जूनून बसता है मेरी आँखों में
सुकून कहीं और है
मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
तो खींचता ख़ामोशी का शोर है
रोज होता है कुछ न कुछ ख्वाबगाह में
मगर मिलता नहीं कुछ सोच की पनाह में
और मुड़ जाता हूँ उन बेचैनियों की राह पर
जहाँ चलता बस कलम का जोर है ॥
शहर दर शहर ढूंढता हूँ मैं जिंदगी का चेहरा
अपने वजूद का शायद उस पहचान से है रिश्ता गहरा
उसको यूँ ही पाने की फितरत में
होती जा रही खुद की जरुरत कमजोर है ॥
एक बार फिर रविश जी के ब्लॉग की कुछ पंक्तियाँ भा गयी
ये प्रयास भर है..किसी भी गलती के लिये माफ़ी चाहूंगी..
जूनून बसता है मेरी आँखों में
ReplyDeleteसुकून कहीं और है
मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
तो खींचता ख़ामोशी का शोर है
रोज होता है कुछ न कुछ ख्वाबगाह में
मगर मिलता नहीं कुछ सोच की पनाह में
और मुड़ जाता हूँ उन बेचैनियों की राह पर
जहाँ चलता बस कलम का जोर है ॥
bahut badhiya... good one
ब्लॉग्गिंग में आगे जाने वाले गुण मौजूद हैं.
ReplyDeleteparul ji,
ReplyDeletewakaee jab bhi bechainiya had se gujar jaati hain aur jab ham apani baaten kiseee se kah nahai pate to ye kalam hi to hai jo hamara saath nibhati hai .ham apane vichlit man ko kagaj par utar kar thoda sha kun paaten hai .
poonam
जूनून बसता है मेरी आँखों में
ReplyDeleteसुकून कहीं और है
मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
तो खींचता ख़ामोशी का शोर है
behtareen .....
rez kuchh na kuchh hota hai khwabgah mein...
bahut achha....
Bahut badhiya Parul. Congrats.
ReplyDeleteरोज होता है कुछ न कुछ ख्वाबगाह में
ReplyDeleteमगर मिलता नहीं कुछ सोच की पनाह में
और मुड़ जाता हूँ उन बेचैनियों की राह पर
जहाँ चलता बस कलम का जोर है ॥
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....बहुत खूब
जूनून बसता है मेरी आँखों में
ReplyDeleteसुकून कहीं और है
बहुत बढ़िया।
पारुल जी, क्या खूब लिखा है. अच्छा लेखन और सुन्दर पंक्तिया पढ़ कर दिल को सुकून मिला. बधाई स्वीकार करे. फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल में उठने वाले भावो को शब्दों में पिरो कर कविता लिखती है और मै उन्ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.
ReplyDeletewww.gooftgu.blogspot.com
मैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
ReplyDeleteतो खींचता ख़ामोशी का शोर है...
लफ्ज़ खामोश हो जाएँगे तो सबकुछ ख़त्म हो जाएगा ....... अपने वजूद को पहचानना बहुत ज़रूरी है .........
bhut umda rhythm hai
ReplyDeletesaadar
praveen pathik
9971969084
bahut sunder bhavo kee sunder abhivyktee..........
ReplyDeleteअच्छा प्रयास है.
ReplyDeletetumhara sitara buland hai!
ReplyDeleteaap sabhi ka dhanywaad :)
ReplyDeletehii parul..
ReplyDeleteapke blog dekhe aur kavitayen bhi padi
so nice...
beautiful presentation.
aapki taswir bhi aapki kavitaon jaisi masoom hai
ReplyDeleteउसको यूँ ही पाने की फितरत में
ReplyDeleteहोती जा रही खुद की जरुरत कमजोर है ॥
kabhi lafaz chup krao to kabhi khamoshi preshan karti hain.
पारुल जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति ....बहुत खूब
ReplyDeleteपारूल जी आपने सच ही कहा है कि...
ReplyDelete"और मुड जाता हूं उन बेचैनियों की राह पर,
जहाँ चलता बस कलम का जोर है।"
सुन्दर भावाभिव्यक्ति। आभार!!
ब्लोग झरोखा के द्वारा दिखाई शब्दों की लयबद्ध्ता अच्छी लगी ।
ReplyDeleteप्रणव सक्सेना
amitraghat.blogspot.com
Sundar Bhavo ke sath bahut sundar abhivyakti...!!
