Wednesday, May 27, 2009

तुम बिन..


नही जानताआख़िर तेरे मेरे दरम्यां क्या था?
जुदा होने की राह थी,पर न साथ चलने का रास्ता था?
मैं दूर हो रहा था तुझसे या कि ख़ुद से
चल सकूं दो कदम भी तन्हा,न इतना होंसला था ।
मैं बुनता जा रहा था अपने लिए एक दायरा
जहाँ मैं ख़ुद न था,जो था यादों से तेरी भरा
मैं जिंदगी को छोड़, कैसे तुझको था जी रहा
मुझे ये कैसी फिक्र थी कि ख़ुद से भी फासला था।
हाथ से फिसलता जा रहा था ख़ुद से किया वादा
मैं ख़ुद में कम था और तुझ में ज्यादा
क्या मैं फिर से कर बैठा तुझसे जुड़ने का इरादा ?
या फिर से वही भूल करने का फ़ैसला था।
मैं सोच में था जिंदगी क्यों अब भी तुमसे अलग नही
मैं कर रहा था ख़ुद से जिरह,जिंदगी से जंग नई
मैंने पूछा जब जिंदगी से क्या तुम भी संग नही?
तो पाया मैं आज भी,तेरे साथ ही खड़ा था।
मैं बनता जा रहा था अन्दर ही अन्दर पानी
आदत बदली न थी,कभी तुमको कहता था जिंदगानी
आज इस मोड़ पे आकर जो बनी है ये कहानी
सब कुछ तो वही था,नही कुछ भी नया था।
अगर कुछ बदला भी था तो बस समय था
और इस वक्त में ख़ुद से ज्यादा तुम्हे खोने का भय था
शायद आज भी तुम ही मेरी जिंदगी हो
नही सोच पाता अब भी,बिन तुम्हारे मैं क्या था ?

9 comments:

  1. वाह ! बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण मनमोहक कविता...आभार !!!

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  2. जितनी सुन्दर कविताये है , उतना ही सुन्दर विन्यास भी है.

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  3. सुन्दर भावपूर्ण कविता

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  4. दिल की अनुभूतियों को सच्चे मन से बयां कर देना ही कविता है। और आपकी कविता इस मामले में पूरी तरह से ईमानदार दिखती है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  5. बहुत बहुत बहुत अच्छी रचना

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  6. ख़ूबसूरत ख़्याल
    वादियों में बरसती बर्फ़ से

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  7. ख्यालों को शब्द रूप देने वाली पारूल को मेरा सलाम

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  8. कहूँ कि बहुत अच्छा लिखा है,तो यह काफी न होगा...और इससे ज्यादा क्या लिखूं यह इस वक्त मैं सोच ही नहीं प् रहा....कहूँ तो क्या कहूँ ......लिखूं तो क्या लिखूं.....चलिए इस बार मेरे कुछ ना लिखे को बहुत कुछ लिखा समझ लीजियेगा....!!बुरा मत मान जाईयेगा कि एक ही टिप्पणी कई जगह क्यूँ डाल दी....बस यूँ कहूँ कि आपने इन शब्दों में जान डाल दी....!!

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