a wonderful collection of life...yahan 'jindagi live' hai :)

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  20. बोलती हुई ख्मोशियों पर आपका चित्रण लाज़बाब है.

    कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
    http://qatraqatra.yatishjain.com/

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