ख़ामोशी तेरी मेरी एक दूजे में उलझी थी
यूँ ही नहीं था बातों का उधड जाना
लिपटे जा रहे थे धागे दोनों के मन पर
जायज था सोच के बोझ का बढ़ जाना ॥
लफ़्ज़ों की आपस में ऐसी अनबन थी
सोच को होने लगी उलझन थी
ऐसे में आखिर मन ही क्या करता
आसां था ख़ामोशी की परत का मन पर चढ़ जाना ॥
खोजा तो पाया मन की कोई गिरह नहीं थी
जिंदगी से भी अब कोई भी जिरह नहीं थी
बस लफ्ज़ अपना ठिकाना बदल रहे थे
जायज था मन से सोच का बिछड़ जाना ॥
खुद में ही बहुत खाली होने लगा था
ख़ामोशी पर सवाली होने लगा था
तेरी मेरी इस चुप सी मुलाकात का
जायज था ख्यालों की कशमकश में पढ़ जाना ॥
बहुत सुन्दर बानगी भावों की..पसंद आई रचना.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति..उम्दा भाव...
ReplyDeleteख़ामोशी तेरी मेरी एक दूजे में उलझी थी
ReplyDeleteखूबसूरत लाइन,अति सुन्दर
विकास पाण्डेय
www.विचारों का दर्पण.blogspot.com
nice!
ReplyDeleteख़ामोशी तेरी मेरी एक दूजे में उलझी थी
ReplyDeleteयूँ ही नहीं था बातों का उधड जाना
लिपटे जा रहे थे धागे दोनों के मन पर
जायज था सोच के बोझ का बढ़ जाना ॥
बेहद खूबसूरत भाव, शुभकामनाएं.
रामराम.
बेहद सुंदर। ह्रदय को स्पर्श करती रचना।
ReplyDeleteSimply Great and Mind Blowing!! Liked It Very Much...
ReplyDeleteRegards
Ram K Gautam "RAM"
लफ़्ज़ों की आपस में ऐसी अनबन थी
ReplyDeleteसोच को होने लगी उलझन थी
बस लफ्ज़ अपना ठिकाना बदल रहे थे
जायज था मन से सोच का बिछड़ जाना ॥
bahut sunder abhivyktee..................LAJAWAB..........
bahut khoobsurat rachna
ReplyDeleteशब्दों की माला को गूंथकर बनाई गई एक बेहतरीन रचना...दिल को छू लेने वाले भाव...बहुत उम्दा...अगली रचना का इंतजार रहेगा...
ReplyDeleteलफ़्ज़ों की आपस में ऐसी अनबन थी
ReplyDeleteसोच को होने लगी उलझन थी
ऐसे में आखिर मन ही क्या करता
आसां था ख़ामोशी की परत का मन पर चढ़ जाना ॥
खोजा तो पाया मन की कोई गिरह नहीं थी
जिंदगी से भी अब कोई भी जिरह नहीं थी
बस लफ्ज़ अपना ठिकाना बदल रहे थे....
इन पंक्तियों ने एक अलग सा एहसास दिलाया है... ज़िन्दगी में अब कोई जिरह नहीं थी..... बस ! लफ्ज़ ठिकाना बदल रहे थे... कशमकश को बहुत खूबसूरती से पिरोया है आपने.... देर से आया... लेकिन दुरुस्त आया....
Once gain hats off to you...
gr8 work with as usual elegance.... and entwining of words with eloquent rhythm.... m lip-locked.... with thoughts' flowing smoothly regarding this great poem....
Regards....
बस लफ्ज़ अपना ठिकाना बदल रहे थे
ReplyDeleteso imaginative.
खूबसूरत,अति सुन्दर ,बेहतरीन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteaap sabka ka bahut bahut aabhar!
ReplyDeleteअभूतपूर्व
ReplyDeleteयह तुकबंदी याद रह जाने वाली है... कल हिंदुस्तान में इसी पर एक लेख पढ़ा था... सोचता हूँ मैं भी सीखूं .... क्या ख्याल है ? seekh lun ?
ReplyDeleteकल यह लेख हिंदुस्तान में सुधीश पचौडी का था... तब से सोच रहा हूँ तुकबंदी सीखूं
ReplyDeleteआदरणीया,
ReplyDeleteक्या खूब अलफ़ाज़ का ताना बाना बुन दिया आपने.......एहसासों की अभिव्यक्ति है आपकी रचना
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई
parul aap bahut achha likhti hain...behad khubsurat
ReplyDeletepadh kar man shaant sa ho gaya
dhanywaad!
ReplyDeletethe lines have very soft feelings and that makes it a nice poem.
ReplyDeleteपारूल मैं कशमकश में नही हूं। मैं जो कह रहा हूं वह सीधे दिल से निकल रहा है- वाकई बेहद ही सुंदर रचना है आपका यह कशमकश.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत भाव, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteu have a wonderful collection of life...yahan 'jindagi live' hai :)
ReplyDeletewow!
ReplyDeletebahut bahut aabhar!
ReplyDeleteबोलती हुई ख्मोशियों पर आपका चित्रण लाज़बाब है.
ReplyDeleteकभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/