When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, February 12, 2010
इश्क !(प्रेम दिवस पर विशेष )
मेरा तेरा इश्क देखकर
देखो सूरज जलता है ॥
अपनी ख्वाहिशों के झुरमुट में ही
कहीं रोज ये दिन सा पिघलता है ॥
मैं शब्दों की फिरकी बनाकर
जब भी तुम पर फेंकता हूँ
तेरे मेरे बीच में ये
पगली सी हवाओं संग फिरता है ॥
प्यार भरे लफ़्ज़ों में अक्सर
ख़ामोशी को सुलगाता है
और फिर अपनी ही साजिश में
बनकर राख सा उड़ता है ॥
मैं जब भी तुमसे अपने
ख्वाबों की बातें कहता हूँ
तुमको यूँ पाने की खातिर
वो रोज रातों से लड़ता है ॥
और फिर वो डूबता जाता है
अपनी ही तन्हाई में
जब हम दोनों के इश्क का चाँद
ख्वाहिशों के अम्बर पर चढ़ता है ॥
कैसे भी करके जाने क्यों
तुम में समाना चाहता है
समझ रहा हूँ आखिर क्यों वो
इतना घटता-बढ़ता है ॥
मैं कागज़ की नाव बनाकर
उसको बचाना चाहता हूँ
और एक वो है जो रोज
सांझ के दरिया में ही गिरता है ॥
(कागज़ की नाव =अपनी भावनाओं से)
"मेरा तेरा इश्क देखकर
ReplyDeleteदेखो सूरज जलता है ॥
अपनी ख्वाहिशों के झुरमुट में ही
कहीं रोज ये दिन सा पिघलता है ॥
"मैं शब्दों की फिरकी बनाकर
जब भी तुम पर फेंकता हूँ"
क्या बात है, जबाब नहीं.
मेरा तेरा इश्क देखकर
ReplyDelete""देखो सूरज जलता है ॥""
waah.. achha hai.. badhiya hai..
waah .........kya baat hai .........jawab nhi.
ReplyDeleteBahut sunder rachana........
ReplyDeletetumhara blog roj padhkar man mera khilta hai.jeevan ke rangon mein yahan doobne ko milta hai..as always u r superb :)
ReplyDeleteमैं कागज़ की नाव बनाकर
ReplyDeleteउसको बचाना चाहता हूँ
कागज के नाव को बचाने की कोशिश कशिश की परिणति ही तो है.
सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteइश्क ..............
ReplyDeleteलिखने बैठो तो अक्षर भी मीठे हो जाते हें
इतना मीठा एहसास
बनाने में सूरज,हवा ,खवाब ,चाँद अम्बर सब बड़ी ईमानदारी से अपना काम कर जाते हें ..
कामल तो उनका भी है जिनसे किसी को इश्क हो जाए और हो भी ऐसा की अक्षरों को शब्दों को मीठा कर जाए.
मीठी रचना..
आज का पावन दिवस जीवन में उन्नति के लाख लाख दरवाजे खोले .
kya khoob likhati he aap. pahali bar aape blog par aana huaa. har shabd dil tak jaane vala hoha he aapki kavitao me.
ReplyDeleteवाह बहुत खूब भाव पिरोए आपने..सुंदर कविता....
ReplyDeleteghar, fidrat aur ishq teen hi lajawab nikale....har shabd dil ko chhota hai...
ReplyDeleteaap sabhi ka aabhar :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति, धन्यवाद.
ReplyDeleteगुलाबों की तरह दिल अपना शबनम पे भिगोते हैं,
ReplyDeleteमोहब्बत करने वाले "खूबसूरत" लोग होते हैं!!!
शुभ भाव
राम कृष्ण गौतम
इक सुदर सलोनी सी भावभरी कविता
ReplyDeleteइश्क को इश्किया कर दिया है आपने
ReplyDeleteIt gives the impression of Meta-physical poetry. This genere of poetry demands consistent labour and wide-spread knowledge.If you are interested in this i would suggest you to read Jhohn Donn's Collection; specially his poem "Sunny Rise". You can aslo go for Nature Poet Wrdsworth's "Daffodiles".
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ....
ReplyDeletevelientien day ke awsar paraapneto hamsabko eshme sarobar kardiya.
ReplyDeleteek behatareen rachna.parul ji aapko
hardik badhayi.
poonam
parul ji,valentine ke avasar par aapne sabko ishq me sarobar kar diya . bahut achchha likhti hain ap.haardik badhaai.
ReplyDeletepoonam
सुंदर भाव समेटे यह कविता मन को आल्हादित कर देती है.
ReplyDeleteप्यार भरे लफ़्ज़ों में अक्सर
ReplyDeleteख़ामोशी को सुलगाता है
और फिर अपनी ही साजिश में
बनकर राख सा उड़ता है ..
प्यार भरे शब्द अक्सर उड़ते हैं और दूसरे के जहाँ में बैठ जाते हैं .... फिर प्यार के फूल खिलते हैं ... बहुत सुंदर एहसास में डूबी रचना .....
