Tuesday, December 22, 2009

कर ले


आँखों में जो चुभते है
और फिर कहाँ रुकते है
उनसे मन को तर कर ले
छोड़ आ उनको फिर कहीं दूर
ऐसा न हो फिर वो मन में घर कर ले !
इश्क बड़ा ही तीखा है
जिसने इसको सीखा है
भूल गया फिर वो सब कुछ
बिन इसके सब फीका है
फिर भी पैबंद लगाकर तू
साँसों की थोड़ी फिकर कर ले !
एहसास के कच्चे धागों को
यूँ ही न तू उलझाये जा
इसका रंग मिटटी का है
न ख्वाबों की परत चढ़ाये जा
तुझको खुद की हो न हो
आईने की थोड़ी कदर कर ले !
कागज़ की नाव बना करके
ना तू ये भंवर तर जायेगा
अपने मन को कोई टीस ना दे
वरना ये आँखों में भर जायेगा
ये जीवन, बचपन का खेल नहीं
पहले थोड़ी सी उमर कर ले !

8 comments:

  1. ये जीवन, बचपन का खेल नहीं
    पहले थोड़ी सी उमर कर ले !
    vah vah kai dino ke bad tazgi mehsoos hui hai dhnywad

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  2. इश्क बड़ा ही तीखा है
    जिसने इसको सीखा है
    भूल गया फिर वो सब कुछ
    बिन इसके सब फीका है .....

    सच है जो एक बार इश्क़ के सागर में डूब गया वो उबर नही पाता ........... और ना ही उबरना चाहता है .........

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  3. भावों को बेहद सुंदर तरीके से शब्द दिये गये हैं

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  4. फिर भी पैबंद लगाकर तू
    साँसों की थोड़ी फिकर कर ले !
    पैबन्दों ने तो थाम ली है जिन्दगी की डोर.
    सुन्दर भाव पिरोया है
    बहुत सुन्दर

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  5. badee acchee rachana lagee. Badhai.

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  6. एहसास के कच्चे धागों को
    यूँ ही न तू उलझाये जा
    इसका रंग मिटटी का है
    न ख्वाबों की परत चढ़ाये जा.

    बहुत खूब लाइन हैं... दिल को छू गईं.

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  7. Bahut hi achhi kavita hai, man ke bhavo ko door tak chhoo jaati hai...

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