When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Thursday, February 18, 2010
एक सवाल ..
वो वक़्त-बेवक्त भागता है अपने ही पीछे
उसको इस जुनूं का असर चाहिए
शायद कम पड़ गया है जिंदगी का आशियाँ
जो अब ईट-पत्थरो का भी घर चाहिए ॥
भूलता जा रहा है वो इस भूल में
जिन्दगी से अपने सारे रिश्ते
बस सोचता रहता है यही
पैसे से भरनी है साँसों की किश्तें
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥
फिरता है दर दर खुद को तन्हा लिये
सपनों से भी सुकून का सौदा किये
ऐ दोस्त इतना ही कहूँगा मैं
तकाजे के लिये भी उमर चाहिए ॥
इस ख्वाहिश में सब कुछ बीत जायेगा
हो सकता है जिंदगी से तू जीत जायेगा
मगर हार जायेगा अपना ही वजूद
क्या तुझको खुद की नहीं कदर चाहिए ॥
Javed Saab ka ek sher yaad ata hai
ReplyDelete"Jo khwab tha use paa lia hai,
Magar jo kho gyi vo chiz kya thi...?"
I think u tried to answer this question bueatifully...!!!!!!!!
अपने आप को अपने भागते हुवे सपनों से बचा कर रखना चाहिए ..... अपने लिए भी वक़्त हों चाहिए ... रिश्तों की अहमियत और कहीकत से रूबरू कराती रचना ........
ReplyDeleteपैसे से भरनी है साँसों की किश्तें
ReplyDeleteखो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥
सच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है।
aaj apki kavita behad dil ke kareeb lgi..apne hi khyaal lge.sach me hum khud ko hi bhool jate hai khud se jyadti hai ye.insaan bhag dodh me sab bhool jata hai.rishte naate..sab kuch ..aisa kuch main likhna chahti thi..
ReplyDeleteआज के जीवन शैली को प्रस्तुत करती ये रचना .......बहुत बढ़िया .
ReplyDeleteye to hakeekat bayan kar dee jo hai apane paas usakee kadr nahee jo nahee usako pane me aaj bhee gava dete hai.........sapno ka peecha .........
ReplyDeletebahut sunder abhivykti.............
Bahut badhiyaa rachanaa-----.
ReplyDeleteबस सोचता रहता है यही
ReplyDeleteपैसे से भरनी है साँसों की किश्तें
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥
बहुत सटीक और सत्य कहा आपने.
रामराम.
अच्छे भाव अच्छा सन्देश देती कविता.
ReplyDeleteखुद की कदर तो तभी होगी न जब यह अंधी दौड़ रुकेगी!
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteएकदम सटीक अभिव्यक्ति!! मुग्ध करती है.
ReplyDeleteटिप्पणी में एक गीत दे रहा हूँ-
ReplyDeleteसम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
bahut hi satik rachna......bhavpoorn abhivyakti...!
ReplyDeletebehatreen post!
शायरी इम्प्रैक्टिकल होती है। पैसा ना हो तो कोई नहीं पूछता। अपने भी नहीं। जिन अपनों का दम भरते हैं वही लात जड़ते हैं। हम तो भुक्तभोगी हैं और कोरोड़ों हैं जिन्होंने भुगता है। वज़ूद काढ़ने के लिए भी सफलता, पैसा नाम की जरूरत होती है और जो खास अपने होते हैं वो तो हर हाल में अपने साथ हैं। जैसे मां-बाप, वो कभी किसी हालत में साथ नहीं छोड़ते चाहे हम उनसे कितनी ही दूर क्यों ना रहें। इसलिए प्रैक्टिकल ज़िंदगी को नकारा नहीं जा सकता। सपनों की बिनी भी ज़िंदगी मोनोटोनस यानी नीरस हो जाएगी।
ReplyDeletebahut umda soch hai aapki jivan par. kahi bhi esa nahi laga jese kisi baat ki pakad dhili reh gai ho har alfaz me ek dam hai har bat me koi gam hai jisse lagta hai ye vakya bahut nam hai...
ReplyDeletebahut badiya.
meri shubh kamnayen...
bahut badhiya mayank ji..aapki baat se bhi sehmat hu madhukar ji..baaki sabhi ka bhi bahut bahut aabhar :)
ReplyDeleteshayad har kisi ka yahi sawal hoga, har koi isi bhagambhag mein laga hai bas ek andhi doud mein..jiska shayad koi mukam vo khud bhi nahi kar paya hai..na hi kar payega.....
ReplyDeletebadhiya prastuti hai aapki...
बहुत खूब सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार
कई रचनाएँ पढ़ें आज.. लेकिन ये वाकई काफी असरदार है.. मज़ा आ गया पढ़ के.. कुछ सोचना भी पड़ा कि बात् तो सच्ची कही है..
ReplyDeleteDil si likhi gai pyari si rachna.badhai
ReplyDeleteParul Ji,
ReplyDeleteBahut sunder kavita hai... jivan ke yatharth ko darshati.....Surinder
Well yaar.
ReplyDeletejust one ward to say
Kya baat.
Kya baat..
Kya baat...
शायद कम पड़ गया है जिंदगी का आशियाँ
ReplyDeleteजो अब ईट-पत्थरो का भी घर चाहिए ॥...
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥...
मगर हार जायेगा अपना ही वजूद
क्या तुझको खुद की नहीं कदर चाहिए ॥
इस भागती-दौड़ती दुनिया में इंसान, इंसानियत और जिन्दगी कहीं खो सी गयी है... और आपकी कविता ने मासूमियत से मन के अंतर्द्वंद को जगजाहिर कर दिया है.... बहुत खूब...
भूलता जा रहा है वो इस भूल में
ReplyDeleteजिन्दगी से अपने सारे रिश्ते
बस सोचता रहता है यही
पैसे से भरनी है साँसों की किश्तें
खो आया है कहीं अपनों की दुनिया
बस अब तो ख़्वाबों का शहर चाहिए ॥
Khoobaurat aur hridayasparshee panktiyan.
Poonam
सही कहा है आपने।
ReplyDeletesach me insaan paise ke pichhe bhag raha hai
ReplyDeletethanx to all fo you
ReplyDeletebahut achchha likhti hain aap, gambhir yatharth jhalakta hai apki rachnaaon me.........shephalikauvach par apka swagat hai, asha hai hamara sampark u hi bana ragega.......shubkaamnaayen....
ReplyDeleteकितनी तल्ख़ हकीक़त को आपने शब्द दिए है .
ReplyDelete.यक़ीनन काबिल-ए -दाद ,क़ुबूल करें