Wednesday, February 10, 2010

फितरत!!


जूनून बसता है मेरी आँखों में
सुकून कहीं और है
मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
तो खींचता ख़ामोशी का शोर है
रोज होता है कुछ न कुछ ख्वाबगाह में
मगर मिलता नहीं कुछ सोच की पनाह में
और मुड़ जाता हूँ उन बेचैनियों की राह पर
जहाँ चलता बस कलम का जोर है ॥
शहर दर शहर ढूंढता हूँ मैं जिंदगी का चेहरा
अपने वजूद का शायद उस पहचान से है रिश्ता गहरा
उसको यूँ ही पाने की फितरत में
होती जा रही खुद की जरुरत कमजोर है ॥


एक बार फिर रविश जी के ब्लॉग की कुछ पंक्तियाँ भा गयी
ये प्रयास भर है..किसी भी गलती के लिये माफ़ी चाहूंगी..

41 comments:

  1. जूनून बसता है मेरी आँखों में
    सुकून कहीं और है
    मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
    तो खींचता ख़ामोशी का शोर है
    रोज होता है कुछ न कुछ ख्वाबगाह में
    मगर मिलता नहीं कुछ सोच की पनाह में
    और मुड़ जाता हूँ उन बेचैनियों की राह पर
    जहाँ चलता बस कलम का जोर है ॥

    bahut badhiya... good one

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  2. ब्लॉग्गिंग में आगे जाने वाले गुण मौजूद हैं.

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  3. parul ji,
    wakaee jab bhi bechainiya had se gujar jaati hain aur jab ham apani baaten kiseee se kah nahai pate to ye kalam hi to hai jo hamara saath nibhati hai .ham apane vichlit man ko kagaj par utar kar thoda sha kun paaten hai .
    poonam

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  4. जूनून बसता है मेरी आँखों में
    सुकून कहीं और है
    मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
    तो खींचता ख़ामोशी का शोर है


    behtareen .....
    rez kuchh na kuchh hota hai khwabgah mein...
    bahut achha....

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  5. Bahut badhiya Parul. Congrats.

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  6. रोज होता है कुछ न कुछ ख्वाबगाह में
    मगर मिलता नहीं कुछ सोच की पनाह में
    और मुड़ जाता हूँ उन बेचैनियों की राह पर
    जहाँ चलता बस कलम का जोर है ॥

    सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....बहुत खूब

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  7. जूनून बसता है मेरी आँखों में
    सुकून कहीं और है
    बहुत बढ़िया।

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  8. पारुल जी, क्या खूब लिखा है. अच्छा लेखन और सुन्दर पंक्तिया पढ़ कर दिल को सुकून मिला. बधाई स्वीकार करे. फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल में उठने वाले भावो को शब्दों में पिरो कर कविता लिखती है और मै उन्ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.
    www.gooftgu.blogspot.com

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  9. मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
    तो खींचता ख़ामोशी का शोर है...

    लफ्ज़ खामोश हो जाएँगे तो सबकुछ ख़त्म हो जाएगा ....... अपने वजूद को पहचानना बहुत ज़रूरी है .........

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  10. bahut sunder bhavo kee sunder abhivyktee..........

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  11. hii parul..
    apke blog dekhe aur kavitayen bhi padi
    so nice...
    beautiful presentation.

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  12. aapki taswir bhi aapki kavitaon jaisi masoom hai

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  13. उसको यूँ ही पाने की फितरत में
    होती जा रही खुद की जरुरत कमजोर है ॥
    kabhi lafaz chup krao to kabhi khamoshi preshan karti hain.

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  14. पारुल जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

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  15. सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....बहुत खूब

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  16. पारूल जी आपने सच ही कहा है कि...
    "और मुड जाता हूं उन बेचैनियों की राह पर,
    जहाँ चलता बस कलम का जोर है।"
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति। आभार!!

