यूँ जोर से न अपनी आँखों को मल
पलकों के धागे उलझने को है
मन की ख़ामोशी को चुपचाप
सुन
आँखों के मोती कहीं बजने को है ।
फिर रात को यूँ ही हो जाने दे
ख्वाबों को ऐसे ही सो जाने दे
पगलाई सी कोई उम्मीद
फिर जिंदगी,खुरचने को है ।
भूला सा गर कोई तारा मिले
कोरा सा फलक सारा मिले
समझ लेना टांकने को कुछ भी नहीं
चाँद खो गया,बस शोर मचने को
है ।
साँसें बंट रही किश्तों में है
गांठे कई टूटे रिश्तों में है
दम तोडती निभाने की आस
मजबूर होकर तन्हाई की राह तकने को है ।
साँसें बंट रही किश्तों में है
ReplyDeleteगांठे कई टूटे रिश्तों में है
दम तोडती निभाने की आस
मजबूर होकर तन्हाई की राह तकने को है,
बेहतरीन सटीक रचना . बधाई.
भावमय रचना पढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत सुऩ्दर!
ReplyDeleteउत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
बहुत सुऩ्दर!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बेहतरीन सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteShabdon ko piro ke, ek kavita kehne ko hai
ReplyDelete:)
You are amazing!!
Tum kahin dur ho,
ReplyDeletepar man ko ek aas hai
soch kahin kuch atki si hai
par jo na kho paye kabhi,
kuch yaad aisi sath hai.
yun na aankhe mund kar,
khamosh hokar baith ja...
pal pal khiskti jindgi
kuch aur dur ane ko hai......
??? quite confused .. its optimism or pessimism ???
ReplyDeletestarts with optimism & suddenly tern to pessimism ... or its a wrong way to read a sensible poem...which reflects some deep emotions of abstract nature of life, devoid of senseless surface reasoning ..
..... :-)
saari hi rachnaayien bahut sunder hain...
ReplyDeleteJo aapki style hai bahut hi unique aur achhi hai...
-Ojasi