ReplyDeleteSubhkamnae!!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
Sagar ki baat kabile gaur hai !
ReplyDeleteसब कुछ बढ़िया. कविता टेम्पलेट और कविता के साथ चित्र.
ReplyDeleteशुभकामनाएं.
aap sabhi ka bahut bahut dhanywaad!!
ReplyDeletesundar bhaav..........
ReplyDeleteदेखिए जाने क्या सोच कर मैं कल पहुंचा यकायक और आपके ब्लोग का फ़ौलोवर बन गया और इतनी जल्दी पता चला कि ये संयोग कितना सुखद रहा मेरे लिए , आज रविश जी जी के पोस्ट के शीर्षक ने आपको इस रचना को रचने के लिए प्रेरित कर दिया । मिज़ाज मिलते हैं हुजूर के हमारे से , चलिए आगे साथ बना रहेगा , और हां अब तो हम भी आपके इस हुनर के साथ ....दो दो हाथ ,,,अजी कलम से लबरेज वाले हाथ करेंगे । ये जुनून बना बसा रहे
ReplyDeleteअजय कुमार झा
एक बेहतरीन अभिव्यक्ति समाहित है आपकी इस कविता में ज़्यादा बड़े बड़े शब्द नही कहूँगा बस इतना ही है की आप बढ़िया लिख रही है. भावों को पिरोने के सारे गुण मौजूद है आपकी लेखनी में..निरंतरता बनाएँ रखे...शुभकामनाएँ
ReplyDeleteरवीश जी की पंक्तियों से प्रेरित होकर आपने जो कविता लिखी और खूबसूरत भाव में पिरोया है, वाकई काबिले तारीफ़ है । । आप को बधाई ।
ReplyDeleteमैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
ReplyDeleteतो खींचता ख़ामोशी का शोर है
gazab ki prastuti hai aur utna hi gazab ka khyal.
ravishndtv said...
ReplyDeleteपारुल की पंक्तियां। वाह। अच्छी लगीं।
February 10, 2010 8:18 PM
aap sabhi ka aabhar :)
ReplyDeleteपहचान की खोज में यूँ निकल पड़ना
ReplyDeleteरिश्तों की गहराई में यूँ वजूद खोजना
शहरों में बिना बसे यूँ ही गुजर जाना
उसकी तलब में खुद को यूँ खोना
जूनून-सुकून-खामोशी-ख्वाब की यूँ मुलाकात करवाना
और फिर...........................
बेचैनियों भरी राहों पर चलता है.......
"यूँ आपकी कलम का जोर".
achchha prayas hai
ReplyDeleteप्रस्तुत कविता एक कवि की रचना प्रक्रिया को व्याख्यायित करती है. मुक्तिबोध ने 'तीसरा क्षण' में और अज्ञेय ने 'असाध्य वीणा' में साहित्य की रचना प्रक्रिया को जिस तरह समझने-समझाने की कोशिश की है, उसी प्रकार प्रस्तुत कविता रचना प्रक्रिया के उसी चिर प्रश्न को सुलझाने की दिशा में एक सार्थक कदम है.
ReplyDeleteरचना में शब्द मोतियों की भाँति टाँक दिये हैं आपने!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
सुकून कहीं और है
ReplyDeleteमैं चुप करता हूँ लफ़्ज़ों को
तो खींचता ख़ामोशी का शोर है
खामोशियां भी कई बार इतनी मुखर हो जाती हैं कि सहना मुश्किल हो जाता है...
बढ़िया लिखा है पारुल
शब्दों के कॉपी राइट नहीं होते, ये प्रेरित करने के लिए ही होते हैं। आपको रवीश के शब्दों से प्रेरणा मिली और आपने ताना-बाना तैयार कर दिया। अच्छा प्रयास है। माफी मांगने की जरूरत नहीं है।
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए बधाई!
aap sabhi ka bahut bahut dhnywaad
ReplyDeleteGS ji aapne jo keha,usko likhne ki puri koshish karungi :)
Hey, I am checking this blog using the phone and this appears to be kind of odd. Thought you'd wish to know. This is a great write-up nevertheless, did not mess that up.
ReplyDelete- David