When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Monday, March 1, 2010
नासमझी
जब दूर बहुत दूर
तुम अपने ही ख़्वाबों में मशगूल थे
मेरे ख्वाब तुम्हारे न होने को दे रहे तूल थे ॥
उलझ रहे थे बेवजह ही मेरी अपनी तन्हाई से
खुश नहीं थे वो शायद तुम्हारी रिहाई से
और मैं एकटक देख रही थी यादों का धुंधलापन
तुम्हारे साथ बिताये लम्हे,खा रहे समय की धूल थे ॥
जो याद कभी तुम आते थे,वो आँखों में चुभते थे
मन आवाज लगाता जाता था,पर वो चाहकर भी कहाँ रुकते थे
वो कल के पानी के मोती जैसे बन गए अब शूल थे ॥
खाली कर देना चाहती थी खुद को
खुद में खुद को भी रखा न जाता था
बेस्वाद हो गया था सब कुछ
मन से अब कुछ भी चखा न जाता था
शायद इसलिए अब तक न समझ सकी
तुम कडवी याद थे या कोई मीठी भूल थे ॥
ye samjh aa jaye to mushkil hi kya..sundar!
ReplyDeleteaaj pichli bahut si rachnaayen dekhi..samay ke saath soch paripakv ho rahi hai..holi ki shubhkamnaayen..
ReplyDelete"खाली कर देना चाहती थी खुद को"
ReplyDelete....
"तुम कडवी याद थे या कोई मीठी भूल थे॥"
सुंदर शब्दों से पिरोई मनःस्थिति - होली की हार्दिक बधाई
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है!
ReplyDelete"दिल किसी काम में नही लगता,
याद जब से तुम्हारी आयी है।
घाव रिसने लगें हैं सीने के,
पीर चेहरे पे उभर आयी है।
साँस आती है, धडकनें गुम है,
क्यों मेरी जान पे बन आयी है।
गीत-संगीत बेसुरा सा है,
मन में बंशी की धुन समायी है।
मेरी सज-धज हैं, बेनतीजा सब,
प्रीत पोशाक नयी लायी है।
होठ हैं बन्द, लब्ज गायब हैं,
राज की बात है, छिपायी है।
चाहे कितनी बचाओ नजरों को,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।"
तुम कडवी याद थे या कोई मीठी भूल थे-वाह!! क्या बात कही है...जबरदस्त रचना! बधाई.
ReplyDeleteये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
होली पर आपकी बेहतर रचना और होली, दोनों को हार्दिक शुभकामनाएं........www.sansadji.com
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाए इस आशा के साथ की ये होली सभी के जीवन में
ReplyDeleteख़ुशियों के ढेर सरे रंग भर दे ....!!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुंदर कविता... भावों को न समझ पाना ही नासमझी है ।
ReplyDeletebeautiful poem
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteकविता एक पूरे अहसास को सजीव करती हुई है.
किस्सा ए कसक, उलझन ए ज़िंदगी। दिल दलिद्दर यादों की कोठरी। मन गिरवी रख कर उधार के सपने खरीदो, फसल लहलहाने से पहले ही खलिहान लुट जाए। चुकाते रहो कर्ज़ गिरों रखा वापस नहीं मिलता।
ReplyDeleteकहीं कहीं सशक्त, कहीं कहीं लचर रचना। अच्छी है।
aap sabhi ko dhanywaad!
ReplyDeleteकई बार एहसास शब्द को सजीव कर देते हैं. तुकबंदी ना भी करती तो कंटेंट असर करता... पहले भी कहा है यह शुरूआती दिन हैं... (कविता नहीं एहसास के)
ReplyDeleteमीठी भूल :)
ReplyDeleteAntim pankti kaafi gahrai liye hue hai....ek asmanjas ki stithi liye hue bhi...ant tah rachna mein dam hai....keep it up....
ReplyDeleteतुम कडवी याद थे या मीठी भूल ---- यही बात तो समझ से बाहर है। बहुत गहरे जज़वातों से बुनी कविता। बधाई
ReplyDeletetoo good...
ReplyDeleteBahut khoobasurat ---hardik badhai.
ReplyDeletePoonam
बहुत सुन्दर भावनाओं की बेहतरीन शब्दों में अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है-
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
Bahut pyaree bholee see kavita............
ReplyDeleteaap sabhi ka bahut bahut dhanywaad!
ReplyDeleteकड़वी याद.....मीठी भूल......
ReplyDeleteक्या सभी के साथ वही सबकुछ?
मीठी भूल और कड़वी याद के रास्ते से यह ब्लाग स्वामी की स्वीकृति का पत्थर हटा दें
ReplyDeleteतुम कडवी याद थे या कोई मीठी भूल थे ॥
ReplyDeleteअहा,अति सुन्दर वाकई काबिलेतारीफ
thanx to all of you... :)
ReplyDeletevahut sundar Rachana hai.yahi to duvadha hai man ki jo insan ant ant tak samajhate rahata hai ki yah kadavi yad thi ya mithi bhul. good .
ReplyDeleteBeautiful writing as always!! :)
ReplyDeleteThe loved the pic also!!
bahut khoob ...prem manushya ki ajeeb sththi ka peetara hai ..prem sabse pahile aapke sva per aakraman kerta hai ....aapko apne jaisa banana chahta hai her premi /premika adhikar chahta hai /chahti hai ..uski herek ichaoo ko apni ichaa ke berkax tolta hai ..yehi se shuru hoti hai vicharoo ki jung ....prem asal mein vah hai joaapko adhik svatrantra kere aapka vicharo ko disha na de nea aapke saath bahe nirpeksh rehker apni upasththi se sahlaye bher ....parul aapki kavita gunj rehi hai ...mein apni roo mein beh gaya ...sunder
ReplyDeleteख्याल बहुत बेहतरीन है .आखिरी शब्द मुझे बहुत जमा ......पर एक बात कहूँ ओर रिफाइन कर सकती थी ...
ReplyDeleteaap sabka dhanywaad!
ReplyDeleteयादों के धुधलके कभी पीछा नहीं छोड़ते
ReplyDeleteआपने दुखती हुई रूहों को छेड़ दिया
बहुत खूब !!!