Wednesday, January 13, 2010

दरख्वास्त !





ऐ जिंदगी मेरे होने का कुछ तो इल्म रखना
रखना जरुर मुझसे चाहे कम रखना ।
मैं भूल न जाऊं कहीं तेरे होने का एहसास
मन के किसी कोने को हमेशा ही नम रखना ।
कोरा हूँ,रख न पाऊँगा तुझसे कोई हिसाब
पर साथ अपने तू जरुर एक कलम रखना ।
तू देना होसला मुझे,खुद को जीने का
ख्वाबों की आवाजाही को न कभी खत्म रखना ।
शिकवा न कर पाऊँ कभी मैं तुझसे चाहकर भी
तू देना गर ज़ख्म,तो साथ में मरहम रखना ।
आँखों का रेगिस्तान समन्दर है बन रहा
बस प्यास मेरी बरक़रार हर जन्म रखना ।
कोशिश करू जरुर,भले ही हार जाऊं
मेरी उम्मीद में जीत का इतना दम रखना ।
इंसान न रहूं तो मिट जाये मेरी हस्ती
मेरे वजूद में तू,इतनी तो शर्म रखना ।

15 comments:

  1. अच्‍छी कोशि‍श, खूबसूरत भाव।

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  2. इंसान न रहूं तो मिट जाये मेरी हस्ती
    मेरे वजूद में तू,इतनी तो शर्म रखना ।
    Fantastic !

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  3. एक पुराना गाना याद आ गया ..
    जिन्दगी मेरे घर आना ....
    आना जिन्दगी ...
    जिन्दगी से मांगे थे मैंने हिसाब कई
    आंसू के सिवा वहां कुछ न मिला ...

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  4. भावावेग की स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वाभाविक परिणति दीखती है।

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  5. सुन्दर रचना!
    लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  6. सुन्दर रचना!
    लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ....

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  7. तू देना गर ज़ख्म तो साथ में मरहम रखना..

    लेकिन आज मरहम कोई नहीं लगाता, सब ज़ख्म ही देते हैं.. बहुत खूब लिखा है पारुल

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  8. इंसान न रहूं तो मिट जाये मेरी हस्ती
    मेरे वजूद में तू,इतनी तो शर्म रखना ।
    बेहतरीन

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  9. Superb... superb... one of yr best..
    Maja aa gaya... all the best...

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  10. Shaandaar...

    The last 2 lines are amazing!!!! :)

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  11. one of the best .. !!!
    || ...hats off to you... ||

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  12. "दरख्वास्त !" दिल से लिखी गई है।
    हर शब्द जीवंत लगता है।

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  13. Shaandaar rachnaa...

    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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