When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Tuesday, February 2, 2010
मन करता है ....
कुछ कहने का मन करता है
सोच की उन तंग सी गलियों में रहने का मन करता है
वो लिखने का मन करता है
जो शब्दों की अबूझ पहेली है
जिस सोच का कोई अंत नहीं
जिन जज्बों से ये दुनिया खेली है
जो ख़ामोशी से रिस न सकी
उस अनकही में बहने का मन करता है ॥
क्यों आखिर खुद में रहते नहीं
क्यों औरों को जीते है
सच्चाई को ढांपने की होड़ में
हम ख़ामोशी भी सीते है
क्यों नहीं करते खुद का विरोध
क्यों सब सहने का मन करता है ॥
क्यों कोई मसीहा लगता है
हमको परदे के किरदार में
क्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
संवेदनाओं के व्यापार में
अवसाद भरे इस खोखले पन का
अब ढहने का मन करता है ॥
(रविश जी के ब्लॉग से प्रेरित होकर)
क्यों नहीं करते खुद का विरोध
ReplyDeleteक्यों सब सहने का मन करता है ॥
...... बेहद प्रभावशाली रचना !!!
क्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
ReplyDeleteसंवेदनाओं के व्यापार में
अवसाद भरे इस खोखले पन का
अब ढहने का मन करता है ॥
Bahut khoobasuurat kavita----.
Poonam
ravish ji ke qasbe ki yatra safal rahi ..behad khoobsurat
ReplyDeleteक्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
ReplyDeleteसंवेदनाओं के व्यापार में
अवसाद भरे इस खोखले पन का
अब ढहने का मन करता है ॥
-बहुत भावपूर्ण!
इन शब्दों में उतरने के बाद,
ReplyDeleteपारुल का लिखा और पढ़ने को मन करता है...
जय हिंद...
अपने मन के विद्रोह को शब्दों से न ढकिये . उसे बाहर आने दीजिये..
ReplyDeleteक्यों कोई मसीहा लगता है
ReplyDeleteहमको परदे के किरदार में
परदे हैं ही किरदारों को मसीहा दिखाने के लिये.
बेहतरीन अभिव्यक्ति
hmmm...........
ReplyDeleteAti sundar
ReplyDeletekai saval uthatee aapkee rachana aaj ke darshan prakash daltee hai ....bahut gahraee liye........
ReplyDeletebahut bahut sunder rachana........
ravish jee ka link dena........
ReplyDeleteprerna shrot ke blog ko padane kee jagyasa swabhavik hee hai........
ravish ji ka blog link hai...nai sadak.blogspot.com
ReplyDeleteaur aap sabhi ka hoslaafjai ke liye shukriya!!
ReplyDeleteक्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
ReplyDeleteसंवेदनाओं के व्यापार में
अवसाद भरे इस खोखले पन का
अब ढहने का मन करता है ॥
पारुल बहुत सुन्दर प्रभाव शाली ढंग से मन की संवेदनाओ को म्लिखा है शुभकामनायें
man bhi badi azeeb sthiti he...sthiti isliye ki man saakaar nahi he vo sthiti ke anusaar hota he yaa bas sirf hota he..kher..aapki rachna me man ke kai chitran he jise bakhoobi se vyakt kiya he.
ReplyDeleteachhi rachna/
रेखांकित करने के लिए विशेष शब्द या पंक्ति चुनने लगूं तो पूरी कविता करनी पड़ेगी - प्रेरणा चाहें कहीं से भी मिली लेकिन यदि सोच और रचना तुम्हारी है - अगर इस उम्र में ऐसी रचना लिख सकती हो तो यही कहना पड़ेगा "जुग जुग जियो पारुल" - आने वाले समय में तुम्हारी लेखनी नए आयाम स्थापित करे - हार्दिक शुभकामनाएं एवं शुभ आशीष.
ReplyDelete"सच्चाई को ढांपने की होड़ में
हम ख़ामोशी भी सीते है"
thanks Parul .God bless you .
ReplyDeleteas always.... U ROCK!!! :)
ReplyDeletebahut bahut dhanywaad! :)
ReplyDeleteइतनी अच्छी बातें पढकर तो टिप्पणी करने का भी मन करता है। मेरी ओर से साधुवाद और बधाई।
ReplyDeletesaral bhasha meN achchhi bat kahi, Parul.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगीं आपकी रचनाएं।
ReplyDelete...... बेहद प्रभावशाली रचना !!!
ReplyDeleteplz vist my blog...
Man ke angan me shabd ka is tarah phutna
ReplyDeleteKabhi manana kabhi Ruthana.
Kabhi chup-chup, kabhi gungunana.
Kabhi hasna kabhi muskarana.
Shabd ke sath Apka yah rishta Bha gya.
Parul ze Apko dher sari subhkamna. Apme kavi banne ka sare Gun hain.