When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Thursday, January 28, 2010
बंजारे!
चल ऐ मन बंजारे
इस दुनिया का भी भरम देखे
कहीं सुलगते से दिल में ही
जीवन जैसा कुछ नम देखे !
कुछ गोल गोल टुकड़े देखे
रूखे सूखे चाँद से
चूल्हे में जलता सूरज देखे
सपनों की ढलती सांझ से
देखे जीवन की मरुभूमि
न बारिश का मौसम देखे !
आखिर क्यों देखे हम इतना
राँझा क्यों बिछड़ा हीर से ?
ऐ मन तू बस इतना समझ
न होगा भला प्रेम की पीर से
क्यों न बन जाये खुद कठोर
क्यों औरों में ही कुछ नरम देखे !
चुगते चुगते पानी के मोती
तुम और हम थक जायेंगें
फिर भी न बन पायेंगें समन्दर
ये प्यास यूँ ही रख जायेगें
फिर क्यों न इन अभिलाषाओं का
संग कहीं खत्म देखे !
करता जायेगा मन मानी
तो खुद से आँख मिला न पायेगा
तू खुद से यूँ रुखसत होकर
दुनिया से जा न पायेगा
आईने को चल झुठला दे
आँखों में थोड़ी शरम देखे !
nice poem .
ReplyDeleteexcellent thoughts!
ReplyDeletekeep it up !
चुगते चुगते पानी के मोती
ReplyDeleteतुम और हम थक जायेंगें
फिर भी न बन पायेंगें समन्दर
ये प्यास यूँ ही रख जायेगें
फिर क्यों न इन अभिलाषाओं का
संग कहीं खत्म देखे !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ... दिल को छू गयीं
बहुत खूबसूरत.. आपकी कलम में जादू है...
ReplyDeleteVery nice!!
ReplyDeleteParul, I will soon take your interview... :)
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteaap sabhi ka aabhaar!
ReplyDeleteदिल में उतरती बहुत ही सुन्दर रचना. बधाई, पारुल.
ReplyDeleteखूबसूरत लिखा है .......... जीवन गाथा है ...
ReplyDeleteGOOD!!
ReplyDeleteAAINE WALI BAAT BADHIYAA RAHEE
आखिर क्यों देखे हम इतना
ReplyDeleteराँझा क्यों बिछड़ा हीर से ?
ऐ मन तू बस इतना समझ
न होगा भला प्रेम की पीर से
क्यों न बन जाये खुद कठोर
क्यों औरों में ही कुछ नरम देखे!
करता जायेगा मन मानी
तो खुद से आँख मिला न पायेगा
तू खुद से यूँ रुखसत होकर
दुनिया से जा न पायेगा
आईने को चल झुठला दे
आँखों में थोड़ी शरम देखे !
अद्बुत रचना। हर बार की तरह।
ReplyDeletesubhanallah!!
ReplyDeleteइतनी सुन्दर रचना, भाव पूर्ण, इतनी गहराई और सबसे महत्वपूर्ण रिदम. गुनगुनाने लायक. बधाई..
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