Thursday, December 17, 2009

संग आना है...........


ख्वाब चाहकर भी न सो पाया
रात की खुसर-फुसर में
कुछ तो हुआ था शायद
जरुर चाँद के घर में !
फलक की चादर से गिरे
कल कुछ तारे
जमीन पर आकर
जैसे बिखरे से थे सारे
मैंने पूछा जो क्या हुआ ?
कोई बोला होकर रुआं
अब न चमकेंगें हम
चाँद के संग इस सफ़र में !
चाँद को लगने लगा है
उसका चमकना फीका है
जब तक हम सारे
चमकेंगें अम्बर में
कर दिया है बेघर हमको
शायद इसी डर में !!
मैं फिर बोला
मेरे ख्वाबों में आज
तुम्हारा ही जिक्र है
लौट जाओ रात को भी
कहीं न कहीं तुम्हारी फिक्र है
इस तरह से खफा होकर चमकना न छोड़ो
नीली चादर को अपनी आभा से ढकना न छोड़ो
तुम रात के दुलारे हो
प्यारे हो सबकी नज़र में !!
बिन तुम्हारे कहानी चाँद की रह जाएगी कोरी
कौन सुनाएगा रातों में फिर मीठी लोरी
कौन ले जायेगा सपनों में हमको आखिर
कैसे करेंगें हम फिर आखिर
ख्वाबों की चोरी
तुम्हे चमकते रहना
चाँद को भी ये कहना है
तुम्हे संग संग आना है
फिर मेरे ख्वाबों के शहर में !!

7 comments:

  1. नींद, खवाब, अजनबि‍यों से मुलाकातें खूब रहीं

    अधनींदे ही चाँद के घर की बातें खूब रहीं

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  2. कैसे करेंगें हम फिर आखिर
    ख्वाबों की चोरी
    तुम्हे चमकते रहना
    चाँद को भी ये कहना है
    तुम्हे संग संग आना है
    फिर मेरे ख्वाबों के शहर में !!
    Bahut khoobasoorat bhav aur shabd donon hee----
    Poonam

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  3. पारुल जी,

    बहुत सुन्दर भावनाओं की रचना है आप की..

    "कैसे करेंगें हम फिर आखिर
    ख्वाबों की चोरी
    तुम्हे चमकते रहना
    चाँद को भी ये कहना है
    तुम्हे संग संग आना है
    फिर मेरे ख्वाबों के शहर में !!"

    आशु

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