Monday, December 21, 2009

आना जिंदगी...


मेरे घर आना जिंदगी
न करना कोई बहाना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी !!
देना मौका बस एक मुलाकात का
एक पल अपने साथ का
वक़्त की बंदिशों से परे
कोई लम्हा दिल की बात का
बहुत कुछ मुझको सुनना है
तुम भी कुछ कह जाना जिंदगी !!
मैं तुमको दूंगा सब बता
माफ़ कर देना हर खता
तुम तक पहुँचने के लिये
देना मुझको मेरा पता
मेरे हर जिक्र में तुम हो
तुम फिक्र मेरी भी कर जाना जिंदगी !!
आज के बाद जो भूले से हम मिले
न करेंगें इस तरह शिकवे-गिले
ये वादा करो मुझसे
चलते रहेंगें ये सिलसिले
मुझे देना, तुमको जीने की तमन्ना
ख्वाहिशों को मिले कहीं ठिकाना जिंदगी !!
दिल में कोई एहसास ये जरा सा
रहे न ख्वाब कोई भी प्यासा
मन बन जाये न रेगिस्तां
रख आँखों को हमेशा भरा सा
बस तेरे तस्सवुर में हमेशा
छलकता रहे पैमाना जिंदगी !!
सुलगना मुझ में तुम
यूँ भी साँसों के आखिरी कश तक
मैं इस इंतज़ार में रहूँगा
कि तुम अब शायद दो दस्तक
मैं भूला नहीं तुम्हे
तुमने ही न पहचाना जिंदगी !!

13 comments:

  1. जिंदगी के साथ सार्थक बातचीत

    ReplyDelete
  2. मुझे देना, तुमको जीने की तमन्ना
    ख्वाहिशों को मिले कहीं ठिकाना जिंदगी !!
    ख्वाहिशो को ठिकाना ही तो चाहिये
    बेहतरीन

    ReplyDelete
  3. सुलगना मुझ में तुम
    यूँ भी साँसों के आखिरी कश तक
    मैं इस इंतज़ार में रहूँगा
    कि तुम अब शायद दो दस्तक
    मैं भूला नहीं तुम्हे
    तुमने ही न पहचाना जिंदगी !!

    Behatreen panktiyon men khoobasurat abhivyakti----
    HemantKumar

    ReplyDelete
  4. कविता बाद में पढ़ी, पहले ज़िंदगी के तमाम रंगों की झलक दिखाते आपके एक्वेरियम की हरकतें भा गईं। कुछ देर उन्हीं को देखता रहा।
    वैसे ज़िंदगी को बुलाती कविता काफ़ी ज़िंदादिल है।

    ReplyDelete
  5. badee acchee lagee aapakee rachana .

    ReplyDelete
  6. badee acchee lagee aapakee rachana .

    ReplyDelete
  7. सादर वन्दे
    बहुत सुन्दर रचना
    रत्नेश त्रिपाठी

    ReplyDelete
  8. सुलगना मुझ में तुम
    यूँ भी साँसों के आखिरी कश तक
    मैं इस इंतज़ार में रहूँगा
    कि तुम अब शायद दो दस्तक
    मैं भूला नहीं तुम्हे
    तुमने ही न पहचाना जिंदगी ...

    जिंदगी की आँख मिचोली चलती रहती है .......... बहुत ही लाजवाब रचना है ..... बहुत अच्छी लगी .......

    ReplyDelete
  9. ज़िन्दगी है ही ऐसी
    जब तक है हम बेखबर हैं
    जब नहीं तो कुछ भी नहीं .

    दुःख और दर्द हमारे होने का अहसास दिलाते हैं. इसलिए ओशो कहते हैं दुःख, सुख तक पहुचने की पहली सीढ़ी है.

    सर में दर्द न हो तो हमें पता भी न चले कि इस शरीर पर एक सर भी है ?

    खैर ! आपकी साहित्यिक अभिरुचि और सोच को बधाई .

    ReplyDelete