तुम न आये मगर
ख़ामोशी आकर चली गयी
लफ्ज़ छिपते फिरे
पर वो सब सुनाकर चली गयी !
सुना भी क्या इस दिल ने
एक अदना सा फ़साना
जिसमें सिर्फ तन्हाई थी
मुश्किल था तुम्हे पाना
तेरे इंतज़ार में एक अरसे से
मैं एक रात भी न बुन पाई
और वो एक पल में
जिंदगी को ख्वाब बनाकर चली गयी !!
मैं जब तलक थी इस सोच में
तुम क्यों नहीं आये?
उसने अपने किस्से
यूँ कई बार दोहराए
मैं पूछ न सकी कुछ भी
वो कहती चली गयी
मेरी ख़ामोशी पे सवाल उठाकर चली गयी !!
ख़ामोशी आकर चली गयी
लफ्ज़ छिपते फिरे
पर वो सब सुनाकर चली गयी !
सुना भी क्या इस दिल ने
एक अदना सा फ़साना
जिसमें सिर्फ तन्हाई थी
मुश्किल था तुम्हे पाना
तेरे इंतज़ार में एक अरसे से
मैं एक रात भी न बुन पाई
और वो एक पल में
जिंदगी को ख्वाब बनाकर चली गयी !!
मैं जब तलक थी इस सोच में
तुम क्यों नहीं आये?
उसने अपने किस्से
यूँ कई बार दोहराए
मैं पूछ न सकी कुछ भी
वो कहती चली गयी
मेरी ख़ामोशी पे सवाल उठाकर चली गयी !!
"तेरे इंतज़ार में एक अरसे से
ReplyDeleteमैं एक रात भी न बुन पाई"
आपको पहली बार पढ़ा है - बहुत खूब, लाजवाब, हार्दिक शुभकामनाएं
khamoshi ka bahut khoobsurat sketch hai. badhaai.
ReplyDeletekirankant mishra
लाजवाब कहना बहुत कम होगा, क्योंकि तारीफ के लिए अल्फाज़ कम पड़ गये...
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
गणतंत्र दिवस की आपको बहुत शुभकामनाएं..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteनया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥
गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
man ke bhaavon ko aapne bakhoobi pesh kiya hai.
ReplyDeletekyaa baat....kyaa baat....kyaa baat.....!!!
ReplyDeleteaap sabhi ka hardik abhaar!!
ReplyDeleteतेरे इंतज़ार में एक अरसे से
ReplyDeleteमैं एक रात भी न बुन पाई
और वो एक पल में
जिंदगी को ख्वाब बनाकर चली गयी !!
waah bahut khoob
atyant bhaavpoorn rachna.
achha laga padhkar.
aabhaar % shubh kamnayen
तुम न आये मगर
ReplyDeleteख़ामोशी आकर चली गयी
लफ्ज़ छिपते फिरे
पर वो सब सुनाकर चली गयी !
सुन्दर अभिव्यक्ति....साधू
lafz chhipte phire
ReplyDeleteaur vo sab.........
what a imagination?
हम उन्हें सुनते रहे और गुफ्तगूँ चलती रही!
ReplyDeleteशुभ भाव
राम कृष्ण गौतम