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  17. ब्लोग झरोखा के द्वारा दिखाई शब्दों की लयबद्ध्ता अच्छी लगी ।
    प्रणव सक्सेना
    amitraghat.blogspot.com

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  18. Sundar Bhavo ke sath bahut sundar abhivyakti...!!
    Subhkamnae!!!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  19. सब कुछ बढ़िया. कविता टेम्पलेट और कविता के साथ चित्र.

    शुभकामनाएं.

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  20. aap sabhi ka bahut bahut dhanywaad!!

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  21. देखिए जाने क्या सोच कर मैं कल पहुंचा यकायक और आपके ब्लोग का फ़ौलोवर बन गया और इतनी जल्दी पता चला कि ये संयोग कितना सुखद रहा मेरे लिए , आज रविश जी जी के पोस्ट के शीर्षक ने आपको इस रचना को रचने के लिए प्रेरित कर दिया । मिज़ाज मिलते हैं हुजूर के हमारे से , चलिए आगे साथ बना रहेगा , और हां अब तो हम भी आपके इस हुनर के साथ ....दो दो हाथ ,,,अजी कलम से लबरेज वाले हाथ करेंगे । ये जुनून बना बसा रहे
    अजय कुमार झा

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  22. एक बेहतरीन अभिव्यक्ति समाहित है आपकी इस कविता में ज़्यादा बड़े बड़े शब्द नही कहूँगा बस इतना ही है की आप बढ़िया लिख रही है. भावों को पिरोने के सारे गुण मौजूद है आपकी लेखनी में..निरंतरता बनाएँ रखे...शुभकामनाएँ

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  23. रवीश जी की पंक्तियों से प्रेरित होकर आपने जो कविता लिखी और खूबसूरत भाव में पिरोया है, वाकई काबिले तारीफ़ है । । आप को बधाई ।

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  24. मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
    तो खींचता ख़ामोशी का शोर है

    gazab ki prastuti hai aur utna hi gazab ka khyal.

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  25. ravishndtv said...

    पारुल की पंक्तियां। वाह। अच्छी लगीं।
    February 10, 2010 8:18 PM

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  26. पहचान की खोज में यूँ निकल पड़ना

    रिश्तों की गहराई में यूँ वजूद खोजना

    शहरों में बिना बसे यूँ ही गुजर जाना

    उसकी तलब में खुद को यूँ खोना

    जूनून-सुकून-खामोशी-ख्वाब की यूँ मुलाकात करवाना

    और फिर...........................

    बेचैनियों भरी राहों पर चलता है.......
    "यूँ आपकी कलम का जोर".

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  27. प्रस्‍तुत कविता एक कवि की रचना प्रक्रिया को व्‍याख्‍यायित करती है. मुक्तिबोध ने 'तीसरा क्षण' में और अज्ञेय ने 'असाध्‍य वीणा' में साहित्‍य की रचना प्रक्रिया को जिस तरह समझने-समझाने की कोशिश की है, उसी प्रकार प्रस्‍तुत कविता रचना प्रक्रिया के उसी चिर प्रश्‍न को सुलझाने की दिशा में एक सार्थक कदम है.

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  28. रचना में शब्द मोतियों की भाँति टाँक दिये हैं आपने!
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

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  29. सुकून कहीं और है
    मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
    तो खींचता ख़ामोशी का शोर है


    खामोशियां भी कई बार इतनी मुखर हो जाती हैं कि सहना मुश्किल हो जाता है...
    बढ़िया लिखा है पारुल

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  30. शब्दों के कॉपी राइट नहीं होते, ये प्रेरित करने के लिए ही होते हैं। आपको रवीश के शब्दों से प्रेरणा मिली और आपने ताना-बाना तैयार कर दिया। अच्छा प्रयास है। माफी मांगने की जरूरत नहीं है।

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  31. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
    बहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  32. aap sabhi ka bahut bahut dhnywaad
    GS ji aapne jo keha,usko likhne ki puri koshish karungi :)

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  33. Hey, I am checking this blog using the phone and this appears to be kind of odd. Thought you'd wish to know. This is a great write-up nevertheless, did not mess that up.

    - David

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