When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Tuesday, February 16, 2010
जिरह .
करने लगा जिरह अपने मन से
न जाने क्या क्या जिंदगी को बकने लगा
किस तरह जुदा हुआ खुद से मालूम नहीं
मगर रोज अब अपनी राह तकने लगा ॥
मर रहा था रोज तिल तिल जहर को पिए
सोचता था क्यों बाकी हूँ और किस लिये
और जब याद आई फिर अपनी ही
तो लबों पे वजूद सा कुछ चिपकने लगा ॥
ख़ामोशी आई थी लफ़्ज़ों की कतरन लिये
और एक सिसकता सा मन लिये
क्या क्या नहीं था उस ख़त में
जिसको था मैं अपने लिये रखने लगा ॥
करता था जब कोई सवाल खुद से
जवाब जैसे हो जाते थे बुत से
इस कदर अजनबी हो गया था खुद से मैं
कि आईने में भी था भटकने लगा ॥
जब लगा तन्हा है जिंदगी का सफ़र
मन बनने लगा जैसे रेत का घर
एक एक करके करता रहा क़त्ल
और फिर उन ख्वाहिशों को कफ़न से ढकने लगा ॥
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति लगी, शब्दो का चयन लाजवाब रहा।
ReplyDeletebeautiful!
ReplyDeletevery nice poem. is this ur's?
ReplyDeleteif yes then why your poems have the voice of a male?
सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना .....
ReplyDeleteजब लगा तन्हा है जिंदगी का सफ़र
ReplyDeleteमन बनने लगा जैसे रेत का घर
एक एक करके करता रहा क़त्ल
और फिर उन ख्वाहिशों को कफ़न से ढकने लगा
रेत के घर में ख्वाहिशों का दफ़न ..... लाजवाब कल्पना ........
हर बार की तरह अद्भुत। लेकिन हर बार एक सवाल जेहन में आ जाता है। जो आपसे हैप्पी अभिनंदन द्वारा पूछना चाहूँगा। बहुत जल्द।
ReplyDeleteमर रहा था रोज तिल तिल जहर को पिए
ReplyDeleteसोचता था क्यों बाकी हूँ और किस लिये
और जब याद आई फिर अपनी ही
तो लबों पे वजूद सा कुछ चिपकने लगा
जब लगा तन्हा है जिंदगी का सफ़र
मन बनने लगा जैसे रेत का घर
एक एक करके करता रहा क़त्ल
और फिर उन ख्वाहिशों को कफ़न से ढकने लगा ॥
hamari aatmakatha likhi hai ????
कहने को साथ अपने एक दुनिया चलती है
ReplyDeleteपर चुपके इस दिल में तनही पलती है!
बस यादें ही साथ रहती हैं!
शुभ भाव
राम कृष्ण गौतम "राम"
anterdwand kee acchee prastuti ........
ReplyDeleteutkrusht lekhan shailee ........
जब लगा तन्हा है जिंदगी का सफ़र
ReplyDeleteमन बनने लगा जैसे रेत का घर
एक एक करके करता रहा क़त्ल
और फिर उन ख्वाहिशों को कफ़न से ढकने लगा
BAHUT HI ......SUNDER PANKTIYA..
again one of your best... best with words,feelings..
ReplyDeleteऔर हाँ इस बार "लय" भी अच्छी रही, मेरी शिकायत दूर हुई :)
बहुत अच्छा... बहुत अच्छा... बहुत ही अच्छा... मजा आई... :) :) :)
कुछ पंक्तियाँ तो वाकई कमाल की लिखी पारुल...
ReplyDeleteऔर जब याद आई फिर अपनी ही
तो लबों पे वजूद सा कुछ चिपकने लगा ॥
"ख़ामोशी आई थी लफ़्ज़ों की कतरन लिये" -- (क्या बात है :))
"कि आईने में भी था भटकने लगा ॥" -- :)
"और फिर उन ख्वाहिशों को कफ़न से ढकने लगा ॥"-- (अच्छा..)
बहुत अच्छी ...मनभावन पोस्ट.....
ReplyDeleteOne liner(s):
Amazing
Beautiful
Marvellous
Touchy
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteरचनारूपी माला में आपने शब्दरूपी मोती
करीने से पिरोये हैं!
gr8 work..
ReplyDeleteGehrai tere ehsaas ki aur bhi gehraye
ReplyDeleteteri qalam yunhi chale aur gungunaye
Lafz mil jayein teri khamoshi ko
Aur ye silsila bas yunhi chalta jaye.
Neelesh Mumbai
http://yoursaarathi.blogspot.com/
aap sabhi ka aabhar!
ReplyDeleteजब लगा तन्हा है जिंदगी का सफ़र
ReplyDeleteमन बनने लगा जैसे रेत का घर
एक एक करके करता रहा क़त्ल
और फिर उन ख्वाहिशों को कफ़न से ढकने लगा
वाह पारुल!! बहुत खूब शब्द दिये हैं..आनन्द आ गया.
बहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है! बधाई!
ReplyDeleteमन की अभिव्यक्ति को बहुत खूबसूरत शब्द और भावों पे पिरोया आपने...बहुत बढ़िया..बधाई
ReplyDeleteवाह, बहुत ही लाजवाब भावाभिव्यक्ति, सुंदर कल्पना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
bahut khub rachna......
ReplyDeletenice
bahut khub rachna......
ReplyDeletenice
"जब याद आई फिर अपनी ही
ReplyDeleteतो लबों पे वजूद सा कुछ चिपकने लगा"
"सोच की पराकाष्ठा" क्योंकि मेरे लिए तो ये अकल्पनीय है.
thanx to all of you!
ReplyDeleteकरता था जब कोई सवाल खुद से
ReplyDeleteजवाब जैसे हो जाते थे बुत से
जवाबों के इंतजार में प्रश्न हताश हो जाते हैं
सुन्दर रचना