मैं पूछता हूँ जिन्दगी से
तू, कब मुझको रास आएगी?...
मैं कब तलक नापता रहूँगा फासले
और कब तू ख़ुद पास आएगी ?...
कब सिखाएगी
जीना?ख़ुद को ही घूँट
घूँट पीना
और कब
ये तन्हाई
तेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
कब तलक रहूँगा मैं अजनबी ?
क्या मुझको तू अपना लेगी कभी ?
ख़ुद से दूर जाने की हसरत
क्या मुझे तेरे करीब ले जायेगी ?
मेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ?
मैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
तुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ये बता किस
किस हसरत को मुझ में, तू दफनाएगी ?
मैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
ReplyDeleteबहुत गहरी बात !
ख़ुद से दूर जाने की हसरत
ReplyDeleteक्या मुझे तेरे करीब ले जायेगी
बहुत खूब
और कब ये तन्हाई
ReplyDeleteतेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
घने एहसास की सुन्दर कविता
वाकई बहुत गहरी बातें कह रही है ये कविता
ReplyDeleteतुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ReplyDeleteये बता किस किस हसरत को मुझ में, तू दफनाएगी ? waah bahut khub
ख़ुद को ही घूँट घूँट पीना
ReplyDeleteऔर कब ये तन्हाई
तेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
bahut acchee rachana ahsas se sarabor rachana .
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ReplyDeleteमेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ?
ReplyDeleteमैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
बहुत गहरी संवेदना लाजवाब बधाई पारुल जी
बहुत सुन्दर कविता .... बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!!!!!!!!
ReplyDeletethanx to all o f u
ReplyDeleteज़िन्दगी अपने आप में वो paheli है जो कोई आज तक नहीं समझ paaya ......... आपका भी prayaas, जिंदगी से कुछ sawaal ...... बहुत achhee rachna है ..
ReplyDeleteमेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ? येही तो पहेली है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
its really a nice poem.
ReplyDeletePahli baar blog pe aaya, ek hi kavita hi padhi lekin kamaal ki hai....
ReplyDeletesamay nikal ke kabhi fir aata hoon. badhai
Jai Hind..
तुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ReplyDeleteये बता किस किस हसरत को मुझ में,
तू दफनाएगी ?
बहुत सुन्दर!