Thursday, January 7, 2010

गुजारिश



कहीं दूर चल
मन की गुजारिश पर
जी ले आज तो जी भर वहां
मन की सिफारिश पर
ख्वाहिश बन जिंदगी को
कहीं तो बसने दे
रोये है साथ जी भर
अब जरा खुलकर हँसने दे
छोड़ दे गीले क़दमों के निशाँ
अरमानों की बारिश पर
देख साथ हमको मौसम भी
तबियत बदलने को है
एक रात चांदनी भरी
फलक से फिसलने को है
इतराने दे रात को भी आज
अपने चाँद की तारीफ पर





6 comments:

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  2. जबरदस्त लगी गुजारिश

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  3. "छोड़ दे गीले क़दमों के निशाँ
    अरमानों की बारिश पर ।" .. nice imagination :) !!

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