Thursday, January 28, 2010

बंजारे!


चल ऐ मन बंजारे
इस दुनिया का भी भरम देखे
कहीं सुलगते से दिल में ही
जीवन जैसा कुछ नम देखे !
कुछ गोल गोल टुकड़े देखे
रूखे सूखे चाँद से
चूल्हे में जलता सूरज देखे
सपनों की ढलती सांझ से
देखे जीवन की मरुभूमि
न बारिश का मौसम देखे !
आखिर क्यों देखे हम इतना
राँझा क्यों बिछड़ा हीर से ?
ऐ मन तू बस इतना समझ
न होगा भला प्रेम की पीर से
क्यों न बन जाये खुद कठोर
क्यों औरों में ही कुछ नरम देखे !
चुगते चुगते पानी के मोती
तुम और हम थक जायेंगें
फिर भी न बन पायेंगें समन्दर
ये प्यास यूँ ही रख जायेगें
फिर क्यों न इन अभिलाषाओं का
संग कहीं खत्म देखे !
करता जायेगा मन मानी
तो खुद से आँख मिला न पायेगा
तू खुद से यूँ रुखसत होकर
दुनिया से जा न पायेगा
आईने को चल झुठला दे
आँखों में थोड़ी शरम देखे !

14 comments:

  1. excellent thoughts!
    keep it up !

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  2. चुगते चुगते पानी के मोती
    तुम और हम थक जायेंगें
    फिर भी न बन पायेंगें समन्दर
    ये प्यास यूँ ही रख जायेगें
    फिर क्यों न इन अभिलाषाओं का
    संग कहीं खत्म देखे !
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ... दिल को छू गयीं

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  3. बहुत खूबसूरत.. आपकी कलम में जादू है...

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  4. Very nice!!

    Parul, I will soon take your interview... :)

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  5. दिल में उतरती बहुत ही सुन्दर रचना. बधाई, पारुल.

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  6. खूबसूरत लिखा है .......... जीवन गाथा है ...

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  7. आखिर क्यों देखे हम इतना
    राँझा क्यों बिछड़ा हीर से ?
    ऐ मन तू बस इतना समझ
    न होगा भला प्रेम की पीर से
    क्यों न बन जाये खुद कठोर
    क्यों औरों में ही कुछ नरम देखे!

    करता जायेगा मन मानी
    तो खुद से आँख मिला न पायेगा
    तू खुद से यूँ रुखसत होकर
    दुनिया से जा न पायेगा
    आईने को चल झुठला दे
    आँखों में थोड़ी शरम देखे !

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  8. अद्बुत रचना। हर बार की तरह।

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  9. इतनी सुन्दर रचना, भाव पूर्ण, इतनी गहराई और सबसे महत्वपूर्ण रिदम. गुनगुनाने लायक. बधाई..

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