Tuesday, February 2, 2010

मन करता है ....


कुछ कहने का मन करता है
सोच की उन तंग सी गलियों में रहने का मन करता है
वो लिखने का मन करता है
जो शब्दों की अबूझ पहेली है
जिस सोच का कोई अंत नहीं
जिन जज्बों से ये दुनिया खेली है
जो ख़ामोशी से रिस न सकी
उस अनकही में बहने का मन करता है ॥
क्यों आखिर खुद में रहते नहीं
क्यों औरों को जीते है
सच्चाई को ढांपने की होड़ में
हम ख़ामोशी भी सीते है
क्यों नहीं करते खुद का विरोध
क्यों सब सहने का मन करता है ॥
क्यों कोई मसीहा लगता है
हमको परदे के किरदार में
क्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
संवेदनाओं के व्यापार में
अवसाद भरे इस खोखले पन का
अब ढहने का मन करता है ॥

(रविश जी के ब्लॉग से प्रेरित होकर)

24 comments:

  1. क्यों नहीं करते खुद का विरोध
    क्यों सब सहने का मन करता है ॥
    ...... बेहद प्रभावशाली रचना !!!

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  2. क्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
    संवेदनाओं के व्यापार में
    अवसाद भरे इस खोखले पन का
    अब ढहने का मन करता है ॥

    Bahut khoobasuurat kavita----.
    Poonam

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  3. ravish ji ke qasbe ki yatra safal rahi ..behad khoobsurat

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  4. क्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
    संवेदनाओं के व्यापार में
    अवसाद भरे इस खोखले पन का
    अब ढहने का मन करता है ॥


    -बहुत भावपूर्ण!

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  5. इन शब्दों में उतरने के बाद,
    पारुल का लिखा और पढ़ने को मन करता है...

    जय हिंद...

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  6. अपने मन के विद्रोह को शब्दों से न ढकिये . उसे बाहर आने दीजिये..

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  7. क्यों कोई मसीहा लगता है
    हमको परदे के किरदार में
    परदे हैं ही किरदारों को मसीहा दिखाने के लिये.
    बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  8. kai saval uthatee aapkee rachana aaj ke darshan prakash daltee hai ....bahut gahraee liye........
    bahut bahut sunder rachana........

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  9. ravish jee ka link dena........
    prerna shrot ke blog ko padane kee jagyasa swabhavik hee hai........

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  10. ravish ji ka blog link hai...nai sadak.blogspot.com

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  11. aur aap sabhi ka hoslaafjai ke liye shukriya!!

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  12. क्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
    संवेदनाओं के व्यापार में
    अवसाद भरे इस खोखले पन का
    अब ढहने का मन करता है ॥
    पारुल बहुत सुन्दर प्रभाव शाली ढंग से मन की संवेदनाओ को म्लिखा है शुभकामनायें

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  13. man bhi badi azeeb sthiti he...sthiti isliye ki man saakaar nahi he vo sthiti ke anusaar hota he yaa bas sirf hota he..kher..aapki rachna me man ke kai chitran he jise bakhoobi se vyakt kiya he.
    achhi rachna/

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  14. रेखांकित करने के लिए विशेष शब्द या पंक्ति चुनने लगूं तो पूरी कविता करनी पड़ेगी - प्रेरणा चाहें कहीं से भी मिली लेकिन यदि सोच और रचना तुम्हारी है - अगर इस उम्र में ऐसी रचना लिख सकती हो तो यही कहना पड़ेगा "जुग जुग जियो पारुल" - आने वाले समय में तुम्हारी लेखनी नए आयाम स्थापित करे - हार्दिक शुभकामनाएं एवं शुभ आशीष.
    "सच्चाई को ढांपने की होड़ में
    हम ख़ामोशी भी सीते है"

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  15. इतनी अच्छी बातें पढकर तो टिप्पणी करने का भी मन करता है। मेरी ओर से साधुवाद और बधाई।

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  16. saral bhasha meN achchhi bat kahi, Parul.

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  17. बहुत बढ़िया लगीं आपकी रचनाएं।

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  18. ...... बेहद प्रभावशाली रचना !!!
    plz vist my blog...

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  19. Man ke angan me shabd ka is tarah phutna
    Kabhi manana kabhi Ruthana.
    Kabhi chup-chup, kabhi gungunana.
    Kabhi hasna kabhi muskarana.
    Shabd ke sath Apka yah rishta Bha gya.
    Parul ze Apko dher sari subhkamna. Apme kavi banne ka sare Gun hain.

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