तंग सा हो चला था मैं
फितूर से
कुछ तो थी खलबली जिंदगी में जरुर से
न थी अपनी ख़बर,न रास्तों का पता
माफ़ हो न सकी ख्वाहिशों की खता
ख़ुद को रोका बहुत,ख़ुद को टोका बहुत
हो चले थे ख्वाब भी मजबूर से ।
जिंदगी का कोई भी ठिकाना नही
इस लिए मुझको उस तक जाना नही
मैं बना लूँगा ख़ुद आशियाना कहीं
न चलूँगा ज़माने के दस्तूर से ।
अपनी तन्हाई से जी भी भरता नही
ख़ुद को चाहकर भी मैं याद करता नही
नापता भी नही औरों से फासला
देखता हूँ ख़ुद को भी, तो बस दूर से ।
अच्छा है,,,
ReplyDeletehttp://dunalee.blogspot.com/
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
ReplyDeleteनापता भी नही औरों से फासला
ReplyDeleteदेखता हूँ ख़ुद को भी, तो बस दूर से ।
बहुत ही अच्छी लगी फीतूर की ये पंक्तिया ...... अच्छी रचना !
मैं बना लूँगा ख़ुद आशियाना कहीं
ReplyDeleteन चलूँगा ज़माने के दस्तूर से ।
WOW! beautiful lines........
"देखता हूँ ख़ुद को भी, तो बस दूर से । "
ReplyDeleteखुद को भी दूर से देखने का यह अन्दाज़ पसन्द आया.
आपकी कविता बहुत अच्छी होती है
ReplyDeletesoch ka ye dour sheegra hee vida ho jae isee shubhkamna ke sath .
ReplyDeletesunder rachna
ReplyDeleteअपनी तन्हाई से जी भी भरता नही
ReplyDeleteख़ुद को चाहकर भी मैं याद करता नही
नापता भी नही औरों से फासला
देखता हूँ ख़ुद को भी, तो बस दूर से ।
-सुन्दर रचना!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
ReplyDeleteतुक मिलाने के चक्कर मे आपकी कविता मे लय गडबड़ा रही है । इसे फिर एक बार पढ़कर देखें ।
ReplyDeleteभाव अच्छे हैं पर शब्द उनके खांचे में नहीं बैठ रहे हैं कहीं-कहीं
ReplyDeleteजिंदगी का कोई भी ठिकाना नही
ReplyDeleteइस लिए मुझको उस तक जाना नही
मैं बना लूँगा ख़ुद आशियाना कहीं
न चलूँगा ज़माने के दस्तूर से ।
bahut sundar abhivyakti.
Poonam
नापता भी नही औरों से फासला
ReplyDeleteदेखता हूँ ख़ुद को भी, तो बस दूर से
वाह!! अच्छी अभिव्यक्ति.
thanx to all o f u
ReplyDeleteitana alagavvad ? wish karatee hoo kshanik hee ho .
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