Ye sari duniya h kehti kisi ek k jane se hamari Zindgi ruk ni jati, par ye koi nh janta k lakhon k mil jane s b us ek ki kami puri nh hoti,
ReplyDeleteVery nice parul ji.
Where Information Lives, Where A Good Time Lives, visit my blog http://helpforlove.blogspot.com
SACHIN KUMAR..
ReplyDeleteSANDAR...WISH THIS RHYTHM OF WORDS JUST GO ON AND ON...
रचा - बसा चन्दा-मामा में,
ReplyDeleteरूप तुम्हारा नया-नया।
रात चाँदनी में आयेगा,
रूप तुम्हारा नया-नया।।
मलयानिल के झोंको में है,
रूप तुम्हारा नया-नया।
प्रेम-दिवस पर छा जायेगा,
रूप तुम्हारा नया-नया।
आपने बहुत बढ़िया लिखा है जी!
मेरा तेरा इश्क देखकर
देखो सूरज जलता है ॥
अपनी ख्वाहिशों के झुरमुट में ही
कहीं रोज ये दिन सा पिघलता है ॥
मैं शब्दों की फिरकी बनाकर
जब भी तुम पर फेंकता हूँ
तेरे मेरे बीच में ये
पगली सी हवाओं संग फिरता है ॥
प्यार भरे लफ़्ज़ों में अक्सर
ख़ामोशी को सुलगाता है
इश्क है कि नया चश्मा है। जो देता है दुनिया को देखने की नई नजर। ये इश्क ही है जो आपको सूरज जलता, दिन पिघलता सा दिख रहा है। यही नजर है कि फासलों की गर्द घट जाती है। चांद सितारों में कोई नजर आता है। गालिब की मुंह जुबानी कहें तो निकम्मापन इसे ही कहते हैं। इश्क से इतर गर भूखे पेट चांद तारों को देखें, तो दिलदार और सनम नहीं बल्कि रोटी नजर आती है। लव और मोहब्बत में कुछ ऐसा ही अंतर है।
ReplyDeleteपहली लाइन 'मेरा तेरा इश्क देखकर, देखो सूरज जलता है' बहुत ही सुन्दर मानवीयकरण!!!
ReplyDeleteलेकिन, बाद में कविता कुछ कमजोर पड़ती लगती है, साधुवाद!! लिखती रहिये, अच्छा लिखती हैं.
अत्यंत सुंदरानुभूति.
ReplyDeleteआपने बहुत बढ़िया लिखा है जी!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब भाव पिरोए आपने..सुंदर कविता....
ReplyDeleteparul ji prem divas ki kavita achchi lagi.........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteprem divash par ati uttam rachana
ReplyDeleteआज के दिन याद आ रही है 'पाश' की मशहूर कविता 'अब मैं विदा लेता हूं.
ReplyDeleteपढने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें-
http://revolutionarysongs.blogspot.com/2010/02/blog-post.html
याद आ रही है पाश की मशहूर कविता- 'अब मैं विदा लेता हूं'
ReplyDeletehttp://revolutionarysongs.blogspot.com/2010/02/blog-post.html
aap sabhi ko bahut bahut dhanywaad!
ReplyDeleteआपका ब्लॉग यहाँ ब्लॉगवुड जोड़ दिया गया है शायद आपको जानकार खुशी हो। शायद न भी हो।
ReplyDeletehappy ji...khushi kyon nahi hogi..hai...:)thanx...
ReplyDeleteसुंदर कविता.
ReplyDeleteसुंदर ब्लॉग.
:)
पहली बार आया हू..और यही कहूगा कि पहले क्यू नही आया.. :)
ReplyDeleteबहुत हि प्यारी कविता...
dil nikaal ke rakkh diya ho jaise kisi ne parul ji...
ReplyDeleteaafareen rachna hai aapki...
इस प्रेम गीत पर क्या कहुं....मुझे लगता है भगवान भास्कर पढ़ लें तो अपनी तपिश कम करने पर मजबूर हो जाएं..बेचारे जलना न छोड़ दें....सूरज क्यों जलता है आज ही पता चला...
ReplyDeleteसुभान अल्लाह
hardik aabhar!
ReplyDeleteमैं कागज़ की नाव बनाकर
ReplyDeleteउसको बचाना चाहता हूँ
और एक वो है जो रोज
सांझ के दरिया में ही गिरता है ॥
प्रेम में हम इतना पी ही लेते है कि बिना दरिया के और कही ठौर नही दिखता।बहुत सुन्दर रचना।
धन्यवाद!
jabardasht poem ji , badhayi sweekar karen
ReplyDeletevijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
mujhe lagta hai ki aap is mod se guzar chuke hai. kyoki itni acchi bhavna to sirf wo hi bata sakta hai jo isse ho ker guzra hai.
ReplyDeleteसुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
ReplyDeletebauhat sundar
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